नई संसद की दुनियाभर में चर्चा, पाकिस्तानियों के बाद अब चीनी मीडिया ने की मोदी की तारीफ, लिखा- भारत औपनिवेशिक प्रतीकों को छोड़ रहा

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BP Shrivastava
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नई संसद की दुनियाभर में चर्चा, पाकिस्तानियों के बाद अब चीनी मीडिया ने की मोदी की तारीफ, लिखा- भारत औपनिवेशिक प्रतीकों को छोड़ रहा

NEW DELHI. पाकिस्तान के बाद अब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र समझे जाने वाले चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भारत के नए संसद भवन को लेकर नरेंद्र मोदी की तारीफ की है और कहा कि भारत औपनिवेशिक काल की सभी निशानियों को मिटा रहा है। अखबार ने अपने संपादकीय में कहा है कि चीन भारत की गरिमा बनाए रखने और अपनी स्वतंत्रता को कायम रखने की इच्छा के साथ खड़ा है और चाहता है कि भारत विकास करे। अखबार ने लेख में पश्चिमी देशों विशेष रूप से अमेरिका की नीति को लेकर भारत को अगाह भी किया है।



पीएम मोदी के भाषण का भी जिक्र



ग्लोबल टाइम्स लिखता है, 'भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार (28 मई) को देश के नए संसद भवन का उद्घाटन किया। ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान लगभग एक शताब्दी पहले बनी पुरानी संसद को संग्रहालय में बदला जाएगा। नई संसद को मोदी सरकार की सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का मुख्य हिस्सा माना जाता है। इसका उद्देश्य भारत की राजधानी को गुलामी की निशानियों से मुक्त करना है।' पीएम मोदी के भाषण के हवाले से अखबार ने लिखा कि नई संसद महज एक इमारत नहीं है और यह आत्मनिर्भर भारत के उदय की गवाह बनेगी।



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'नया संसद भवन विऔपनिवेशीकरण का महान प्रतीक बनेगा'



नए संसद भवन की विशेषताओं का जिक्र करते हुए अखबार ने लिखा, 'इस इमारत की कीमत लगभग 12 करोड़ डॉलर है और इसमें मोर, कमल का फूल और बरगद के पेड़ जैसे राष्ट्रीय प्रतीक शामिल हैं। ये प्रतीक भारत के इतिहास और संस्कृति की मजबूत विशेषताओं को दिखाते हैं। यह भारत सरकार के विऔपनिवेशीकरण के लिए किए जा रहे उपायों का एक अहम हिस्सा है और यह एक महान प्रतीक बनेगा।'



मोदी सरकार ने भारत के लिए महत्वपूर्ण काम किए



विऔपनिवेशीकरण उपायों के लिए मोदी सरकार की तारीफ करते हुए अखबार ने लिखा, 'हाल के वर्षों में, मोदी सरकार ने उभरते हुए भारत की छवि पेश करने के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए हैं। भारत की यह छवि विऔपनिवेशीकरण को बढ़ावा और स्वतंत्रता पर जोर देती है। भारत ने उपनिवेशवाद के  प्रतीकों को हटाने के लिए कई बड़े कदम भी उठाए हैं, जिसमें प्रतिष्ठित इमारतों का नाम बदलना और उन्हें फिर से तैयार करना, औपनिवेशिक इतिहास से जुड़ी बजट प्रथाओं को बदलना, अंग्रेजी के आधिकारिक उपयोग को कम करना और हिंदी भाषा के उपयोग को बढ़ाना शामिल है।'



औपनिवेशिक काल के निशानों को मिटाना बड़ा काम



अखबार ने कहा है कि भारत एक ऐसा देश रहा है जिसे उपनिवेश बनाया गया और अब वो राष्ट्रीय आधुनिकीकरण का काम कर रहा है। चीन भारत की स्वतंत्रता और गरिमा बनाए रखने की इच्छा के साथ खड़ा है। भारत लगभग 200 सालों तक ब्रिटेन का उपनिवेश रहा है और इसी कारण औपनिवेशिक काल के निशानों को मिटाना एक विशाल काम है।

आगे लिखा गया, '1968 में भारत सरकार ने नई दिल्ली में इंडिया गेट के सामने स्थित किंग जॉर्ज पंचम की मूर्ति को हटा दिया था। फिर, 8 सितंबर 2022 को मोदी सरकार ने महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन के दिन इंडिया गेट के सामने राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ कर दिया।'



अमेरिका ने फूट डालो-राज करो की रणनीति से राज किया



संपादकीय में लिखा गया, 'चीन कामना करता है कि भारत अपने विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में सफल हो। साथ ही चीन पश्चिम के भू-राजनीतिक जोड़-तोड़ और उकसावे के खिलाफ एक दोस्त के रूप में भारत को सतर्क रहने की सलाह देता है। यह पश्चिम के नव-उपनिवेशवाद का रूप है जो कि सच होता जा रहा है। अमेरिका ने पहले बड़े पैमाने पर फूट डालो और राज करो की रणनीति के माध्यम से राज किया और अब भी वो इसी का इस्तेमाल कर रहा है लेकिन उसकी यह रणनीति छिपी हुई रहती है।



अमेरिका 'हाथी-ड्रैगन दुश्मनी' की मनगढ़ंत अवधारणा को आगे बढ़ाकर चीन और भारत के बीच विवाद पैदा करने में व्यस्त है। उसके पास अब इतनी शक्ति तो नहीं है कि वो भारत और चीन को अपने अधीन कर ले इसलिए वो अपने फायदे के लिए अब दोनों देशों के बीच दरार पैदा कर रहा है। एक तरह से यह औपनिवेशिक मानसिकता का ही एक रूप है।



भारत-चीन के बीच दरार पैदा करने के प्रयास में पश्चिमी देश



अखबार लिखता है, 'चीन और भारत के बीच दरार पैदा करने के लिए पश्चिम ने बार-बार भारत की चापलूसी की है। पश्चिम भारत को चीन की जगह लेने के लिए उकसाता है। वो चीन और भारत के बीच सीमा विवाद में भारत का पक्ष लेता है और यहां तक कि भारत को चीन के खिलाफ खड़े होने के लिए उकसाता है और कहता है कि हम भारत के साथ खड़े हैं। यह समझना चाहिए कि भारत के लिए पश्चिम की यह एक जाल है। भारत को पश्चिम की भू-राजनीतिक जाल में नहीं पड़ना चाहिए। अखबार ने लिखा, 'चीन की तरह भारत पश्चिमी सभ्यता से अलग सभ्यता वाला देश है, जो देश का कायाकल्प करना चाहता है। यह कुछ ऐसा है जिसे पश्चिमी देश सराह नहीं सकते।'



भारत चीन और पश्चिम के साथ रिश्तों को लेकर स्पष्टता रखे



अखबार ने संपादकीय के अंत में लिखा है कि एशिया और विश्व इतने बड़े हैं कि वे चीन और भारत दोनों के एक साथ उदय को समान जगह दे सकते हैं। चीन सच में चाहता है कि भारत का विकास हो। चीन के बहुत कम लोग ही ऐसा मानते होंगे कि भारत का आर्थिक और सामाजिक विकास चीन के लिए खतरा बन जाएगा। अधिकांश लोग इस बात से सहमत हैं कि दोनों देश एक साथ सफल हो सकते हैं। हम आशा करते हैं कि भारत भी चीन और पश्चिम के साथ अपने रिश्तों को लेकर अधिक स्पष्टता और विश्वास रखे। 


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