मुस्लिम लीग पहुंची सुप्रीम कोर्ट, कमल के फूल को बताया धार्मिक चिन्ह, बीजेपी पर बैन लगाने की मांग की,और भी कई पार्टियों से प्रॉब्लम

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Rajeev Upadhyay
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मुस्लिम लीग पहुंची सुप्रीम कोर्ट, कमल के फूल को बताया धार्मिक चिन्ह, बीजेपी पर बैन लगाने की मांग की,और भी कई पार्टियों से प्रॉब्लम

New Delhi. इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को बीजेपी के चुनाव चिन्ह कमल के फूल से दिक्कत हो रही है। यही कारण है कि पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पार्टी को प्रतिवादी बनाए जाने की मांग की है। शीर्ष कोर्ट में दायर याचिका में दलील दी गई है कि कमल का फूल धार्मिक चिन्ह है, इसलिए बीजेपी पर बैन लगाया जाना चाहिए। मुस्लिम लीग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की डबल बेंच के समक्ष पेश हुए। इस दौरान उन्होंने सुनवाई के दौरान अनेक दलीलें भी दीं। 



मुस्लिम लीग के अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने बताया कि हमने इस मामले में कई पार्टियों को शामिल करने को लेकर एक आवेदन पेश किया है। जिसमें बीजेपी का नाम भी शामिल है, जिसका चुनाव चिन्ह कमल है, जो कि एक धार्मिक चिन्ह है। आवेदन में कहा गया है कि कमल एक धार्मिक प्रतीक है जो हिंदू और बौद्ध धर्म से जुड़ा हुआ है। बीजेपी के अलावा शिवसेना, शिरोमणि अकाली दल, हिंदू सेना, हिंदू महासभा, क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक फ्रंट और इस्लाम पार्टी हिंद जैसे 26 अन्य दलों को भी पार्टी बनाने की मांग की गई है। 




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  • कमल के फूल को लेकर दी ये दलीलें



    इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के आवेदन में दलील दी गई है कि हिंदू धर्म के मतानुसार प्रत्येक मनुष्य के भीतर पवित्र कमल की भावना है। यह अनंत काल, पवित्रता और देवत्व को दर्शाता है। साथ ही यह सिंबल ऑफ लाइफ, उर्वरता, नवीनीकृत युवाओं के प्रतीक के रूम में इस्तेमाल होता है। स्त्री का सुंदरता को बताने भी कमल के फूलों का उपयोग किया जाता है। बौद्ध धर्म के लिए कमल का फूल मानव का सबसे उन्नत अवस्था का प्रतीक है। भगवान विष्णु, ब्रह्मा, शिव और लक्ष्मी माता भी कमल के फूल से जुड़ी हुई हैं। 



    याचिका पर उठाई आपत्ति




    दूसरी ओर पूर्व अटॉर्नी जनरल और सीनियर अधिवक्ता केके वेणुगोपाल आज ऑल इंडिया मजलिसे इत्तहादुल मुसलमीन की ओर से अदालत में पेश हुए। उन्होंने याचिका की वैधता पर सवाल उठाए हैं। दलील दी गई कि इससे याचिकाकर्ता के किसी भी मौलिक अधिकार का हनन नहीं हो रहा, इसलिए अनुच्छेद 32 के तहत याचिका अपना महत्व खो देती है। उन्होंने यह भी बताया कि इस तरह की याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में पहले से लंबित है।


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