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One Nation-One Election: 1951-52 में जब भारत में पहली बार चुनाव हुए, तब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए गए थे। यह व्यवस्था तब तक बनी रही जब तक 1967 में इसे बाधित नहीं किया गया। आज देश हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव देखता है, जिससे संसाधनों और समय की खपत होती है। नरेंद्र मोदी सरकार ने एक बार फिर "वन नेशन-वन इलेक्शन" की परिकल्पना को पुनर्जीवित करने की दिशा में कदम उठाए हैं। चलिए समझते हैं "वन नेशन-वन इलेक्शन" (One Nation-One Election) की राह में आने वाली मुश्किलें और 2029 में एक साथ चुनाव होने की संभावना को…
वन नेशन-वन इलेक्शन का उद्देश्य और लाभ
समय और धन की बचत: बार-बार चुनाव होने से सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ता है।
विकास कार्यों में रुकावट कम करना: चुनाव आचार संहिता के कारण कई विकास परियोजनाएं रुक जाती हैं।
एकीकृत नीति निर्माण: एक साथ चुनाव से नीतिगत समरूपता आएगी और संसदीय कार्यों में तेजी होगी।
जानें इसका इतिहास
1951-52 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए। 1969 में बिहार में विधानसभा भंग होने और 1970 में लोकसभा के समयपूर्व चुनाव के कारण यह सिलसिला टूट गया। इसके बाद, राज्यों और केंद्र के चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।
संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता
वन नेशन-वन इलेक्शन को लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 82ए, 172 और अन्य प्रावधानों में संशोधन करना होगा। इसमें कुछ राज्यों के कार्यकाल को आगे बढ़ाना होगा। कुछ राज्यों की विधानसभाओं को समय से पहले भंग करना पड़ेगा।
2029 में एक साथ होंगे चुनाव?
नरेंद्र मोदी सरकार एक बार फिर एक देश एक चुनाव की परंपरा को शुरू करने जा रही है। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो 2029 में पहली बार देश में एक साथ चुनाव होंगे। लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय के चुनावों के लिए देश एक साथ वोट डालने निकलेगा। लेकिन ये सुनने में जितना आसान लग रहा है, उतना है नहीं। केंद्र सरकार को इसके लिए संविधान में जरूरी संशोधन करने पड़ेंगे और इसके लिए उसे दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी। इसके बाद अगर राज्यों की सहमति की जरूरत पड़ी, तो विपक्षी दलों के नेतृत्व वाले राज्य अड़चन पैदा करेंगे। अब जब चर्चा यहां तक पहुंच गई है कि वन नेशन-वन इलेक्शन को शीतकालीन सत्र में ही पेश किया जा सकता है, तो इससे जुड़े कुछ अहम बातें जान लेनी जरूरी हैं।
क्या है कोविंद कमेटी और उसकी रिपोर्ट
2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई। इस समिति ने मार्च 2024 में 18,626 पन्नों की एक विस्तृत रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी। रिपोर्ट में हंग असेंबली या विधानसभा भंग होने की स्थिति में शेष कार्यकाल के लिए चुनाव कराने की सिफारिश की गई है ताकि चुनावों की नियमितता बनी रहे।
क्या एक साथ चुनाव कराना संभव है?
एक साथ चुनाव कराना एक बड़ा और जटिल कार्य है। हालांकि, सरकार ने इसे चरणबद्ध तरीके से लागू करने की योजना बनाई है।
पहला चरण: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ।
दूसरा चरण: 100 दिन बाद स्थानीय निकाय चुनाव।
अन्य देशों का उदाहरण
कोविंद कमेटी ने 7 देशों जैसे स्वीडन, जापान, जर्मनी, और इंडोनेशिया का अध्ययन किया, जहां एक साथ चुनाव कराए जाते हैं। इंडोनेशिया ने हाल ही में इस प्रणाली को अपनाया है।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
वन नेशन-वन इलेक्शन पर राजनीतिक दलों के विचार बंटे हुए हैं। बीजेपी, बीजू जनता दल, एआईएडीएमके जैसे 32 दल इसके समर्थन है तो कांग्रेस, आम आदमी, बसपा जैसे 15 दल विरोध में हैं।
चुनौतियां और समाधान
संविधान संशोधन: दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता है, जो केंद्र सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
राज्यों की सहमति: विपक्षी दलों के नेतृत्व वाले राज्यों से सहमति बनाना कठिन होगा।
प्रशासनिक तैयारी: एक साथ चुनाव के लिए विशाल संसाधनों और मैनपावर की आवश्यकता होगी।
बहुत कठिन है डगर…
वन नेशन-वन इलेक्शन भारतीय लोकतंत्र में एक ऐतिहासिक बदलाव हो सकता है। हालांकि इसे लागू करने के लिए संवैधानिक और प्रशासनिक स्तर पर कई बाधाओं को पार करना होगा। यदि यह प्रणाली सफल होती है, तो यह न केवल समय और धन की बचत करेगी, बल्कि देश में नीति निर्माण और विकास कार्यों को भी गति देगी।
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