NEW DELHI. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बाद देश की एक और प्रमुख मुस्लिम संस्था जमीयत उलेमा-ए-हिंद भी यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) के विरोध में आ गई है। गुरुवार (6 जुलाई) को जमीयत ने 22वें विधि आयोग को भेजी गई आपत्तियों का सारांश शेयर किया, जिसमें जमीयत अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि UCC पर बहस शुरू करना एक राजनीतिक साजिश है। उन्होंने कहा है कि वह समान नागरिक संहिता के खिलाफ है, क्योंकि यह धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है, जिसे संविधान के तहत गारंटी दी गई है। दूसरी ओर, नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि UCC से किसका फायदा होगा? सरकार जिस तरह देश चलाना चाहती है, वह गलत है।
जमीयत के पत्र में क्या कहा गया
लॉ कमीशन को लिखे पत्र में मौलाना मदनी ने कहा- यह मुद्दा सिर्फ मुसलमानों से नहीं बल्कि सभी भारतीयों से जुड़ा है। हम शुरू से इस देश में स्वतंत्र रूप से अपने धर्म का पालन कर रहे हैं। हम अपने धार्मिक मामलों और पूजा पद्धति पर किसी भी तरह से समझौता नहीं करेंगे। हम कानून के दायरे में रहकर अपने धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए हरसंभव उपाय करेंगे। जमीयत हुक्मरानों से सिर्फ इतना कहना चाहती है कि कोई भी फैसला नागरिकों पर नहीं थोपा जाना चाहिए और फैसला लेने से पहले आम सहमति बनाने की कोशिश की जानी चाहिए, ताकि वह सभी को मंजूर हो। UCC पर कोई भी फैसला लेने से पहले सरकार को देश के सभी धर्मों के नेताओं और सामाजिक एवं आदिवासियों से सलाह और उन्हें विश्वास में लेना चाहिए।
हम कोई असंवैधानिक बात नहीं कर रहे
मौलाना ने कहा, हमारा पर्सनल लॉ कुरान और सुन्नत पर आधारित है। इसमें कयामत के दिन तक बदलाव नहीं किया जा सकता है। ये कहकर हम कोई असंवैधानिक बात नहीं कर रहे हैं, लेकिन संविधान के अनुच्छेद-25 ने हमें इसकी आजादी दी है। UCC, मुसलमानों और यह देश की एकता और अखंडता के लिए नुकसानदायक है, इसलिए हमें यह मंजूर नहीं है।
जमीयत ने दिया तर्क : शुरू से ही विवादित है समान नागरिक संहिता
जमीयत ने कहा है कि हमारा देश विविधता में एकता का प्रतीक रहा है, जिसमें हर धर्म और जाति के लोग अपनी धार्मिक शिक्षाओं के साथ शांति और एकता से रह रहे हैं। इन सभी के बीच कभी कोई मतभेद नहीं हुआ, न ही किसी ने कभी दूसरों के धर्म और रीति-रिवाजों पर आपत्ति जताई। जमीयत का तर्क है कि यह विविधता 100-200 साल पहले या आजादी के बाद नहीं आई, बल्कि सदियों से मौजूद है। ऐसे में समान नागरिक संहिता लागू करने का क्या औचित्य है? जब पूरे देश में नागरिक कानून एक जैसा नहीं है, तो पूरे देश में एक परिवार कानून लागू करने पर जोर क्यों दिया जा रहा है?
RSS के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर के बयान का उल्लेख
मदनी ने यह भी कहा- ऐसा लगता है कि विशेष संप्रदाय के खिलाफ बहुसंख्यक गुमराह किए जा रहे हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि यह संविधान में लिखा है। हालांकि जमीयत ने दावा किया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर ने खुद कहा था कि समान नागरिक संहिता भारत के लिए अप्राकृतिक और इसकी विविधता के खिलाफ है।
तमिलनाडु के सीएम बोले- UCC लागू करना सरकार विरोधियों को निशाना बनाने के लिए
DMK अध्यक्ष और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने गुरुवार (6 जुलाई) को आरोप लगाया कि समान नागरिक संहिता को लागू करने का कदम केवल भाजपा सरकार का विरोध करने वालों को निशाना बनाने के लिए है। देश में पहले से ही सिविल और क्रिमिनल कानून हैं। पर्सनल लॉ को खत्म करके केंद्र सरकार अब UCC लाने का प्रयास कर रही है। इसके पहले 29 जून को भी स्टालिन ने प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना करते हुए आरोप लगाया था कि मोदी सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काकर और देश में भ्रम पैदा करके 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने की सोच रहे थे।
नोबल पुरस्कार विजेता सेन बोले- हम सालों से बिना UCC के रह रहे, आगे भी रह सकते हैं
नोबल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन भी UCC पर अपने विचार रखे। बीरभूम में अमर्त्य ने कहा- मैंने अखबार में पढ़ा कि UCC में अब और देरी नहीं करनी चाहिए। ऐसे मूर्खतापूर्ण बात कहां से आई? UCC में कुछ नियम हैं। सरकार इसे कैसे लागू कर सकते हैं? इससे किसका फायदा होगा? वे जिस तरह देश चलाना चाहते हैं वह गलत है। हिंदू राष्ट्र ही भारत के लिए आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता नहीं है। इसमें हिंदुत्व का प्रयोग गलत तरीके से हो रहा है। हम कई सालों से बिना UCC के रहते आ रहे हैं और भविष्य में भी इसके बिना रह सकते हैं।