सेक्स एजुकेशन पश्चिमी अवधारणा नहीं, यौन शिक्षा पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि यौन शिक्षा को पश्चिमी अवधारणा मानना गलत है। इससे युवाओं में अनैतिकता नहीं बढ़ती। भारत में यौन शिक्षा की शिक्षा बेहद जरूरी है।

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Vikram Jain
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New Delhi Supreme Court comment sex education
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NEW DELHI. सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और देखना POCSO और आईटी एक्ट के तहत अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के अश्लील वीडियो के अपराध पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार को यौन शिक्षा कार्यक्रम लागू करने का सुझाव दिया।

भारत में यौन शिक्षा बेहद जरूरी

सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) ने अपने फैसले में कहा कि यौन शिक्षा (sex education) को पश्चिमी अवधारणा मानना गलत है। इससे युवाओं में अनैतिकता नहीं बढ़ती। इसलिए भारत में यौन शिक्षा की शिक्षा बेहद जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि लोगों का मानना है कि यौन शिक्षा भारतीय मूल्यों के खिलाफ है। इसी वजह से कई राज्यों में सेक्स एजुकेशन को प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसका विरोध किए जाने की वजह से युवाओं को सटीक जानकारी नहीं मिलती। फिर वे इंटरनेट का सहारा लेते हैं, जहां उन्हें भ्रामक जानकारी दी जाती है। 

मद्रास हाईकोर्ट का फैसला किया खारिज

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मद्रास हाईकोर्ट का फैसला खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। दरअसल, मद्रास हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अगर कोई तरह का कंटेंट डाउनलोड करता है देखता है, तो यह अपराध नहीं, जब तक कि इसे प्रसारित किए जाने की नीयत न हो।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा...

शोध में पता चला है कि सही यौन शिक्षा देना जरूरी है। महाराष्ट्र में 900 से ज्यादा किशोरों पर किए गए अध्ययन से सामने आया है कि जिन छात्रों को प्रजनन और यौन स्वास्थ्य की सही जानकारी नहीं थी। उनमें जल्दी यौन संबंध बनाने की संभावना ज्यादा थी। यौन शिक्षा के बारे में गलत धारणाओं को दूर करना बहुत जरूरी है। इसके फायदों को लेकर में सभी को सही जानकारी दी जाए, ताकि यौन स्वास्थ्य के नतीजों को बेहतर बना सकें।

बच्चों के खिलाफ अपराध सिर्फ यौन शोषण तक ही सीमित नहीं रहते हैं। उनके वीडियो, फोटोग्राफ और रिकॉर्डिंग के जरिए ये शोषण आगे भी चलता है। ये कंटेंट साइबर स्पेस में मौजूद रहते हैं, आसानी से किसी को भी मिल जाते हैं। ऐसी सामग्री अनिश्चितकाल तक नुकसान पहुंचाती हैं। ये यौन शोषण पर ही खत्म नहीं होता है, जब-जब ये कंटेंट शेयर होता और देखा जाता है, तब-तब बच्चे की मर्यादा और अधिकारों का उल्लंघन होता है। हमें इस इस विषय पर गंभीरता से विचार करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को POCSO एक्ट में बदलाव करने का सुझाव देते हुए कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द के स्थान चाइल्ड सेक्शुअली एब्यूसिव एंड एक्सप्लॉइटेटिव मटेरियल (CSEAM) का प्रयोग किया जाए। इसके लिए अध्यादेश लाया जा सकता है। CSEAM सही से बताएगा कि यह केवल अश्लील कंटेंट नहीं, जबकि बच्चे के साथ हुई यौन शोषण की घटना का रिकॉर्ड है। वो घटना जिसमें बच्चे का शोषण विजुअली दिखाया गया हो।

फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था एनजीओ

दरअसल, मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के बाद एनजीओ जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस और नई दिल्ली के बचपन बचाओ आंदोलन एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ द्वारा लगाई गई याचिका पर 12 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

एनजीओ जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि मद्रास हाईकोर्ट का इस तरह आदेश चाइल्ड पोर्नोग्राफी को बढ़ावा दे सकता है। इस तरह के फैसले से लगेगा कि ऐसा कंटेंट डाउनलोड करने और रखने वाले के खिलाफ पर केस नहीं चलाया जाएगा।

 

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