New Delhi. संसद के मानसून सत्र के समापन से पहले शुक्रवार (11 अगस्त) को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में तीन नए बिल पेश किए। इनमें भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य बिल 2023 बिल शामिल हैं। ये तीनों बिल अंग्रेजों के समय (आजादी से पहले) के इंडियन पीनल कोड (IPC), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (CrPC) और एविडेंस एक्ट की जगह लेंगे। अब तीनों बिल को जांच के लिए संसदीय समिति के पास भेजा जाएगा। इन बिलों में मॉब लिंचिंग और नाबालिग से रेप पर मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा देशद्रोह से जुड़े मामलों को लेकर भी कई अहम बदलाव किए गए हैं। हालांकि ये तीनों बिल अभी पास नहीं हुए हैं।
अंग्रेजों के जमाने के तीन कानून
- तीनों बिल इंडियन पीनल कोड 1860 (IPC)
नए बिल में ये तीन कानून
- भारतीय न्याय संहिता 2023
कितनी धाराएं हटीं, कितनी जुड़ जाएंगी?
- IPC में 533 धारा कम हो जाएंगी।
गुलामी की 475 निशानियां समाप्त
अमित शाह ने लोकसभा में कहा, गुलामी की 475 निशानियों को समाप्त किया गया है। नए बिल में पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया गया है। साथ ही मॉब लिंचिंग, नाबालिगों पर यौन हमलों के लिए मृत्युदंड, रेप के लिए अधिकतम 20 साल की कैद और पहली बार छोटे-मोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा का प्रावधान किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल, एसएमएस, लोकेशन साक्ष्य, ईमेल आदि सबकी कानूनी वैधता होगी। पूरा ट्रायल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हो पाएगा। सर्चिंग और जब्ती में वीडियोग्राफी जरूरी की गई है। पुलिस को दोष सिद्ध करने के लिए यह करना जरूरी होगा। सात साल से अधिक की सजा वाले केस में फॉरेंसिक रिपोर्ट आवश्यक की गई है।
अंग्रेजों ने क्यों बनाए थे ये कानून
शाह ने बताया कि पुराने कानूनों का उद्देश्य ब्रिटिश प्रशासन को मजबूत बनाना और उसकी सुरक्षा करना था। इनके जरिए लोगों को न्याय नहीं, बल्कि सजा दी जाती थी। 1860 से 2023 तक देश का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम ब्रिटिश कानूनों के हिसाब से था। नए बिलों का उद्देश्य सजा नहीं, बल्कि न्याय देना है।
प्रधानमंत्री मोदी के पांच प्रण में से एक यह भी...
शाह ने लोकसभा में बताया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने पिछले 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से देश के सामने 5 प्रण किए थे। उनमें से एक प्रण यह था कि हम गुलामी की सभी निशानियों को समाप्त कर देंगे। आज मैं जो तीन बिल लेकर आया हूं, वह तीनों विधेयक मोदीजी के प्रणों में से एक को पूरा कर रहे हैं।
नए बिलों से क्या बदलेगा…, ऐसे समझें...
- IPC की जगह लेने वाले नए बिल में राजद्रोह के प्रावधानों को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा।
राजद्रोह कानून को लेकर क्या बदला
नए बिल में राजद्रोह कानून का नाम हटा दिया गया है। इसकी जगह अब धारा 150 के तहत आरोप तय किए जाएंगे। जिसमें आजीवन कारावास या तीन साल तक की कैद की सजा हो सकती है। दोषियों की संपत्ति कुर्क करने का आदेश कोर्ट देगा, ना की कोई पुलिस अधिकारी। इसके अलावा मामलों के दोषियों को 3 साल के अंदर न्याय मिलेगा। अभी राजद्रोह कानून को IPC की धारा 124ए के नाम से जाना जाता है।
यह फायदा भी: अदालतों पर कम होगा बोझ, तीन वर्ष में मिल सकेगा न्याय
नए बदलाव के बाद देश की अदालतों में केस का बोझ कम करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही न्याय के लिए दशकों का इंतजार भी खत्म होगा। अब तीन वर्ष में न्याय मिल सकेगा। साक्ष्य अधिनियम में संशोधनों के बाद अपराधियों को सजा दिलाने में मदद मिलेगी। केंद्र सरकार का अनुमान है कि प्रस्तावित कानूनों पर पूरी तरह अमल के बाद सात वर्ष बाद अपराधियों को सजा की दर 90 प्रतिशत से अधिक हो जाएगी जो फिलहाल 50 प्रतिशत से भी कम है। इससे अपराधियों में कानून का डर भी बढ़ेगा।
प्रस्तावित कानूनों में और क्या किए जा रहे बदलाव
1- समरी ट्रायल का प्रावधान: प्रस्तावित कानूनों में पहली बार छोटे-मोटे अपराधों के निपटारे के लिए पूरे देश में समरी ट्रायल का स्थायी प्रावधान किया गया है। चोरी, चोरी की संपत्ति को रखना, शांति भंग, धमकी देने जैसे मामलों का अब समरी ट्रायल होगा और एक ही सुनवाई में जुर्माने या छोटे दंड के साथ इसे निपटा दिया जाएगा। तीन वर्ष से कम सजा (पुराने कानून में दो वर्ष) के सजा के मामलों में मजिस्ट्रेट समरी ट्रायल की इजाजत दे सकता है। अकेले इस प्रविधान अदालतों में 40 प्रतिशत तक केस का बोझ कम हो सकता है।
2- अकारण केस अब लंबा नहीं खिंच सकेगा : नए प्रावधानों में जांच और ट्रायल को समयबद्ध पूरा करने का बंदोबस्त किया गया है।
- चार्जशीट: पुलिस को किसी मामले की जांच एफआइआर दर्ज करने के बाद 90 दिनों में पूरी कर चार्जशीट दाखिल करनी होगी। यदि किसी विशेष परिस्थिति में जांच पूरी नहीं हो पाती है, अदालत 90 दिनों का अतिरिक्त समय दे सकती है, लेकिन किसी भी स्थिति में यह 180 दिनों से अधिक नहीं हो सकती है।
- स्टे (स्थगन) : ट्रायल के दौरान बार-बार स्टे लेने को सीमित कर दिया है। कोई भी आरोपित या वकील दो बार से अधिक स्टे नहीं ले सकेगा।
- कोर्ट का फैसला : सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत को भी अब 30 दिनों के भीतर फैसला सुनाना पड़ेगा।
- गवाही : ट्रायल के दौरान पुराने अधिकारियों की गवाही के कारण होने वाली देरी को रोका जाएगा। अब मौजूदा समय में तैनात अधिकारी ही अदालत में पुराने मामलों में गवाही देंगे, स्थानांतरित, पदोन्नत या फिर सेवानिवृत्त हो चुके अधिकारियों को आने की जरूरत नहीं होगी। इससे 70% मामलों के ट्रायल में देरी खत्म हो जाएगी।
- आरोप पत्र: आरोप पत्र पर पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर अदालत को आरोपितों पर आरोप तय करने होंगे।
- सरकारी मंजूरी : आरोपियों में सरकारी अधिकारी के शामिल होने की स्थिति में सरकार के लिए जरूरी मंजूरी हासिल करने की समयसीमा तय कर दी है। अब सरकार को ऐसे आरोपियों पर केस चलाने की अनुमति 120 दिनों के अंदर देनी होगी, नहीं तो डीम्ड अनुमति मानकर सुनवाई शुरू कर दी जाएगी।
फायदा : सरकार की कोशिश ट्रायल को तीन वर्ष के भीतर पूरा कर आरोपितों को सजा दिलवाने की है।
3- एक्सिडेंट के बाद घायल को छोड़कर भागे तो ज्यादा सजा : दुर्घटना के मामलों में अलग-अलग सजा का प्रावधान किया गया है। दुर्घटना के बाद यदि आरोपी घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुंचा देता है तो कम सजा होगी, लेकिन यदि वह उसे छोड़कर भाग जाता है तो इसे गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इस पर उसे कड़ी सजा भी हो सकेगी।
4- स्नैचिंग के लिए अलग से कानून : छोटे-बड़े शहरों और महानगरों में स्नैचिंग की समस्या बढ़ती जा रही है। इससे निपटने और उसके विरुद्ध स्पष्ट कानूनी प्रावधान नहीं होने से पुलिस कार्रवाई में दिक्कत आती है। इसको देखते हुए स्नैचिंग को लेकर अलग से प्रावधान बनाया गया है। इससे चेन, बैग, लैपटाप स्नैचिंग के मामलों को रोकने में मदद मिल सकती है।
5- डिजिटल होगी जांच : सात वर्षों से अधिक सजा वाले मामलों में फोरेंसिक जांच को अनिवार्य बनाया गया है। दिल्ली यह लागू हो चुकी है, वहीं पूरे देश में अगले सात वर्षों के अंदर हर जिले में तीन मोबाइल फोरेंसिक लैब स्थापित की जाएगी। ऐसे मामले में क्राइम सीन पर पुलिस जांच शुरू करने के पहले फोरेंसिक टीम को साक्ष्य जुटाना होगा।
6- न्यायिक प्रक्रिया डिजिटल होगी : अभी तक सिर्फ आरोपितों की कोर्ट में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए पेशी कराने का प्रावधान है। आगे एफआईआर से लेकर चार्जशीट और अदालत के फैसले तक पूरी प्रक्रिया डिजिटल की जाएगी। गवाहों और शिकायतकर्ता को भी वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश किया जा सकेगा। समन या नोटिस एसएमएस या ई-मेल से भेजा सकेगा। तकनीकी माध्यम से रिसीविंग की भी व्यवस्था की गई है।
7- भगोड़ों का भी होगा ट्रायल : अब तक भगोड़े अपराधियों के ट्रायल का प्रावधान नहीं था। प्रस्तावित कानून से दाऊद इब्राहिम जैसे भगोड़े अपराधियों के विरुद्ध 1993 के मुंबई बम ब्लास्ट समेत अन्य मामलों में ट्रायल शुरू किया जा सकेगा। कोर्ट को ऐसे अपराधियों का पक्ष रखने के लिए वकील की व्यवस्था करनी होगी। इससे विदेश भाग गए अपराधियों के प्रत्यर्पण में मदद मिलेगी। विश्व के 95% देशों में अपराधियों के प्रत्यर्पण के लिए पहले सजा होने का कानूनी प्रावधान है।