मां जन्म ही नहीं देती, संतान को संवारती भी हैं, जानें 6 मांओं को, जिन्होंने महान संन्यासी-दार्शनिक-योद्धा-क्रांतिकारी-खिलाड़ी दिए

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Atul Tiwari
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मां जन्म ही नहीं देती, संतान को संवारती भी हैं, जानें 6 मांओं को, जिन्होंने महान संन्यासी-दार्शनिक-योद्धा-क्रांतिकारी-खिलाड़ी दिए

BHOPAL. आज (14 मई) को मदर्स डे मनाया जा रहा है। मदर्स डे एक ऐसा दिन जिस दिन बच्चे अपनी मां के सम्मान के लिए उन्हें स्पेशल फील कराते हैं. मां का ऋण कोई भी कभी नहीं उतार सकता है, क्यों मां शब्द ही ऐसा है जिसमें बच्चे का पूरा संसार बसता है। जानें मदर्स डे का इतिहास, कहां से और क्यों शुरू हुआ। 





अमेरिका से शुरू हुआ ये दिन





अमेरिका की ऐना एम जार्विस को मदर्स डे को शुरुआत करने का श्रेय जाता है। ऐना का जन्म अमेरिका के वेस्ट वर्जीनिया में हुआ, ऐना की मां अन्ना एक स्कूल टीचर थीं। एक दिन स्कूल में बच्चों को पढ़ाते वक्त उन्होंने बताया कि एक दिन ऐसा आएगा जब मां के लिए एक दिन समर्पित किया जाएगा। ऐना की मां के निधन के बाद, ऐना और उसके दोस्तों ने एक अभियान शुरू किया, जिसमें कहा गया कि मदर्स डे के दिन राष्ट्रीय छुट्टी हो। ऐना इसलिए ऐसा करना चाहती थीं, ताकि जब तक बच्चों की मां जीवित हैं, वे उनका सम्मान करें और उनके योगदान की सराहना करें। पहला मदर्स डे मई 1914 को अमेरिका में मनाया गया। तबसे आज तक मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे के रूप में मनाया जाता है।





ऐना अपनी मदर से बहुत इंस्पायर हुआ करतीं थीं और उन्होंने अपनी मां के निधन के बाद शादी ना करने का फैसला लिया था। ऐना ने अपना सारा जीवन अपनी मां के नाम करने का संकल्प लिया और अपनी मां को सम्मान देने के उद्देश्य से मदर्स डे की शुरूआत की। इसके लिए ऐना ने इस तरह की तारीख चुनी कि वह उनकी मां की पुण्यतिथि 9 मई के आस-पास ही पड़े। यूरोप में इस दिन को मदरिंग संडे कहा जाता है, तो वहीं ईसाई समुदाय से जुड़े बहुत लोग इस दिन को वर्जिन मेरी के नाम से भी पुकारते हैं। अमेरिका, भारत, न्यूजीलैंड, कनाडा और कई देशों में इस त्योहार को मई के दूसरे रविवार के दिन मनाया जाता है। वहीं, कुछ देशों में मदर्स डे को मार्च के महीने में मनाया जाता है।





ऐसे मनाते हैं मां को सम्मान देने का त्योहार





वैसे तो हर कोई अपनी मां की अहमियत को अच्छे से समझता है, लेकिन इस बात का अहसास मां को नहीं करवा पाता। ऐसे में मां को उनकी अहमियत का अहसास करवाने और उनको स्पेशल फील करवाने के लिए मदर्स डे को सेलिब्रेट किया जाता है। भारत में हर कोई इस दिन को अपने अलग अंदाज में मनाने की कोशिश करता है. कुछ लोग मां को उनका फेवरेट गिफ्ट विश करते हैं। कुछ लोग मां को घर के कामों से छुट्टी देकर बाहर घुमाने भी ले जाते हैं। सोशल मीडिया पर भी मदर्स डे को लेकर कई सारे कोट्स शेयर किए जाते हैं।





जानें इन मांओं को





1. भारत के पहले महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की मां- चंद्रगुप्त का जन्म 340 ईसा पूर्व में हुआ था। चंद्रगुप्त ने 322 ईसा पूर्व से 198 ईसा पूर्व तक शासन किया। विशाखदत्त के नाटक 'मुद्राराक्षस' में चंद्रगुप्त को नंदपुत्र ना कहकर मौर्यपुत्र कहा गया है। कहा गया है कि चंद्रगुप्त, मुरा नामक निम्न जाति की महिला के बेटे थे। मुरा पाटलिपुत्र के शासक (मौर्यों से पहले) घनानंद के दरबार में नर्तकी थीं। उन्हें राज्य छोड़कर जाने का आदेश दिया गया था। कुछ विद्वानों का कहना है कि मुरा का संबंध मोर पालने वाली जाति से था। इतिहासकारों के मुताबिक, चंद्रगुप्त के पिता की मौत उनके जन्म लेने से पहले ही हो गई थी। जब चंद्रगुप्त 10 साल के थे तो उनकी मां मुरा भी दुनिया से चली गईं। उनकी परवरिश आचार्य चाणक्य ने की थी। एक बार चंद्रगुप्त घर के बाहर खेलते हुए कांटों के पौधे की जड़ में मठा डाल रहे थे। वहां से गुजर रहे चाणक्य ने इसकी वजह पूछी तो चंद्रगुप्त ने कहा कि जड़ों में मठा डालने से वह कभी नहीं पनपेगा। इस बात ने चाणक्य को प्रभावित किया। कहा जाता है कि मुरा की अनुमति लेकर चाणक्य चंद्रगुप्त को अपने साथ ले गए। 





2. आदि शंकराचार्य की मां- आदि शंकराचार्य (788-820 ई.) का जन्म केरल के कालड़ी में हुआ। शंकराचार्य के माता-पिता (शिवगुरु भट्ट और सुभद्रा) ने उनके जन्म के लिए वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या की थी. जिसके बाद  इस बालक का जन्म हुआ। शंकराचार्य अपनी मां की बहुत सेवा और सम्मान किया करते थे। बचपन में नदी किनारे एक मगरमच्छ ने शंकराचार्य का पैर पकड़ लिया। तब शंकराचार्य ने अपने मां से कहा, मां मुझे सन्यास लेने की आज्ञा दो, नहीं तो मगरमच्छ मुझे खा जाएगा। मां ने तुरंत संन्यासी होने की आज्ञा दे दी। कथाओं के अनुसार, शंकराचार्य की माता को स्‍नान करने के लिए पूर्णा नदी तक जाना पड़ता था, यह नदी गांव से बहुत दूर बहती थी। शंकराचार्य की मातृभक्ति देखकर नदी ने भी अपना रुख उनके गांव कालड़ी की ओर मोड़ दिया। शंकराचार्य ने संन्यास लेते समय मां को वचन दिया था कि वे उनके जीवन के अंतिम समय में उनके पास रहेंगे और खुद उनका दाह-संस्‍कार भी करेंगे। अपनी मां को दिए वचन को पूरा करने के लिए जब शंकराचार्य मां के अंतिम समय में उनका दाह-संस्‍कार करने गांव पहुंचे तो लोगों ने यह कहकर उऩका विरोध करना शुरू कर दिया कि संन्‍यासी व्यक्ति किसी का अंतिम संस्कार नहीं कर सकता। लोगों के इस तर्क पर शंकराचार्य ने जवाब देते हुए कहा कि जब उन्होंने अपनी मां को वचन दिया था तब वह संन्‍यासी नहीं थे। उन्‍होंने अपने घर के सामने ही मां की चिता सजाते हुए उनकी अंतिम क्रिया की। इसके बाद से कालड़ी में अब घर के सामने दाह-संस्‍कार करने की पंरपरा बन गई।





3. शिवाजी की मां- शिवाजी (1627-80) की मां का नाम जीजाबाई था। शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले ने जीजाबाई को छोड़कर तुकोबाई से शादी कर ली थी। शिवाजी को राजा बनाने में जीजाबाई का बड़ा योगदान था। छोटी ही उम्र से गुरु समर्थ रामदास की मदद से उन्होंने शिवाजी महारीज को एक सैनिक की तरह बड़ा किया। साथ ही उनके अंदर वीरता के बीज रोपित करती रहीं। शिवाजी और उनका मां जीजाबाई का एक किस्सा मशहूर है। एक दिन उन्होंने शिवाजी को अपने पास बुलाया और कहा, "बेटा शिवा! तुमने किसी भी कीमत पर सिंहगढ़ जीतना है। उन्होंने शिवाजी के अंदर जोश भरते हुए कहा, बेटा अगर तुमने इसके ऊपर लहराते हुए विदेशी झंडे को उतार कर नहीं फेंका तो कुछ भी नहीं किया. मैं तुम्हें उसी समय अपना पुत्र समझूंगी, जब तुम ऐसा करने में सफल होगे।"





उस समय तक शिवाजी बहुत परिपक्व नहीं हुए थे। उन्होंने जीजाबाई के सामने सिर झुकाते हुए कहा, "मां! मुग़लों की सेना हमारी तुलना में बहुत विशाल है। हमारी मौजूदा स्थिति भी उनकी तुलना में कमजोर है। ऐसे में उनसे युद्ध करना और सिंहगढ़ से उनका झंडा उतारना आसान नहीं होगा। यह एक कठिन लक्ष्य है।" शिवाजी का यह जवाब जीजाबाई के गले से नहीं उतरा। वो गुस्से में कहा, 'धिक्कार है तुम्हें बेटा शिवा! तुम्हें खुद को मेरा बेटा कहना छोड़ देना चाहिए। तुम चूड़ियां पहनकर घर में बैठो। मैं स्वयं फौज के साथ सिंहगढ़ के दुर्ग पर आक्रमण करूंगी और विदेशी झंडे को उस पर से उतार कर फेंक दूंगी।' मां की इन्हीं लाइनों ने शिवाजी को शक्तिशाली योद्धा बनाया। बाद में शिवाजी ने सिंहगढ़ जीता, लेकिन इस युद्ध में अपने सबसे विश्वासपात्र तानाजी को खो दिया।





4. विवेकानंद की मां- स्वामी विवेकानंद (1863-1902) के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त (वकील) और मां का नाम भुवनेश्वरी देवी था। भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं। उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। नरेंद्र के पिता की आधुनिक सोच और उनकी मां के धार्मिक, प्रगतिशील व तर्कसंगत विचारों ने उनकी सोच और व्यक्तित्व को आकार देने में सहायता की। विवेकानंद ने अपने कई पत्रों में मां को लेकर कई बातें लिखीं। 1. दो महीने पहले, मैंने सपना देखा कि मेरी माँ मर चुकी है और मैं उनके बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक था। 2. अगर कोई प्राणी है, जिसे मैं पूरी दुनिया में प्यार करता हूं, तो वह मेरी मां है। 3. एक बड़ा पाप मेरे हृदय में सदैव गूंजता रहता है और वह है संसार की सेवा करने के लिए मैंने अपनी माता की उपेक्षा की है। जब से मेरा दूसरा भाई चला गया है, वह दुख से बुरी तरह थक गई है। अब मेरी अंतिम इच्छा है कि कम से कम कुछ वर्षों के लिए सेवा करूं और मां की सेवा करूँ। मैं अपनी मां के साथ रहना चाहता हूं और परिवार के विलुप्त होने से बचाने के लिए अपने छोटे भाई की शादी करवाना चाहता हूं। यह निश्चित रूप से मेरे और साथ ही मेरी मां के अंतिम दिनों को सुचारू करेगा। वह अब झोपड़ी में रहती है। मैं उसके लिए एक छोटा, अच्छा घर बनाना चाहता हूं। (इस पत्र में विवेकानंद ने अजीत सिंह से मां का घर बनवाने के लिए मदद का अनुरोध किया) 4. मेरे लिए यह स्पष्ट होता जा रहा है कि मैं मठ की सभी चिंताओं को दूर कर देता हूं और कुछ समय के लिए अपनी मां के पास वापस जाता हूं। उसने मेरे द्वारा बहुत कुछ सहा है। मुझे उसके आखिरी दिनों को सुचारू करने की कोशिश करनी चाहिए। 5. 1884 में अपनी मां को छोड़ना एक महान त्याग था - अब अपनी माँ के पास वापस जाना एक बड़ा त्याग है। शायद माँ चाहती हैं कि मुझे वही भुगतना पड़े जो उन्होंने पुराने दिनों में महान आचार्य को दिया था।





5. जब क्रांतिकारी बेटे की जिंदगी बचाने मां ने करवाया था अखंड पाठ- देश पर अपनी जान न्यौछावर करने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह की मां का नाम विद्यावती था। उन्हें 23 मार्च 1931 को फांसी की दी गई थी। कहा जाता है कि भगत सिंह को फांसी की सजा की आशंका के चलते उनकी मां विद्यावती ने उनकी जीवन की रक्षा के लिए एक गुरुद्वारे में अखंड पाठ कराया था। पाठ करने वाले ग्रंथी ने प्रार्थना करते हुए कहा- गुरु साहब, मां चाहती है कि उसके बेटे की जिंदगी बच जाए, लेकिन बेटा देश के लिए कुर्बान हो जाना चाहता है। मैंने दोनों पक्ष आपके सामने रख दिए हैं जो ठीक लगे, मान लेना। उस समय विद्यावती ने अपनी ममता से ज्यादा तवज्जो भगत सिंह के भारत माता के प्रति प्रेम को दी थी।





6. मां ने बनाया शतरंज का बादशाह- भारत के शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद का नाम सुनते ही दिमाग में शतरंज की बिसात पर हाथी-घोड़े दौड़ जाते हैं। विश्वनाथन आनंद ने शतरंज की पहली चाल बचपन में अपनी मां सुशीला से सीखी थी। उनके पिता विश्वनाथन अय्यर, मां-बेटे के खेल को देखकर तालियां बजाया करते थे। करीब 6 साल की उम्र में मां ने विश्वनाथ को शतरंज की हर एक चाल को समझना सिखाया। आनंद ने बताया था कि शुरुआत में परेशानी हुई लेकिन जब मां को ये अहसास हुआ कि मुझे इस खेल में दिलचस्पी है तो उन्होंने मेरा दाखिला चेन्नई चेस क्लब में करवा दिया। मैं ट्रेनिंग सेशन में भाग लिया करता था। अगर कभी मुझे अगले दिन ट्रेनिंग पर जाना होता था तो मैं अपना होमवर्क एक शाम पहले ही खत्म कर लिया करता था। आनंद बताते हैं कि मां हर टूर्नामेंट देखती थीं और बताती थीं कि मैंने किस चाल में गलती की। 





मां को लेकर 10 कोट्स







  • वेद व्यास- जब तक मां जीवित रहती है, मनुष्य सनाथ रहता है और उसके न रहने पर वह अनाथ हो जाता है।



  • आदि शंकराचार्य- कहीं कुपुत्र तो जन्म ले सकता है, पर माता कभी कुमाता नहीं होती।


  • अब्राहम लिंकन- मैं जो कुछ भी हूं या होने की आशा करता हूं, उसका श्रेय मेरी मां को है।


  • मैक्सिम गोर्की- माताएं ही भविष्य के विषय में विचार कर सकती हैं, क्योंकि वे अपनी संतानों में भविष्य को जन्म देती हैं।


  • दादाभाई नौरोजी- मैं जो कुछ हूं, वो मां का बनाया हुआ हूं।


  • मुंशी प्रेमचंद- एक शब्द में मां को ‘लय’ कहूंगा– जीवन की, व्यक्तित्व की और नारीत्व की भी।


  • सुभाषचंद्र बोस- मनुष्य जीवन में एक स्थान ऐसा चाहता है जहां तर्क, विचार और विवेचना ना रहे, रहे केवल श्रद्धा...संभवतः इसी कारण मां का सृजन हुआ होगा।


  • स्वामी विवेकानंद- मातृपद ही संसार का श्रेष्ठ पद है, क्योंकि यही एक ऐसी स्थिति है, जहां निस्वार्थ होने की शिक्षा प्राप्त की जा सकती है।


  • रुडयार्ड किपलिंग- भगवान हर जगह नहीं हो सकता। इसलिए उसने मां को बनाया।


  • इजरायली लोकोक्ति- एक मां वो भी समझती है, जो बच्चा कहता नहीं है।




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