पांच साल में भारत में 29% बढ़ी शेरों की संख्या, अफ्रीका में घट गई, जानें कितने शेर हैं भारत में, मप्र में क्यों नहीं आ पा रहे?

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Pratibha Rana
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पांच साल में भारत में 29% बढ़ी शेरों की संख्या, अफ्रीका में घट गई, जानें कितने शेर हैं भारत में, मप्र में क्यों नहीं आ पा रहे?

BHOPAL. 10 अगस्त को दुनियाभर में 'वर्ल्ड लायन डे' यानी विश्व शेर दिवस के रूप में मनाया जाता है। शेरों के बारे में जानकारी बढ़ाने और दुनियाभर में कम होती जा रही शेरों की आबादी को बचाने के लिए प्रति वर्ष इस दिन लोगों को जागरूक किया जाता है। दुनियाभर में तेजी हो रही रही जंगलों की कटाई और शिकार के कारण शेरों की आबादी धीरे-धीरे कम होती जा रही है। अफ्रीका के हाल तो और भी खराब है। वहां शेरों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है, वहीं भारत में शेरों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। वर्तमान में 674 से ज्यादा शेर भारत में पाए गए हैं। खास रिपोर्ट में जानते हैं शेरों की दुनिया में क्या है स्थति और क्यों मनाया जाता है विश्व शेर दिवस...





भारत में देवी के वाहन के रूप में पूजा जाता है शेर को 





भारत के नजरिए से देखें तो यहां पर शेर को देवी के वाहन के रूप में पूजा जाता है। इसलिए सरकार भी इसके प्रति गंभीरता बरतती रही है। इसलिए दूसरे देशों के मुकाबले भारत में शेरों की स्थिति ठीक है। आंकड़े बताते हैं कि भारत को छोड़ कई एशियाई देशों में शेरों की संख्या समय के साथ कम होती जा रही है। इसी को देखते हुए प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) ने शेरों को 'लुप्तप्राय'  जानवरों के रूप में वर्गीकृत किया है। भारत ने राष्ट्रीय पशु के संरक्षण के लिए हाल ही के वर्षों में कुछ सख्त कदम उठाए हैं। 





अफ्रीका में हालत खराब : 10 साल में 10 हजार घट गए शेर





रिपोर्टों के अनुसार, एक सदी पहले अफ्रीका में दो लाख से भी अधिक शेर रहते थे, जिनमें लगातार कमी आ रही है। 2020 के सर्वेक्षणों के अनुसार, पिछले दो दशकों में अफ्रीका के 26 देशों में शेरों की संख्या 40,000 से घटकर लगभग 20,000 रह गई है। पश्चिमी अफ्रीका के देशों में शेरों की कई प्रजातियां अब भी तेजी से गायब हो रही है, जो चिंता का विषय है। 





भारत में स्थिति बेहतर : 2015 में 523 थे, 2020 में हो गए 674 शेर





भारत में शेरों के आंकड़ों को लेकर कई संस्थाएं काम कर रही हैं। मुख्य रूप से गुजरात स्थित गिर के जंगलों में रहने वाले एशियाई शेरों की संख्या वर्ष 2020 के आंकड़ों के मुताबिक 674 है, जो साल 2015 में 523 थी। इससे साफ है कि हाल ही के वर्षों में शेरों के आंकड़ों में थोड़ा सुधार जरूर हुआ है। यह गुजरात के गिर के आंकड़े हैं, वहीं उप्र की इटावा लॉयन सफारी में करीब 20 शेर हैं। ये हाल ही वर्षों में बढ़े में हैं। 2020 में गुजरात के गिर जंगलों में शेरों के फैलाव क्षेत्र में 36% की वृद्धि हुई है। आज गुजरात, देश में एशियाई शेरों का बड़ा क्षेत्र बनकर उभरा है।





शेर को दो उप-प्रजातियां : अफ्रीकी शेर ‘पैंथेरा लियो लियो’ और एशियाई शेर æ‘पैंथेरा लियो पर्सिका’





लॉयन का वैज्ञानिक नाम पैंथेर लियो है। शेर को दो उप-प्रजातियों में बांटा गया है। अफ्रीकी शेर (पैंथेरा लियो लियो) और एशियाई शेर (पैंथेरा लियो पर्सिका)। लगभग 30 लाख साल पहले शेर एशिया, अफ्रीका, मध्य पूर्व और यूरोप में स्वतंत्र रूप से घूमते पाए जाते थे। पिछले 100 वर्षों में शेरों की आबादी में 80% की कमी हुई है। 





कितनी होती है ऊंचाई, नर और माता के वजन में कितना अंतर?





एशियाई शेरों की ऊंचाई लगभग 110 सेंटीमीटर होती है। वयस्क नर शेर का वजन 160 से 190 किलोग्राम के बीच होता है, जबकि मादा का वजन 110 से 120 किलो के बीच होता है। 





भारत के किस राज्य में सबसे अधिक संख्या में शेर पाए जाते हैं?





गुजरात के गीर के जंगलों में बब्बर शेरों की गिनती का इलाका बढ़कर 22,000 वर्ग किलोमीटर हो गया है, जबकि 2015 में 10,000 वर्ग किलोमीटर इलाका था। बब्बर शेर गीर के जंगलों से निकलकर बहुत बड़े इलाके में फैल गए हैं।





हर पांच साल में होती है शेरों की गणना, अब बेहद हाइटेक तरीके से होने लगी





शेरों की जनगणना हर पांच साल में की जाती रही है। वर्ष 2015 तक शेरों के पांवों के निशान (पग मार्क) वगैरह और दिखे हुए शेरों की गिनती से अंतिम आंकड़ा तय किया जाता था, लेकिन अब (2020) ये जनगणना का काम भी बेहद हाइटेक तरीके से किया गया है। गीर जंगल के इलाके के मुख्य वन पर्यवेक्षक के अनुसार, अब जीपीएस, डिजीटल कैमरों का उपयोग किया जाने लगा है। शेरों के हर ग्रुप का अध्ययन किया जाता है कि एक ग्रुप में कितने शेर हैं, उनका इलाका क्या है और जो सीधे देखे गए हैं उन्हीं शेरों की गिनती होती है। पिछली बार की तरह पैरों के निशान जैसे परोक्ष सबूतों को गिनती में नहीं लिया जाता है। 





विश्व का सबसे बड़ा शेर कौन सा है?





दक्षिणी अफ्रीका के केप लायन को आमतौर पर सबसे बड़ा माना जाता था। इन शेरों के वंशजों ने दक्षिण अफ्रीका में अन्य शेरों के साथ मिलकर कुछ बहुत बड़े नर पैदा किए हैं और ये शेर आसपास सबसे बड़े होते हैं। केप लायन का चित्र इंटरनेट पर देखने को मिल जाएगा। यह संभवत: अलंकृत है क्योंकि उस समय आमतौर पर यही किया जाता था। 2017 में एक पुनर्विचार हुआ और यह निर्णय लिया गया कि केप शेर अपने आप में एक उप-प्रजाति नहीं था और दक्षिण और पूर्वी अफ्रीका के शेरों के साथ मिल गया है। कभी-कभी दक्षिण अफ्रीका और क्रूगर में विशाल नर पैदा होते हैं और ये केप लायंस के वंशज हैं। उनके पास गहरे घने अयाल (गर्दन के बाल) हैं। इन्हें सबसे ज्यादा खतरनाक शेर कहा जा सकता है। 





इटावा की लॉयन सफारी में 20 शेर, उदयपुर में सफारी बनाने की तैयारी, मप्र को शेरों का इंतजार







  • उप्र के इटावा की लॉयन सफारी  : इटावा की लॉयन सफारी में लगातार शेरों का कुनबा बढ़ता जा रहा है। फिलहाल सफारी में 20 शेर हैं। जिनकी दहाड़ सफारी के बाहर भी सुनी जा सकती है। यह विश्वस्तरीय सफारी पर्यटकों को लुभा रही है। इटावा में वर्ष 2006 में लायन सफारी की शुरुआत हो गई थी, लेकिन सत्ता परिवर्तन के कारण ज्यादा काम नहीं हो पाया। सिर्फ स्थान का चयन होकर रह गया। इसमें वर्ष 2013 में कामकाज शुरू हुआ और 25 नवंबर 2019 को सफारी पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। अब यह शेरों के संरक्षण और उनके कुनबा बढ़ने का प्रमुख स्थान है। 



  • राजस्थान के उदयपुर में 1 करोड़ 85 लाख से बनेगी लॉयन सफारी: झीलों और पहाड़ों वाली टूरिस्ट सिटी उदयपुर में जल्द ही शेरों की दहाड़ें रोमांचित करेंगी। अब पर्यटक शेरों को करीब से निहार सकेंगे। वन विभाग सज्जनगढ़ बायोलॉजिकल पार्क लॉयन सफारी शुरू करवाने की तैयारी में है। जयपुर के बाद यह प्रदेश की दूसरी लॉयन सफारी होगी। इसके लिए सेंट्रल जू ऑथोरिटी (सीजेडए) से भी मंजूरी मिल चुकी है। साथ ही करीब 1 करोड़ 85 लाख का बजट भी मंजूर हो गया है। 


  • मप्र के कूनो में 1996 से चल रही एशियाई शेरों को बसाने की योजना : कूनो सेंक्चुरी में शेरों (एशियाटिक लॉयन) की बसाहट को लेकर पिछले 10 साल से चल रही प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो पाई है। शेरों की बसाहट को लेकर शुरू से ही गुजरात सरकार अड़ंगे लगा रही है। कभी एरिया बढ़ाने के नाम पर तो कभी नेशनल पार्क का दर्जा न होने की कमी बताकर पेंच फंसाए गए। अब कूनो को नेशनल पार्क का दर्जा भी मिल गया है और 28 गांवों को आदिवासियों को रोजगार का भरोसा दिलाकर उनसे उनके गांव खाली करवाकर इसका क्षेत्र भी बढ़ा दिया गया है। मप्र सरकार 1996 से कूनो में शेर लाने की कवायद कर रही है। गुजरात सरकार ने शेर देने से मना किया तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। इसमें 2013 में सुप्रीमकोर्ट ने मप्र के हक में आदेश देते हुए शेरों को शिफ्ट करने की बात कही और एक्सपर्ट कमेटी की निगरानी में इस काम को 6 माह के भीतर करने के लिए कहा गया, लेकिन 10 साल से यह अधर में लटका हुआ है।




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