पाकिस्तान से भारत आए थे सिंधी आज देश का अहम हिस्सा, राजनेता, एक्टर से लेकर संत तक दिए, जानें हेमू कालाणी और उनका योगदान

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Atul Tiwari
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पाकिस्तान से भारत आए थे सिंधी आज देश का अहम हिस्सा, राजनेता, एक्टर से लेकर संत तक दिए, जानें हेमू कालाणी और उनका योगदान

BHOPAL. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 31 मार्च को सिंधी समाज का बड़ा कार्यक्रम हुआ। ये कार्यक्रम सिंधी समाज के शहीद हेमू कालाणी की जन्मशती पर था। सिंधी का संबंध पाकिस्तान के सिंध प्रांत से है। ऐतिहासिक स्रोतों से मिली जानकारी के मुताबिक, बंटवारे से पहले सिंध भूमि पर हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे के साथ भाईचारे से रहते थे। बाद में हालात बिगड़ने के बावजूद सिंधियों पर स्थानीय मुसलमानों ने हमले नहीं किए। लेकिन जब हिंदुस्तान से मुहाजिर वहां पहुंचने लगे तो उन्होंने सिंधियों की जमीन-जायदाद हड़पने के मकसद से दंगे-फसाद करवाने शुरू किए। इसके चलते 1947 के बंटवारे में बड़ी तादाद में सिंधी भागकर भारत आ गए थे। 





भारत में मेहनत से मुकाम हासिल किया





भारत आए सिंधियों को 96 कैंपसों में ठूंस दिया गया, जहां बुनियादी सुविधाएं भी ढंग से उपलब्ध नहीं थीं, लेकिन सिंधियों ने हिम्मत नहीं हारी। उनकी निगाह में कोई भी काम छोटा-बड़ा नहीं था। उन्होंने सिर पर टोकरा उठाने में भी शर्म महसूस नहीं की। पूरे आत्मसम्मान के साथ फुटपाथ पर छोटा-मोटा व्यापार किया, बस कंडक्टर बने, ट्रेन में सामान बेचा। सिंधियों का उसूल है- थोरे खटिए घणी बरिकत यानी थोड़े मुनाफे से भी काफी समृद्धि हासिल की जा सकती है। जब उन्होंने सस्ता माल बेचना शुरू किया तो मुनाफाखोरों ने उनके माल को नकली कहकर उन्हें बदनाम किया। पर सिंधियों ने धैर्य नहीं खोया और अपने सिद्धांत से समझौता नहीं किया।





जल्दी ही उनकी सचाई, ईमानदारी और मेहनत रंग लाई और उन्होंने अपनी तारीख के नए पन्ने लिखे। अपनी मजबूत जमीन तैयार की, अपनी कमाई से सबका भला करने और देश के विकास में अपना योगदान देने के लिए स्कूल व कॉलेज खोले, रोगियों की सेवा के लिए हॉस्पिटल बनाए, मुसाफिरों के लिए धर्मशालाएं स्थापित कीं। घर बनाए, इंडस्ट्रियल हाउसेज खोले। 





सिंधी समाज से ये दिग्गज निकले





देश के गृह मंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. एलएच हीरानंदानी और डॉ. सुरेश आडवानी जैसे विश्व प्रसिद्ध डॉक्टर, फिल्म डायरेक्टर गोविंद निहलानी और रमेश सिप्पी, एडमिरल आरएच टहलियानी, पूर्व क्रिकेटर नरेंद्र हिरवानी, एक्टर रणवीर सिंह, संत हिरदाराम। 





मुस्लिम और हिंदू सिंधी





मुस्लिम सिंधी- सिंध की स्थिर समृद्धि और इसकी रणनीतिक भौगोलिक स्थिति के चलते यह विदेशी साम्राज्यों की पसंद था। 712 ई. में सिंध को खलीफा इस्लामिक साम्राज्य में शामिल कर लिया गया और वह भारत में 'अरेबियन गेटवे' बन गया। बाद में इसे बाब-उल-इस्लाम के नाम से जाना जाने लगा। तब सिंध का राजा दाहिर था।



मुस्लिम सिंधी सुन्नी हनफी फिक्ह का पालन करते हैं, जिसमें अल्पसंख्यक शिया इल्ताना हैं। सूफीवाद ने सिंधी मुसलमानों पर एक गहरा प्रभाव छोड़ा है और यह कई सूफी मंदिरों में दिखाई देता है।





हिंदू सिंधी- इस्लामी विजय से पहले हिंदू धर्म सिंध में प्रमुख धर्म था। पाकिस्तान की 1998 की जनगणना के अनुसार, हिंदुओं ने सिंध प्रांत की कुल आबादी का करीब 8% हिस्सा बनाया था। उनमें से ज्यादातर कराची, हैदराबाद, सुक्खर और मीरपुर खास जैसे शहरी इलाकों में रहते हैं। हैदराबाद (पाकिस्तान) में सिंधी हिंदुओं का सबसे बड़ा केंद्र है, जहां एक से डेढ़ लाख लोग रहते हैं। 1947 में पाकिस्तान की स्वतंत्रता से पहले हिंदुओं का रेशो ज्यादा था। 1947 से पहले हालांकि, कराची में रहने वाले कुछ गुजराती बोलने वाले पारसियों (जोरास्ट्रियन) के अलावा, करीब सभी निवासी सिंधी थे, चाहे पाकिस्तान की स्वतंत्रता के समय मुस्लिम या हिंदू, 75% आबादी मुस्लिम थी और शेष सभी 25% हिंदू थे। 





सिंधियों के नाम में छिपा है बहुत कुछ





हिंदू सिंधी अपने नाम में आनी प्रत्यय (Suffix) लगाते हैं, जिसका मतलब है- यहां से उतारा गया। सिंधी हिंदू उपनाम का पहला भाग आमतौर पर पूर्वज के नाम या स्थान से लिया जाता है। एक व्यक्ति के उपनाम में उसके या उसके पैतृक गांव का नाम होगा। आनी प्रत्यय ना केवल ये बताता है कि उपनाम रखने वाला व्यक्ति सिंधी है, बल्कि उनकी जाति के बारे में भी जानकारी प्रदान करता है।





सिंध यानी सिंधु घाटी की सभ्यता का गढ़, शांतिप्रिय होते हैं सिंधी





सिंध में ही सिंधु घाटी की सभ्यता (2350 BC से 1750 BC) फली-फूली। सिंधु घाटी की सभ्यता का प्रमुख शहर मोहनजोदड़ो सिंध (लरकाना) में ही था। वहां नागरिक सभ्यता के अवशेष के तौर पर सबकुछ मिला, लेकिन हथियार नहीं मिले। ये बताता है कि सिंधी शांतिप्रिय थे। इसकी पुष्टि तब भी होती है, जब बंटवारे के बाद हिंदू सिंधियों को पाकिस्तान से जाने के लिए कहा गया। सिंधियों ने इसका विरोध नहीं किया। वे जिस हाल में थे, उसी हाल में भारत आने के लिए तैयार हो गए। सिंध में रक्तपात नहीं हुआ, दंगा नहीं हुआ।





जानें हेमू कालाणी को, अंग्रेज सशर्त पर हेमू को छोड़ने को तैयार थे, लेकिन उन्होंने फांसी चुन ली





स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमरी शहीद हेमू कालाणी का जन्म सिंध के सुक्खर (अब पाकिस्तान) में 23 मार्च 1923 को हुआ था। उनके पिता का नाम पेसूमल कालाणी और मां जेठी बाई थी। ये इत्तेफाक ही है कि जिस दिन हेमू पैदा हुए, उसी दिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी हुई थी। हेमू बचपन से ही मां भारतीय को आजाद होते हुए देखना चाहते थे। हेमू जब 7 साल के थे, तब तिरंगा लेकर अंग्रेजों की बस्ती में अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों की अगुवाई करते थे। 1942 में 19 साल की उम्र में गांधीजी से प्रभावित होकर वे असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। वे इतने सक्रिय थे कि अंग्रेज उनसे खार खाने लगे थे।





1942 में हेमू को यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेज सेना हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी। इन हथियारों का इस्तेमाल देश के क्रांतिकारियों के दमन में होना था। हेमू कालाणी अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना बनाई। वे यह सब कार्य गुप्त रूप से कर रहे थे, लेकिन वहां तैनात पुलिसकर्मियों ने उन्हें देख लिया। उन्होंने हेमू कालाणी को गिरफ्तार कर लिया, जबकि बाकी साथी फरार हो गए। हेमू कालाणी को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई।





उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने याचिका दायर की। वाइसरॉय से उनको फांसी की सजा ना देने की अपील की। वाइसरॉय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि हेमू कालाणी साथियों का नाम और पता बताए। हेमू ने अंग्रेजों की यह शर्त नहीं मानी और फांसी पर चढ़ना स्वीकार किया। 21 जनवरी 1943 को उन्हें फांसी की सजा दी गई। फांसी से पहले अंतिम इच्छा पूछी तो उन्होंने कहा कि मैं फिर भारत में जन्म लेना चाहता हूं।





भारत में सिंधियों की बड़ी आबादी





भारत में करीब एक करोड़ सिंधी रहते हैं। पाकिस्तान में करीब 4 करोड़ तो बाकी दुनिया में 1 करोड़ सिंधी रहते हैं। यूनेस्को की लेंग्वेज की लिस्ट में सिंधी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा में 49वें नंबर पर है। 



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