NEW DELHI. 28 मई को देश के सामने दो तस्वीरें आई एक तरफ देश को नया संसद भवन मिला, जिसका भव्य उद्घाटन रीति रिवाजों और वैदिक मंत्रों के साथ पीएम मोदी ने किया। दूसरी तरफ सड़क पर भारत माता की जय और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते देश के पहलवान हाथों में तिरंगा लेकर सड़कों से गुजर रहे थे। इन्हें रोकने के लिए सड़कों पर पुलिसबल तैनात था। नई संसद में पीएम मोदी समेत तमाम बड़े नेता मौजूद थे तो वहीं सड़कों पर पहलवान पुलिस से बल आजमा रहे थे।
तीन राज्यों में असर डालेगा प्रदर्शन!
पहलवान बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पिछले करीब एक महीने से दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना दे रहे थे। 28 मई को पुलिस ने दो पहलवानों बजरंग पुनिया और साक्षी मलिक समेत प्रदर्शन कर रहे सभी पहलवानों को उनके समर्थकों समेत हिरासत में लिया, बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं। सवाल ये है कि इस पूरे मामले का राजनीतिक परिणाम आखिर क्या होगा? क्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में बीजेपी को पहलवानों के इस प्रदर्शन का नुकसान होगा, या फिर इस प्रदर्शन का वही हश्र होगा जो किसान आंदोलन का हुआ था।
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18 लोकसभा और 120 विधानसभा सीटों पर दखल
यूपी में जाटों की कुल आबादी करीब 8 फीसदी बताई जाती है। पश्चिमी यूपी में 17 फीसदी से ज्यादा वोटर जाट समुदाय से हैं। यूपी की 18 लोकसभा सीटों पर जाट वोट बैंक चुनावी नतीजों पर सीधा असर डालता है। इनमें सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, बिजनौर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़, नगीना, फतेहपुर सीकरी, और फिरोजाबाद शामिल हैं। दूसरी तरफ विधानसभा की कुल 120 सीटों पर जाट वोट बैंक का दखल है। फिलहाल संसद में 24 सांसद जाट समुदाय से हैं। जिनमें सिर्फ 4 सांसद भारतेंदु सिंह, सत्यपाल सिंह, चौधरी बाबूलाल और संजीव बालियान यूपी से आते हैं। विधानसभा में कुल 14 जाट विधायक हैं। लोकसभा सीटों पर मथुरा में 40 फीसदी, बागपत में 30 फीसदी, सहारनपुर में 20 फीसदी जाट आबादी है। पहलवानों के प्रदर्शन में जाट भी शामिल हो रहे हैं तो क्या लोकसभा चुनाव में पहलवानों के इस प्रदर्शन का यूपी के जाट बाहुल्य इन जिलों पर कोई प्रभाव पड़ेगा?
किसान आंदोलन की तरह होगा पहलवानों के आंदोलन का हाल?
इस मामले को करीब से देखने वाले कुछ वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि अभी पहलवानों का मुद्दा सबसे ज्यादा प्रभावी मुद्दा है, लेकिन ये मुद्दा चुनाव के पास आने तक कितना बड़ा रहेगा इस बारे में अभी से कुछ कहना ठीक नहीं होगा। किसान आंदोलन को लेकर भी कहा जा रहा था कि इस आंदोलन का असर बीजेपी पर चुनाव में पड़ेगा। लेकिन यूपी चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार ने कानून वापस ले लिया था। पिछली बार सपा और बसपा दोनों मिलकर चुनाव लड़ी थी। इसके बावजूद बीजेपी ने यूपी में भारी बहुमत से सत्ता हासिल की थी। इस बार दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं, जो बीजेपी को और मजबूत बनाएगा।
पहलवान के प्रदर्शन से 10 सीटों पर पड़ेगा सीधा असर
यूपी की 18 लोकसभा सीटों पर जाट वोटरों का सीधा असर है। इनमें बागपत में 30 फीसदी जाट वोटरों का दबदबा है। मेरठ में 26 फीसदी जाट वोटरों का दबदबा है। ये बीजेपी की परंपरागत सीट भी है। सहारनपुर में 20 फीसदी जाट वोटर हैं। मथुरा में 18 फीसदी जाट वोटर हैं। अलीगढ़, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मुरादाबाद, आगरा, कैराना सीटों को भी जाट वोटरों का दबदबा माना जाता है। इन सभी सीटों पर जाट वोटरों का सीधा असर बीजेपी पर पड़ सकता है।
चुनाव से पहले आकलन मुश्किल
चुनाव नजदीक आते ही सभी राज्यों के वोटरों को विपक्ष अपनी तरफ करने की कोशिश में लग चुकी है। पहलवान के प्रदर्शन के बाद हरियाणा, पश्चिमी यूपी के जाट और राजस्थान के जाट वोटरों को विपक्ष सीधे तौर पर साधने की कोशिशें जारी है। जिस तरह से किसान पहलवानों के साथ आंदोलन में उतर आए हैं, वो एक वक्ती गुस्सा हो सकता है। दूसरा पहलू ये है कि किसानों के खाते में हर महीने 6 हजार रुपए केन्द्र सरकार डाल रही है। यानी बीजेपी ने आज से नहीं कई साल पहले से ही किसानों को साधने की कोशिश जारी रखे हुए है। राजस्थान में कुल 200 विधानसभा सीटों पर 30 से 40 विधानसभा सीटों पर जाट कैंडिडेट चुनाव जीतता है। अगर ये जाट कैंडिडेट पहलवानों और जाटों का मुद्दा उठाएंगे तो राजस्थान के विधानसभा चुनाव पर असर दिखेगा, लेकिन ये नहीं कहा जा सकता कि लोकसभा में ये मुद्दा हावी होगा। क्योंकि राजस्थान में लोकसभा और विधानसभा के लिए मुद्दे बदल जाते हैं। आपको बता दें कि बीजेपी एक ऐसी पार्टी है जो 360 दिन चुनाव पर काम करती है। ऐसे में रुख कब किस तरफ बदल जाए ये अभी कह पाना मुश्किल है।
हरियाणा में जाट वोटर बिगाड़ सकते हैं खेल
हरियाणा में जाट समुदाय का काफी बोलबाला है। माना जाता है कि करीब 28 फीसद जाट समुदाय किसी भी दल को सत्ता तक पहुंचा सकते हैं या सत्ता से बाहर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। हरियाणा में 10 जिलों की 30 से 35 विधानसभा सीटों पर जाट मतदाता पूरी तरह से निर्णायक हैं। छह लोकसभा सीटों पर भी जाट वोटर्स का बोलबाला हैं। हरियाणा के रोहतक, सोनीपत, झज्जर, चरखी दादरी, पानीपत, जींद, कैथल, सिरसा, फतेहाबाद, हिसार और भिवानी रको जाट बहुल माना जाता है।
राजस्थान में भी कई इलाकों में है जाट समुदाय का प्रभुत्व
राजस्थान में 200 विधानसभा सीटें हैं, इन सभी सीटों में से 30 से 40 विधानसभा सीटों पर जाट जाति का कैंडिडेट चुनाव जीतता है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और नगौर सांसद हनुमान बेनीवाल कल रो रहे थे। अभी से कई नेताओं ने पहलवानों के मुद्दे को भुनाना शुरू कर दिया है। राजस्थान में बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर , बीकानेर, गंगानगर, चूरू, सीकर, नागौर , हनुमानगढ़ जयपुर सहित कई जिलों में जाट जाति ही पाई जाती है। अगर ये मुद्दा लोकसभा चुनाव तक गर्म रहता है तो इसका असर जाट वोटरों पर पड़ेगा। बीजेपी के जाट वोटर इन इलाकों में दूसरे पक्ष में वोट डाल सकते हैं। राजस्थान के शेखावटी में जाट समुदाय का बोलबाला है। यहां पर हर चुनाव में शेखावटी ही किसी भी पार्टी का भाग्य तय करती है। इसी तरह जोधपुर और बीकानेर, बाड़मेर में जाटों का ही बोलबाला है। बांसवाड़ा और मेवाड़ को छोड़कर सभी डिविजन में (कुल 7 में से 5 ) जाटों का प्रभुत्व है।