BHOPAL. अंगदान को महादान कहा जाता है। इससे एक नहीं, कई लोगों की जिंदगी बच सकती है या बदल सकती है। इसके बाद भी लोगों में जागरूकरता की कमी के चलते भारत में अंगों की प्रतीक्षा सूची बढ़ती जा रही है। हालात ऐसे हैं कि वेटिंग लिस्ट में शामिल कम से कम 20 लोग हर रोज मौत के मुंह में समा जा रहे हैं। स्थिति ऐसी है कि भारत में सालाना लगभग 25,000-30,000 लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, लेकिन केवल 1,500 ही किए जा रहे हैं। यह स्थिति इसलिए भी है कि जीवित लोग अंगदान करने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन मौत के बाद उनके परिजन मृतकों का अंगदान करने के लिए राजी नहीं होते हैं, जबकि हकीकत यह है कि एक ब्रेन डेड व्यक्ति कम से कम 83 जिंदा लोगों की जिंदगी बदल सकता है। इसके उलट, सरकार मामले में प्रसासरत है, लेकिन ये हल्के प्रयास नाकाफी हैं।
सरकारी आंकड़ों में अंगदान बढ़ा, हकीकत... 10 लाख की आबादी पर मात्र एक डोनर
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान में तीन लाख से ज्यादा लोग ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन की सूची में शामिल हैं। इंतजार करते-करते इस सूची में शामिल कम-से-कम 20 लोगों की हर दिन मौत हो रही है। आंकड़ों के अनुसार, साल 2014 में 6,916 लोगों ने अंगदान किया था, जबकि 2022 में इस सूची में 16,041 लोगों का का नाम जुड़ा। अब आपको लग रहा होगा कि आंकड़े तो बढ़ गए हैं, इसलिए समस्याएं कम हुई हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो कीजिए और इसका विश्लेषण कीजिए। 10 लाख लोगों की आबादी पर अंगदान करने वालों (डोनर) की संख्या मात्र एक है और यह अनुपात (रेश्यो) पिछले 10 सालों से यथावत बना हुआ है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत में उनकी संख्या कम-से-कम प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर 65 तो होनी ही चाहिए।
देश में 20 एम्स और 600 मेडिकल कॉलेज
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, हमारे देश में 20 एम्स और 600 मेडिकल कॉलेज हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर इन कॉलेजों से कम से कम एक-एक डोनेशन (अंगदान) हरेक साल मिल जाए तो भी स्थिति बेहतर हो सकती है, लेकिन ऐसी स्थिति नहीं है।
क्या कहते हैं दुनिया के आंकड़े
भारत में ही अंग दान करने वालों की संख्या कम नहीं है, कमोबेश पूरी दुनिया में आंकड़े ऐसे ही हैं। वैश्विक सूची पर नजर डालेंगे तो वहां पर प्रतीक्षा सूची में शामिल 10 फीसदी रोगियों को ही समय पर अंग मिल पाता है। अमेरिका और स्पेन जैसे देशों की स्थिति थोड़ी बेहतर जरूर है। इन दोनों देशों में अंगदान का अनुपात अच्छा है। वहां पर 10 लाख की आबादी पर 35-50 लोग अंगदान के लिए उपलब्ध हो जाते हैं।
टॉप 5 राज्य : 2022 में देश में होने वाले अंगदान और ट्रांसप्लांट
राज्य ट्रांसप्लांट अंगदान
- तेलंगाना 194 655
भारत में नौ साल में अंगदान और ट्रांसप्लांट के आंकड़े
साल कुल अंगदान कुल ट्रांसप्लांट
- 2016 930 2265
85% लोग जीवित रहते हुए करते हैं अंगदान, लेकिन मौत के बाद...
भारत में अंगदान करने वालों में 85 फीसदी वे लोग हैं, जो जीवित रहते हुए अंगदान का रजिस्ट्रेशन कर देते हैं, जबकि मौत के बाद उनके परिजन अंगदान करने के लिए तैयार नहीं होते हैं। इन आंकड़ों के अनुसार, डिसिज्ड कैटेगरी यानी मौत के तुरंत बाद परिजनों की सहमति देने पर 2022 में 1589 किडनी, 761 लिवर और 250 हार्ट दान किया गया।
दो लाख किडनी की जरूरत, मिलती है सिर्फ 10 हजार
2022 के आंकड़ों के अनुसार, एक साल में करीब दो लाख किडनी ट्रांसप्लांटेशन की जरूरत पड़ती है, लेकिन 10 हजार ही उपलब्ध हो पाते हैं। इसलिए इसका समाधान हो सकता है यदि मौत के तुरंत बाद परिजन अंगदान की सहमति प्रदान कर दें, क्योंकि प्रतीक्षा सूची लगातार बढ़ती ही रहती है। प्रत्येक 10 मिनट पर एक लोगों का नाम प्रतीक्षा सूची में जुड़ रहा है।
सरकार ने नियमों में किया बदलाव, उम्र की बाधा भी हटाई
- 65 साल से अधिक उम्र के रोगियों को भी अंगदान किया जा सकता है।
एक व्यक्ति के अंगदान से बचाई जा सकती हैं आठ जिंदगियां
आंकड़े बताते हैं कि तीन चौथाई डोनर महिलाएं होती हैं। एक व्यक्ति के अंगदान से आठ जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। मान लीजिए जिस व्यक्ति की मौत हो जाती है और उसके परिजन अंगदान को राजी हो जाते हैं तो उसकी दो किडनियों से दो रोगियों को डायलिसिस से छुटकारा मिल जाएगा। उसके एक लिवर से दो अन्य जिंदगियां बच जाएंगी। इसका मतलब है कि लिवर ट्रांसप्लांटेशन से भी दो लोगों की जिंदगी बच सकती है। इसी तरह से पैनक्रियाज और हार्ट ट्रांसप्लांटेशन से दो अन्य की जिंदगी बच सकती है। टीशू डोनर से 75 अन्य लोगों की जिंदगी में बेहतरी आ सकती है। किसी को कॉर्निया तो किसी को स्किन तो किसी को बोन किसी को कार्टिलेज वैगरह में मदद मिलती है।
भारतः अंगदान करने वालों की कमी क्यों?
भारत में हर साल मरने वाले 95 लाख लोगों में से कम से कम एक लाख संभावित दानकर्ता होते हैं, इसके बावजूद हर साल देश में ऑर्गन फेलियर के कारण लाखों लोगों की मौत हो जाती है। अनुमान के मुताबिक ऑर्गन फेलियर के चलते हर दिन लगभग 300 और हर साल लगभग एक लाख से अधिक मौतें हो जाती हैं। इस खतरे को कम किया जा सकता है, अगर हर साल अंगदान को बढ़ावा दिया जा सके।
विश्व अंगदान क्यों मनाया जाता है?
विश्व अंगदान दिवस पहली बार साल 2005 में मनाया गया था, जिसके बाद इस दिवस को विश्वभर में मनाया जाने लगा। दरअसल, पहली बार साल 1954 में रोनाल्ड ली हेरिक ने अपने जुड़वा भाई को किडनी दान की थी। उनकी अंग दान की यह सर्जरी सफल रही, जिसके बाद उनका जुड़वा भाई अगले 8 वर्षों तक जीवित रहा। तब से हालांकि, यह प्रक्रिया अब पहले से काफी आसान हो चुकी है।
विश्व अंगदान दिवस का महत्व
अंगदान दिवस को मनाने के पीछे का मकसद इसके प्रति लोगों में जागरूकता फैलाना और इसके डर और मिथ्स को खत्म करना है ताकि लोग अंग दान के महत्व को समझें और इस प्रक्रिया में शामिल होने से घबराएं नहीं। अंग दान के प्रति फैली गलत जानकारियों को मिटाना भी है।
अंगदान के पंजीयन के लिए ये करें
एक बार जब आप अपना नाम अंगदान के लिए रजिस्टर करा देते हैं तो उसके बाद आपका मेडिकल टेस्ट किया जाता है, ताकि उस अंग की वर्किंग कंडिशन क्या होती है, इसकी जानकारी मिल सके। एक सरकारी कमेटी रिपोर्ट की समीक्षा करती है। कमेटी का यह भी काम है कि वह यह सुनिश्चित करे कि कोई भी व्यक्ति पैसे के लिए अंगदान नहीं कर रहा हो। मरीज को यह लिख कर देना होता है कि वह अपनी मर्जी से अंगदान कर रहा है.
सरकार की वेबसाइट और टोल फ्री नंबर
सरकार की ओर से जारी अंग दान और प्रत्यारोपण के बारे में किसी भी जानकारी के लिए एनओटीटीओ की वेबसाइट www.notto.mohfw.gov.in पर जा सकते हैं। टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर 180114770 पर कॉल कर सकते हैं।
(नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्ट्स और सरकारी आंकड़ों के आधार पर तैयार किया गया है, इसमें किसी भी प्रकार से आंकड़ों में अंतर के लिए ‘दसूत्र’ जिम्मेदार नहीं है)