BHOPAL. बिहार में नीतीश कुमार पाला बदलकर भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल हो गए। उनके इस कदम से 2024 के लोकसभा चुनाव ( LOK SABHA ELECTION 2024) में पीएम नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ खड़े हो रहे इंडियन नेशनल डिवेलपमेंट इनक्लूसिव अलायंस यानि INDIA को तगड़ा झटका लगा है। उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) के नेताओं के मुताबिक 'इंडिया' गठबंधन के आर्किटेक्ट नीतीश कुमार ही थे। इससे पहले कि वे अधिकृत रूप से गठबंधन के संयोजक नियुक्त हो पाते, यह धमाका हो गया। इसलिए बड़ा सवाल अब ये है कि नीतीश के जाने के बाद INDIA गठबंधन के भविष्य का क्या होगा?
पल्टी मारने के लिए यही दिन क्यों चुना गया
यह यह सवाल इसलिए भी महत्वूर्ण है क्योंकि नीतीश ने ही दिल्ली और पश्चिम बंगाल में अपने समकक्ष अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी के साथ- साथ उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात कर उन्हें कांग्रेस के साथ इस गठबंधन में शामिल करवाया था। शायद BJP के रणनीतिकारों ने NDA को और अधिक फायदा पहुंचाने के लिए नीतीश की एंट्री का दिन तय किया। दरअसल कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' बंगाल से लगे किशनगंज के रास्ते बिहार में प्रवेश कर रही है। ऐसे में इस यात्रा का मनोबल गिराने के लिए नीतीश और NDA का यह कदम रणनीतिक रूप से मजबूत साबित होगा। साथ ही इससे उसे कई राज्यों में सीट बंटवारे में फंसे 'इंडिया' गठबंधन पर मनोवैज्ञानिक बढ़त भी हासिल होगी।
राममंदिर के माहौल को लेकर BJP आश्वस्त
बीजेपी को भरोसा है कि अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरी बार सत्ता में लौटने के लिए उत्तर भारत में उनके लिए जोरदार माहौल तैयार किया है। बीजेपी ने हाल ही में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान का विधानसभा चुनाव जीता है। इससे भी हिंदी भाषी राज्यों में उसकी ताकत बढ़ी है।
मगर, बिहार है टेड़ी खीर…
विधानसभा की 79 सीटों के साथ राष्ट्रीय जनता दल ( RJD) बिहार की सबसे बड़ी पार्टी है। इसके नेता लालू प्रसाद यादव सामाजिक न्याय की लड़ाई के सबसे बड़े योद्धा और हिंदुत्व विरोधी राजनीति के सबसे बड़े प्रतीक हैं। हालांकि बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 39 पर जीत दर्ज की थी, लेकिन उसके रणनीतिकारों को इस बात का डर था कि नीतीश कुमार के महागठबंधन में रहते हुए वे शायद 2019 के चुनाव परिणाम को दोहरा न पाएं। चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो नीतीश के साथ आने से भाजपा के रणनीतिकार अब अपनी संभावनाओं को लेकर आशावादी हो सकते हैं। नीतीश ने 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा था। उन्हें करीब 15 फीसदी वोट और दो सीटें मिली थीं। इसके बाद वो राजद और कांग्रेस के महागठबंधन में शामिल हो गए, जिसने भाजपा के 53 सीटों के मुकाबले 178 सीटों पर जीत दर्ज की। नीतीश 2017 में महागठबंध को छोड़कर एनडीए में शामिल हो गए। साल 2019 के चुनाव में जेडीयू ने 17 सीटों पर चुनाव लड़कर 16 सीटें जीतीं और भाजपा ने 17 सीटें जीतीं।
इसके बाद साल 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू को बड़ा घाटा हुआ। उसकी सीटें घटकर 42 रह गईं। 76 सीटें जीतने वाली भाजपा ने चुनाव पूर्व किए वादे के मुताबिक़ नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनवाया, लेकिन चुनाव परिणाम साफ़तौर पर मतदाताओं के बीच नीतीश की घटती लोकप्रियता को दिखा रहे थे। उनकी पार्टी के नेताओं ने बीजेपी पर रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को आगे कर जेडीयू की जीत की संभावनाओं को कम करने का आरोप लगाया।
2024 के चुनाव पर क्या असर पड़ेगा?
दरअसल राजद, कांग्रेस और वाम दलों के महागठबंधन की सरकार की ओर से बिहार में जाति सर्वेक्षण कराने, अति पिछड़ा वर्ग, अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति-जनजाति का आरक्षण 65 फीसदी तक बढ़ाने और युवाओं को करीब चार लाख नौकरियां देने की पृष्ठभूमि में नीतीश कुमार ने पाला बदला है। ऐसे में उन पर नजर ज्यादा है। बार- बार इधर- उधर करने से नीतीश कुमार की वैचारिक प्रतिबद्धता को नुकसान जरूर हुआ है। मगर दूसरी ओर नीतीश के पाला बदलकर बीजेपी की ओर जाने का बिहार से बाहर बहुत कम प्रभाव पड़ने की बात भी कही जा रही है। छह बार सांसद और लंबे समय तक केंद्र सरकार में मंत्री रहने के बाद भी नीतीश एक ऐसे राष्ट्रीय नेता के रूप में नहीं उभर पाए, जो दूसरे राज्यों की राजनीति को प्रभावित कर सकें।