Bangalore. भारत जल्द इतिहास रचने जा रहा है। चंद्रयान-3 अब चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने से सिर्फ छह दिन दूर है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अब एक और कदम उठाने जा रहा है। चंद्रयान-3 को पृथ्वी की कक्षा से चंद्रमा की कक्षा में भेजने के लिए 1 अगस्त को 12 बजे से 1 बजे के बीच उसके थ्रस्टर्स को चालू करने की योजना है। 31 जुलाई की मध्यरात्रि में ट्रांस-लूनर इंजेक्शन की प्रक्रिया को पूरा होने में 28 से 31 मिनट के बीच का समय लगने की उम्मीद जताई गई है। चंद्रयान-3 के ऑनबोर्ड थ्रस्टर्स को तब फायर किया जाएगा, जब चंद्रयान-3 पृथ्वी के निकटतम बिंदु पर होगा।
थ्रस्टर्स को चालू करने की क्या है वजह?
चंद्रयान-3 के थ्रस्टर्स को चालू कर रफ्तार बढ़ाने की कोशिश उसके धरती के सबसे करीब बिंदु से इसलिए की जाती है, क्योंकि तब उसकी गति सबसे ज्यादा होती है। चंद्रयान-3 मौजूदा वक्त में 1 किमी/सेकंड और 10. 3 किमी/सेकंड के बीच के वेग से अंडाकार कक्षा में पृथ्वी के चारों ओर घूम रहा है। चंद्रयान-3 का वेग पृथ्वी के सबसे करीबी बिंदु पर सबसे ज्यादा (10.3 किमी/सेकंड) और धरती से सबसे दूर बिंदु पर सबसे कम होता है।
इसरो ने बताई अगले छह घंटे की योजना...
इसरो ने बताया कि प्रक्रिया में थ्रस्टर्स के चालू होने से लगभग पांच-छह घंटे पहले ट्रांस-लूनर इंजेक्शन (टीएलआई) के कमांड को लोड किया जाएगा। इससे चंद्रमा की ओर बढ़ने के लिए चंद्रयान-3 को अपना कोण बदलने में मदद मिलेगी। थ्रस्टर्स की फायरिंग से चंद्रयान 3 की रफ्तार भी बढ़ जाएगी। टीएलआई के बाद चंद्रयान-3 का वेग पेरिगी की तुलना में लगभग 0.5 किमी/सेकंड अधिक होने की उम्मीद है।
51 घंटे में 1.2 लाख किमी का सफर
चंद्रयान-3 को औसतन 1.2 लाख किलोमीटर का सफर तय करने में करीब 51 घंटे का समय लगता है, जबकि पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की औसत दूरी 3.8 लाख किमी है। हालांकि, किसी भी दिन वास्तविक दूरी पृथ्वी और चंद्रमा की स्थिति के आधार पर अलग होगी।
कैसे होगी लैंडिंग?
इसरो ने बताया कि चंद्रयान-3 का अधिक महत्वपूर्ण हिस्सा अंतरिक्ष यान के चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने के बाद शुरू होगा। चंद्रयान-3 जब चंद्रमा की कक्षा में पहुंच जाएगा तो इसरो चंद्रयान-3 की ऊंचाई को कम करना और उसे 100 किमी की गोलाकार कक्षा में स्थापित करने के लिए प्रक्रिया शुरू करेगा। इसको लेकर इसरो ने पूरी योजना बनाई है।
चंद्रमा से पृथ्वी की दूरी कितनी
एक अनुमान के अनुसार, चंद्रमा से पृथ्वी की दूरी की सीमा 3.6 लाख किमी से 4 लाख किमी के बीच हो सकती है। इसरो पहले ही 2008 (चंद्रयान -1) और 2019 (चंद्रयान -2) में चंद्रमा के चारों ओर एक उपग्रह भेज चुका है। हालांकि चंद्रयान 2 सफल नहीं हो सका।
17 अगस्त को लैंडिंग मॉड्यूल से अलग होगा प्रोपल्शन मॉड्यूल
इसरो ने प्रोपल्शन मॉड्यूल को 17 अगस्त को लैंडिंग मॉड्यूल से अलग करने का समय तय किया है। इसके बाद 23 अगस्त को चंद्रयान-3 को चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग कराने की कोशिश की जाएगी। सबकुछ ठीक रहा तो भारत इतिहास रच देगा।