BAREILLY. उत्तरप्रदेश के बरेली में रुहेलखंड विश्वविद्यालय में कुटुंब स्नेह मिलन समारोह आयोजित किया जा रहा है। यहां के अटल सभागार में 19 फरवरी, रविवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सर संघचालक मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों और उनके परिजनों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि जाति का भेदभाव छोड़िए। हम सभी हिंदू हैं, जो दूसरी जातियां अलग-अलग धर्म अपनाए हुए हैं, उनके पूर्वज भी हिंदू थे।
हमें विभिन्न जातियों से मित्रवत संबंध बनाना चाहिए
उन्होंने कहा कि हमें विभिन्न जातियों, पंथ, भाषाओं और क्षेत्रों के परिवारों के साथ मित्रवत संबंध बनाकर उनके साथ नियमित रूप से मिलन, भोजन और चर्चा करनी चाहिए। विभिन्न आर्थिक स्तर के परिवारों के बीच परस्पर सहयोग की भावना जागृत हो, स्वयंसेवकों को इसके लिए प्रयास करना चाहिए।
ये खबर भी पढ़ें...
स्वयंसेवक परिवारों के जीवन का मंत्र अनुशासन हो
उन्होंने कहा कि कहा कि सक्षम, संपन्न और वंचित परिवारों के बीच परस्पर सहयोग की भावना होने पर कई सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का खुद ही निराकरण हो जाएगा। स्वयंसेवक परिवारों के जीवन का मंत्र देशार्चण, सद्भभाव, ऋणमोचन और अनुशासन होना चाहिए। देशार्चण से तात्पर्य है कि हमें देश की पूजा करनी चाहिए, अर्थात भारत के प्रति समर्पण भाव रखना चाहिए।
लोगों को अपनी मूल भाषा, वेशभूषा और भोजन को अपनाना होगा
डॉ. भागवत ने कहा कि परिवारों में एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागने पर ही देश और अधिक ताकतवर बन सकेगा। समाज को सुसंस्कृत, चरित्रवान, राष्ट्र के प्रति समर्पित और अनुशासित बनाने में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसलिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का प्रयास है कि स्वयं सेवकों के परिवारों को भारतीय संस्कृति की मूल अवधारणाओं से जोड़कर समाज को सशक्त बनाए। लोगों को अपनी संस्कृति से जुड़े रहने के लिए अपनी मूल भाषा, वेशभूषा और भोजन को अपनाना होगा। हमें अपनी संस्कृति में बने रहना होगा।
स्वयंसेवकों को राष्ट्र से जुड़े विषयों पर चर्चा करनी चाहिए
भागवत ने कहा कि शताब्दी वर्ष की तैयारियों को लेकर भी मैं स्वयंसेवकों से लगातार बात कर रहा हूं। लगभग 100 वर्षों में संघ का काफी विस्तार हुआ है। संघ की विचारधारा से प्रभावित होकर देश के लोग अब इस संगठन यानी आरएसएस की तरफ देखने लगे हैं।
संघ की समाज में छवि स्वयंसेवकों के आचरण से ही बनी है। स्वयंसेवकों का आचरण जितना अच्छा होगा, संघ की छवि भी उतनी ही अच्छी बनेगी। स्वयंसेवकों को सप्ताह में कम से कम एक दिन अपने परिवार और मित्र परिवारों के साथ बैठकर भोजन करने के अलावा राष्ट्र और सांस्कृतिक विरासत से जुड़े विषयों पर चर्चा करनी चाहिए।