NEW DELHI. बीजेपी द्वारा मध्यप्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद राजनैतिक पंडित इसे यूपी-बिहार में बीजेपी पर लगे उस दाग को मिटाने का प्रयास बता रहे थे। जिसमें कहा जाता है कि बीजेपी यादवों से परहेज करती आई है। बीजेपी के इस कदम को हिंदी पट्टी समेत अन्य राज्यों में ओबीसी को रिझाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। बता दें कि ओबीसी जनसंख्या के मामले में देश का सबसे बड़ा तबका है। हालांकि बीजेपी ने मोहन यादव के पहले कई यादव चेहरों को अहम जिम्मेदारियां दीं। इनमें केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, राव इंद्रजीत सिंह, नित्यानंद राय और अन्नपूर्णा देवी भी अहीर जाति से ही ताल्लुक रखते हैं।
यादव जाति के इन लोगों की भी अहम भूमिका
भारतीय जनता पार्टी का संसदीय बोर्ड पार्टी के तमाम निर्णय लेता है। इस बोर्ड में भी हरियाणा से आने वाली सुधा यादव और ओबीसी राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष के रूप में हंसराज गंगाराम अहीर शामिल हैं। भूपेंद्र यादव की बात की जाए तो वे केंद्रीय मंत्री के साथ-साथ बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति के मेंबर हैं। गौर किया जाए तो ये सभी यादव जाति के नेता अलग-अलग राज्यों से ताल्लुक रखते हैं। भूपेंद्र यादव जहां राजस्थान से हैं। तो राव इंद्रजीत सिंह हरियाणा से है, नित्यानंद राय बिहार से ताल्लुक रखते हैं तो अन्नपूर्णा देवी झारखंड से। सुधा यादव भी हरियाणा की हैं तो हंसराज गंगाराम महाराष्ट्र से आते हैं।
इन राज्यों में यादवों की खासी तादाद
बता दें कि यादव जाति के लोग हिंदी पट्टी के हर प्रदेश में अच्छी खासी तादाद में मौजूद हैं। इसमें गुजरात, महाराष्ट्र से लेकर मध्यप्रदेश, झारखंड और राजस्थान भी शामिल है। उत्तर प्रदेश और बिहार में तो इनकी तादाद निर्णायक स्थिति में है।
बीजेपी का लक्ष्य है बड़ा, इसलिए उठाया यह कदम
बीजेपी की नजर में अब पूरी तरह से लोकसभा चुनाव पर फोकस है। बीजेपी के अंदरखाने में चर्चा है कि मप्र के सीएम मोहन यादव के बहाने यूपी-बिहार और हिंदी पट्टी के राज्यों ही नहीं बल्कि आंध्रप्रदेश और तेलंगाना समेत बंगाल में मौजूद यादवों को भी रिझाने में मदद मिलेगी। बीजेपी यादवों की पहली पसंद बनने प्रयासरत है, अब उसमें वह कितनी सफल हो पाती है, यह देखने वाली बात होगी।