News Strike : हाथरस की तस्वीरें दिलों को झंझोड़ रही हैं। ऐसा हादसा मध्यप्रदेश में न हो इसके लिए बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री ने एक अच्छी पहल की है। ये पहल एक मिसाल बननी चाहिए। हालांकि ये पहल सिर्फ एक अपील के रूप में हुई है। ऐसी भगदड़ रोकने के लिए कुछ और ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। धर्म सभा करने वाले और खुद को गॉड मैन कहने वाले लोगों को भी अब ये तो समझ ही लेना चाहिए कि भगदड़ रोकना या भक्तों के भक्तिभाव को किसी सीमा में बांध पाना किसी के बस की बात नहीं है, और जब वो भाव उमड़ता है जो हाथरस जैसे दिल दहलाने वाले हादसे नजर आते हैं। सवाल उस भक्ति पर भी उठता है और कई बार कठघरे में वो गॉड मैन भी होते हैं जो अपनी ही आंखों के सामने भक्तों का बुरा होने से रोक नहीं पाए। मेरा मानना है कि कुछ तीन चार बातें फॉलो की जाएं तो ये भगदड़ और इससे होने वाली मौतें रोकी जा सकती हैं।
अचानक से किसी बाबा के लिए आस्था का परवान चढ़ना, उसके धाम पर या सभा में लोगों की भारी भीड़ का पहुंचना और लोगों का इतना भावुक होना कि भीड़ भगदड़ पर मजबूर हो जाए ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। हाथरस की घटना से पहले भी ऐसे बहुत से हादसे सामने आ चुके हैं। सबसे पहले मैं आपको मध्यप्रदेश में हुए ऐसे कुछ पिछले हादसे याद दिलाता हूं। आप बीते साल अगर फरवरी माह में भोपाल से इंदौर के लिए रवाना हुए हों तो बीच में कई किलोमीटर लंबे जाम में जरूर फंसे होंगे। सीहोर के पास स्थित कुबेरेश्वर धाम में होने वाले रूद्राक्ष महोत्सव में जाने के लिए भक्त इतनी बड़ी संख्या में घर से निकले थे, कि प्रशासन से लेकर धाम के लोग प्रबंधन करने में नाकाम रहे थे। इस जाम में फंसने की वजह से करीब 35 से ज्यादा लोग बीमार हुए। इस अव्यवस्था की वजह से कई लोगों के काम अटके रहे और बहुत से लोग बेहाला हुए। कुबेरेश्वर धाम को भी कुछ समय तक रूद्राक्ष का वितरण रोकना पड़ा।
कब-कब हुए हादसे
- 13 अक्टूबर 2013 को मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 115 लोग मारे गए और 100 से ज़्यादा घायल हो गए. भगदड़ की शुरुआत इस अफ़वाह से हुई कि जिस नदी के पुल को श्रद्धालु पार कर रहे थे, वह टूटने वाला है।
- 31 मार्च, 2023 को इंदौर शहर के एक मंदिर में हवन कार्यक्रम के दौरान एक प्राचीन 'बावड़ी' या कुएं के ऊपर बनी स्लैब के ढह जाने से कम से कम 36 लोगों की मौत हो गई।
इन घटनाओं में वो हादसे शामिल नहीं किए हैं जो किसी धार्मिक स्थल पर हुए हैं। बात अभी धार्मिक सभाओं की हो रही है तो फोकस उसी पर रखते हैं। यहां सिर्फ मध्यप्रदेश की घटनाओं का जिक्र है। अगर देशभर की घटना गिनने बैठे तो मौतों का आंकड़ा हजारों लोगों से भी ज्यादा का हो जाता है। लेकिन सबक कभी कोई नहीं लेता, और ये घटनाएं बढ़ती जाती हैं। हालांकि अब बागेश्वर धाम वाले बाबा धीरेंद्र शास्त्री ने एक अच्छी पहल की है। उनका जन्मदिन 4 जुलाई को आता है। हाथरस हादसे को देखते हुए उन्होंने अपने भक्तों से अपील की है कि वो धाम आने की जगह अपने घर बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करें और पेड़ लगाएं। आमतौर पर कोई बाबा इस तरह से अपील करके भक्तों को रोकते नहीं है, इसलिए इस पहल पर उनकी पीठ थपथपाई जानी चाहिए। लेकिन सवाल ये है कि क्या इतने से ही भक्तों की भीड़ मान जाएगी।
इससे पहले ही धीरेंद्र शास्त्री के सोशल मीडिया हैंडल से ये जानकारी जारी हो चुकी है कि बाबा के जन्मदिन पर तीन दिन का बड़ा आयोजन होगा। 3 जुलाई को दरबार लगेगा। 4 जुलाई को जन्मोत्सव मनाया जाएगा और 5 जुलाई को दीक्षांत समारोह होगा। खबर तो ये भी है कि हाथरस हादसे से पहले खुद मनोज तिवारी बागेश्वर धाम के इस आयोजन में शामिल होने वाले थे। अब मेरा सवाल ये है कि जो भक्त पुराने अनाउंसमेंट को देख चुके हैं क्या वो बागेश्वर धाम जाने से खुद को रोक पाएंगे।
क्या भक्तों से ये उम्मीद की जा सकती है कि वो अपनी भक्ति के ज्वर को शांत रखें और सोच समझ कर अपने गॉडमैन के दर्शन के लिए जाएं। अगर भक्त ही इतना समझ पाते तो शायद धर्म के साथ और भक्त के सात उन्माद जैसा शब्द कभी नहीं जुड़ता। और, यही उन्माद किसी आम इंसान को लार्जर देन लाइफ मानता है और उसकी भक्ति करता है। इसलिए मेरा मानना है कि ये पहल तो खुद पहले किसी धाम के मुख्य गुरु, पीठाधीश, कथा वाचक या गॉडमैन की तरफ से होनी चाहिए। यहां एक बात और बता दूं इस स्क्रिप्ट के लिखे जाने तक अपडेट ये है कि हाथरस मामले में जो एफआईआर दर्ज हुई है उसमें सिर्फ आयोजकों के नाम शामिल हैं।
भोले बाबा का नाम उसमें शामिल नहीं है। जाहिर है, भक्त कभी अपने आराध्य देव या मानुष किसी के खिलाफ भी शिकायत दर्ज नहीं करवा पाएंगे। तो क्या उन सो कॉल्ड आराध्यों की ये ड्यूटी नहीं बनती कि वो अपने भक्तों की हिफाजत का भी पूरा बंदोबस्त करे। कुछ कदम उठा कर मासूम भक्तों की जान से होने वाले इस खिलवाड़ को रोका जा सकता है। ज्यादा नहीं बमुश्किल दो से तीन बातों का पालन हो सके तो ही भगदड़ के मामले रोके जा सकते हैं,और हाथरस जैसे दिल दहला देने वाले नजारों से बचा जा सकता है। ऐसे कुछ सुझावों पर भी चर्चा करते हैं। ये न सिर्फ सुझाव है बल्कि इसे द सूत्र की अपील भी मान सकते हैं। जो इसलिए की जा रही है ताकि भक्तों की भक्ति भी जारी रहे, उनकी जान भी बची रहे और बाबाओं के सतसंग भी राजी खुशी पूरे हो सके।.
पहला सुझाव- सभाओं में ज्यादा से ज्यादा भक्तों को ऑन लाइन शामिल किया जाए
ऑनलाइन का जमाना है,और अब तो ऐसी व्यवस्थाएं हैं कि किसी भी बाबा की सभा में ऑनलाइन शामिल होने के लिए भी फीस ली जा सकती है। चाहें तो चढ़ावा भी लिया जा सकता है। हजारों लाखों यू ट्यूबर्स इसी तरह अपने चैनलर्स के जरिए पब्लिक फंडिंग की अपील करते हैं और उन्हें फंड हासिल भी होता है। अभी जो धीरेंद्र शास्त्री ने अपील की है। उसके साथ वो चाहते तो ऑनलाइन सभा का सुझाव भी दे सकते थे। वो तो वैसे भी सोशल मीडिया की ताकत समझते हैं। उनका इस तरह की पहल करना एक और सराहनीय कदम हो सकता है।
दूसरा सुझाव- सभा में भक्तों के लिए क्राइटेरिया तय कर दें
अगर बाबाओं और कथा वाचकों को ये लगता है कि ऑन लाइन ही सभा करने से उनका दरबार फीका नजर आएगा, तो वो भक्तों के लिए क्राइटेरिया रख सकते हैं. इस क्राइटेरिया के तहत वो कह सकते हैं कि इस बार दरबार सिर्फ महिलाओं के लिए है. बुजुर्गों के लिए है. दरबार में बच्चों को अनुमति नहीं है. इस तरह के क्राइटेरिया से भीड़ बहुत हद तक सीमित होगी।
तीसरा सुझाव- ऑनलाइन और क्राइटेरिया दोनों तय किए जाएं
तीसरा तरीका ये है कि दरबार में आने वाले भक्तों के लिए क्राइटेरिया फिक्स कर दिया जाए और बाकी के भक्त ऑनलाइन जुड़ सकें। मसलन बुजुर्ग भक्त सिर्फ ऑनलाइन ही जुड़ सकेंगे। सीमित संख्या में भक्त पांडाल तक आ सकते हैं।
ऐसे ही कुछ और भी तरीके तलाश कर ऐसे हादसों पर लगाम कसने की कवायद शुरू की जा सकती है। देखिए एक बात और बता दूं धार्मिक आयोजन में भगदड़ या कोई अन्य हादसा होने पर सिर्फ प्रशासन को दोष देना ही ठीक नहीं है। जिम्मेदारी आयोजकों, बाबाओं और कथा वाचकों को ही लेनी होगी, क्योंकि वही बेहतर जानते हैं कि उनकी सभा में कितने लोग आने का अनुमान है। उनके लिए क्या व्यवथाएं की गई हैं। और, जितने भक्तों की उम्मीद है उससे ज्यादा भक्त आने पर वो क्या करेंगे। आयोजनकर्ताओं से इन सवालों के जवाब जान लेना भी जरूरी है। तब ही ऐसे हादसों के कम होने की उम्मीद की जा सकती है।
चलते चलते एक बार फिर बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्रीजी को उनकी अपील के लिए धन्यवाद। उनके जैसे टेक्नोसेवी बाबा अगर इस ओर पहल करते हैं तो आने वाले दिनों में भक्ति और सत्संग की सभाओं के बाद भक्तों के दुख और तकलीफों की खबरें शायद सुनाई नहीं देंगी।
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