देश में लंबे समय से एक देश एक चुनाव (One Nation One Election) को लेकर बहस हो रही थी। बुधवार, 18 सितंबर को केंद्रीय कैबिनेट में एक देश एक चुनाव को मंजूरी मिल गई है। एक साथ चुनाव कराने का उद्देशय सिर्फ चुनावों में होने वाले खर्च को कम करना है। साथ ही बार-बार चुनावों के कारण होने वाली परेशानियों को भी कम करना है। वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर आपके मन में सवाल आते होंगे कि आखिर ये फॉर्मूला किस देश में लागू है....
'एक देश एक चुनाव' की अवधारणा नई नहीं है। भारत में पहले भी एक साथ चुनाव हो चुके हैं। आजादी के बाद से देश में कई चुनाव हुए हैं, जिससे अक्सर संसाधनों और प्रशासनिक मशीनरी पर काफी दबाव पड़ता है। जानकारों का मानना है कि यह प्रक्रिया उतनी की पुरानी है जितना हमारा संविधान है।
देश में पहले भी हुए हैं एक साथ चुनाव
देश में साल 1950 में गणतंत्र होने के बाद, 1951 से लेकर 1967 के बीच हर पांच साल में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव हुए थे। देश में मतदाताओं ने साल 1952, 1957, 1962 और 1967 में केंद्र और राज्यों के लिए एक साथ वोट दिया है। देश में कुछ पुराने राज्यों का पुनर्गठन और नए राज्यों के उभरने के साथ इस प्रक्रिया को साल 1968-69 में पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया था।
भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में एक साथ चुनाव होते थे। आज भी कई देश हैं जहां अभी भी सभी चुनाव एक साथ होते हैं। आइए कुछ देशों के बारे में हम बताते हैं, जहां इस व्यवस्था के तहत एक साथ चुनाव करवाए जाते हैं...
अमेरिका में चुनाव प्रक्रिया
अमेरिका में राष्ट्रपति, कांग्रेस और सीनेट के लिए हर चार साल में चुनाव होते हैं। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि देश में सर्वोच्च कार्यालयों का चुनाव एक साथ कराया जा सके, जिससे एकीकृत चुनावी प्रक्रिया सुविधाजनक बन सके। इस प्रक्रिया में संघीय कानून द्वारा निर्धारित चुनाव की तारीखों का पालन शामिल है, जिससे चुनावी गतिविधियों के राष्ट्रव्यापी समन्वय बना रहे।
अमेरिका में चुनाव प्रक्रिया की शुरुआत प्राथमिक चुनावों से होती है, यहां राजनीतिक दल आम चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों का चयन करते हैं। अमेरिका में आम चुनाव चार साल के बाद होते हैं। अमेरिका में यह चुनाव नवंबर के पहले मंगलवार को होते हैं। अमेरिका में चुनावी प्रक्रिया के तहत मतदाता राष्ट्रपति, कांग्रेस के सदस्यों, राज्यपालों, राज्य विधायकों और स्थानीय अधिकारियों सहित विभिन्न संघीय, राज्य और स्थानीय कार्यालयों के लिए अपने मताधिकार का इस्तेमाल करते हैं। अमेरिका में इलेक्टोरल कॉलेज प्रणाली का इस्तेमाल राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए किया जाता है। जिसमें प्रत्येक राज्य को कांग्रेस में उसके प्रतिनिधित्व के आधार पर एक निश्चित संख्या में इलेक्टोरल वोट आवंटित किए जाते हैं। चुनाव में जो उम्मीदवार बहुमत हासिल करता है, वो राष्ट्रपति बन जाता है। जबकि कांग्रेस के सदस्यों और अन्य अधिकारियों को उनके संबंधित अधिकार क्षेत्र में वोटों के आधार पर चुना जाता है।
फ्रांस में राष्ट्रपति और असेंबली चुनाव एक साथ
फ्रांस भी देश में एक साथ चुनाव कराने की इसी प्रक्रिया को अपनाता है। फ्रांस में हर पांच साल में एक साथ राष्ट्रपति और नेशनल असेंबली (संसद का निचला सदन) के लिए चुनाव होते हैं। मतदाता एक ही मतदान प्रक्रिया के तहत राज्य के प्रमुख और उनके प्रतिनिधियों दोनों का चुनाव करते हैं।
फ्रांस में राष्ट्रपति और विधायी चुनाव हर पांच साल में होते हैं। जिसमें राष्ट्रपति का चुनाव बहुमत के आधार पर किया जाता है। फ्रांस में राष्ट्रपति नेशनल असेंबली में बहुमत हासिल करने वाले दल से प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है। जिसे दो-चरणीय प्रणाली के माध्यम से चुना जाता है। प्रधानमंत्री के चुनाव के लिए उम्मीदवार पहले दौर में बहुमत हासिल करने की कोशिश करता है। यदि इस प्रक्रिया में किसी उम्मीदवार पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तो शीर्ष दो उम्मीदवारों के बीच दूसरे दौर की प्रतिस्पर्धा कराई जाती है। फ्रांस में नेशनल असेंबली के सदस्यों को एकल-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों से चुना जाता है। साथ ही इस प्रक्रिया में यह सुनिश्चित किया जाता है कि विभिन्न राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो।
स्वीडन में एक दिन कई चुनाव
स्वीडन देश में चुनाव के जिस मॉडल को अपनाता है उसके तहत संसद (Riksdag) और स्थानीय सरकार के लिए आम चुनाव हर चार साल में एक साथ कराए जाते हैं। वहीं नगरपालिका और काउंटी परिषद चुनाव, राष्ट्रीय चुनावों के साथ होने से मतदाताओं को एक ही दिन में कई चुनावी प्रक्रियाओं में शामिल होना पड़ता है। इस प्रक्रिया के तहत राष्ट्रीय और स्थानीय विधायिकाओं के कार्यकाल को सिंक्रोनाइज किया जाता है। जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकार के विभिन्न स्तरों के चुनाव एक साथ हो सकें। स्वीडन में इस चुनावी प्रक्रिया के चलते चुनावी दक्षता और मतदाताओं की सक्रियता दोनों की ही बढ़ावा मिलता है। साथ ही इस प्रक्रिया से अलग-अलग चुनाव कराने का प्रशासनिक बोझ भी कम होता है।
स्वीडन की संसद रिक्सडैग के लिए आम चुनाव हर चार साल में होते हैं। जिसमें मतदाता proportional representation system के माध्यम से संसद सदस्यों का चुनाव करते हैं। नगरपालिका और काउंटी परिषदों के लिए स्थानीय सरकार के चुनाव भी हर चार साल में होते हैं। आमतौर पर यह चुनाव उसी दिन कराए जाते हैं जिस दिन राष्ट्रीय चुनाव होते हैं। स्वीडन में बहुदलीय प्रणाली लागू है, जिसमें मतदाता राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों से उम्मीदवारों का चयन करते हैं। चुनाव प्रक्रिया की देखरेख स्वीडिश चुनाव प्राधिकरण द्वारा की जाती है, जिससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।
एक देश एक चुनाव की चुनौतियां भी
लोकसभा का कार्यकाल पांच वर्षों का होता है, लेकिन इसे उससे पहले भी भंग किया जा सकता है। ऐसे में एक देश-एक चुनाव संभव नहीं हो सकता है। लोकसभा की तरह ही विधानसभा का भी कार्यकाल पांच साल का होता है और ये भी पांच साल से पहले भंग हो सकता है। ऐसे में सरकार के सामने चुनौती होगी कि एक देश-एक चुनाव का क्रम कैसे बरकरार रखा जाएगा। एक देश-एक चुनाव पर देश के सभी दलों को एक साथ लाना सबसे बड़ी चुनौती हो सकती है क्योंकि सभी पार्टियों की सोच अलग-अलग है। फिलहाल देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग होते हैं, जिस वजह से ईवीएम और वीवीपैट की सीमित संख्या हैं, लेकिन अगर एक देश-एक चुनाव होते हैं तो एक साथ इन मशीनों की अधिक मांग हो सकती है, जिसे पूरा करना भी एक चुनौती है। साथ ही एक साथ चुनाव होते हैं तो बहुत ज्यादा अधिकारियों और सुरक्षाबलों की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में ये भी एक बड़ी चुनौती होगी।
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