NEW DELHI: देश के कई विपक्षी दलों के नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( PM Narendra Modi) की तुलना जर्मनी (Germany) के नाजी नेता एडॉल्फ हिटलर (Hitler) से करते हैं। वे विभिन्न तर्कों व उदाहरणों से समझाने का प्रयास करते हैं कि पीएम मोदी जिस तरह से शासन चला रहे हैं, विरोधियों को कुचलने का प्रयास कर रहे हैं या देश में विशेष प्रकार का शासन स्थापित करना चाहते हैं, उसकी प्रेरणा (inspiration) उन्होंने हिटलर से ली है। अब सवाल यह है कि क्या पीएम मोदी की कार्यप्रणाली हिटलर जैसी है या वे वाकई हिटलर से प्रेरणा लेते हैं। इस लेख में हम इन दावों की सच्चाई में जाने का प्रयास करेंगे और यह भी देखेंगे कि क्या ये मात्र हवाई आरोप हैं। वैसे एक पक्ष यह मानता है कि इस प्रकार के आरोप पीएम मोदी की छवि को नकारात्मक रूप से चित्रित करने का प्रयास है। इस विचारधारा का उद्देश्य देश में भय पैदा करना और वोटरों के बीच मोदी को अस्वीकार करने की कोशिश है। विशेष बात यह भी है कि देश का एक वर्ग हिटलर के व्यक्तित्व व कृतित्व को पॉजिटिव रूप में भी देखता है।
मोदी और हिटलर पर क्या कहा जा रहा है
चूंकि इस खोजबीन में तथ्यों को उकेरा जाएगा इसलिए राजनीति पर बेहद हलकी नजर रखी जाएगी। लेकिन आपको यह जरूर बता देते हैं कि मोदी को हिटलर बताने वाले विपक्षी नेताओं में राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, नितिश कुमार, जयराम रमेश, सिद्धारमैया, प्रमोद तिवारी, सुबोधकांत सहाय, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे आदि तो हैं ही, साथ ही बॉलिवुड फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े प्रकाश राज व अनुराग कश्यप भी शामिल हैं। इनके विचार और आरोप इस प्रकार हैं:-
- अगर प्रधानमंत्री हिटलर के रास्ते पर चलेंगे तो वह हिटलर की मौत मरेंगे।
- किसी भी विकसित देश ने नोटबंदी का फैसला नहीं लिया। जिन लोगों ने ऐसा किया उनमें गद्दाफी, मुसोलिनी और हिटलर हैं, चौथा नाम है नरेंद्र मोदी।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के साथ वही करना चाहते हैं जो तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने जर्मनी के साथ किया था।
- देश को चौकीदार की जरूरत नहीं है। एडॉल्फ हिटलर सोचता था कि लोगों को कोई ज्ञान नहीं है और वह खुद सब कुछ जानता है। एक सच्चा नेता अपने लोगों को व्याख्यान नहीं देता बल्कि उनके बीच जाता है।
- जो लोग 2014 में सत्ता में आए थे, वो 2024 में सत्ता से बाहर जाने वाले हैं। कभी 10 साल हिटलर का समय था। वो वहां 10 साल से ज्यादा नहीं रह सका। इनके भी 10 साल पूरे हो गए हैं।
- हिटलर भी ऐसा ही था, उसकी शुरुआत भी ऐसी ही थी। पहले उन्होंने मीडिया को नियंत्रित किया और फिर सत्ता को केंद्रित किया।
- मोदी और हिटलर एक जैसी बातें कर रहे हैं।
- आप वोट पाकर जीत सकते हैं, उन्हें मिटाकर नहीं... यह सिर्फ तानाशाही नहीं है, यह फासीवाद है, और जो लोग फासीवाद में विश्वास करते हैं, उनका प्रतीक हिटलर है।
कौन था हिटलर
अमेरिकी ऑनलाइन विश्वकोश होलोकॉस्ट इनसाइक्लोपीडिया (Holocaust Encyclopedia) के अनुसार एडॉल्फ हिटलर (1889–1945) का जन्म 20 अप्रैल 1889 को ऑस्ट्रियाई सीमावर्ती शहर ब्रौनौ एम इन में हुआ था। वह चित्रकार बनना चाहते थे, जबकि उनके पिता उन्हें सिविल सेवा में भेजना चाहते थे। बाद में वह जर्मनी सेना में भर्ती हो गए। युद्ध के दौरान वह दो बार घायल हुए। साल नवंबर 1918 में अस्पताल से छुट्टी मिलने पर हिटलर म्यूनिख (जर्मनी शहर) लौट आए। उन्हें कई पदकों से सम्मानित किया गया था। इसके बाद वह सिविल सेवा में आ गए। इस दौरान उन्होंने जर्मनी से यहूदियों को हटाने की वकालत की और नाजी पार्टी में शामिल हो गए। वर्ष 1923 में अपनी सरकार पलटने की कोशिशों के आरोप में उन्हें जेल की सजा हुई। एक साल बाद ही जेल से रिहा होने पर हिटलर ने नाजी पार्टी का पुनर्गठन किया।
प्रभाव व मौत
विश्वकोश ब्रिटानिका (Britannica) के अनुसार हिटलर ने नाजी विचारधारा को बढ़ावा दिया, जिसमें रक्षा क्षमता को बढ़ाना, संप्रभुता बहाल करना आर्थिक समृद्धि पैदा करना और रोजगार पैदा करने के अलावा जर्मनी में विदेशी और यहूदी राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव को खत्म करना शामिल है। वर्ष 1932 में चुनाव के बाद उनकी पार्टी जर्मनी की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी बन गई। इसके लिए हिटलर ने अपनी प्रभावी व मंत्रमुग्ध करने वाले भाषणों का सहारा लिया। इन्हीं भाषणों ने युवाओं को उसके प्रति आकर्षित किया। वर्ष 1934 में उन्होंने सेना की मदद से राष्ट्रपति पद समाप्त कर दिया और खुद को जर्मन लोगों का फ्यूहरर (मार्गदर्शक) घोषित कर दिया। आरोप है कि इस दौरान हिटलर ने 60 लाख यहूदियों की हत्या की। वर्ष 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हुआ और हिटलर की लीडरशिप में 1941 तक नाजी सेनाओं ने यूरोप पर बहुत कब्ज़ा कर लिया। बाद में मित्र राष्ट्रों की सेनाओं ने उसकी सेना को हरा दिया, जिसके बाद निराश-हताश हिटलर ने 30 अप्रैल 1945 को अपनी पत्नी इवा ब्राउन के साथ गोली मारकर आत्महत्या कर ली।
खलनायक जैसी छवि क्यों है हिटलर की
हिटलर ने अपनी विचारधारा को अपनी आत्मकथा ‘माइन काम्फ’ (जर्मन: Mein Kampf) (हिंदी: मेरा संघर्ष) में डिटेल में लिखा है। पुस्तक में उन्होंने खुद को चरम दक्षिणपंथ के नेता के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने जीवन, युवावस्था और यहूदी विरोधी भावना पर खुलकर लिखा और स्पष्ट रूप से एक स्पष्ट जाति-आधारित राष्ट्रवादी विचारधारा का इजहार किया। उन्होंने तानाशाही व सैन्य विस्तार की वकालत भी की। बड़ा आरोप यह भी है कि हिटलर और उसके सहयोगी देशों ने अपने शासनकाल (वर्ष 1933–1945) में करीब 60 लाख यहूदियों की हत्या (Holocaust) की। इसे पूरे यूरोप में यहूदियों का व्यवस्थित, राज्य-प्रायोजित उत्पीड़न और हत्या माना गया। असल में यहूदियों के प्रति घृणा या पूर्वाग्रह नाजी विचारधारा का मूल सिद्धांत था। होलोकॉस्ट इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार नाजियों ने यहूदियों पर जर्मनी की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधी समस्याएं पैदा करने का झूठा आरोप लगाया। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की हार के लिए भी उन्हें दोषी ठहराया। वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एक बैठक में कहा था कि दुनिया को यह याद रखना होगा कि यह नरसंहार यहूदी लोगों और कई अन्य लोगों को खत्म करने का एक व्यवस्थित प्रयास था।
क्या आरोप हैं पीएम मोदी पर
संविधान विशेषज्ञ व लोकसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा के अनुसार देश का खास बुद्धिजीवी वर्ग भी पीएम मोदी की ‘छवि’ में हिटलर को देखता है। यह वर्ग आरएसएस व नाजी पार्टी में कई समानताएं बताता है और मानता है कि हिटलर और मोदी का राष्ट्रवाद इन दोनों पार्टियों की ही देन है। हिटलर और नाज़ी पार्टी दोनों लेबेन्स्राम (वृहद जर्मनी) में विश्वास करते थे। इसी तरह आरएसएस और बीजेपी भी अखंड भारत में विश्वास करते हैं जिसमें पड़ोसी देशों के क्षेत्र भी शामिल हैं। दोनों को अल्पसंख्यक और जातीय समूहों के प्रति घृणा या संदेह रखने के लिए जाना जाता है। हिटलर अपने देश की सबसे बड़ी पार्टी वायमार रिपब्लिक (Weimar Republic) को भ्रष्ट और कायर मानते थे। पीएम मोदी का देश की कांग्रेस पार्टी को लेकर यही रवैया है। मोदी और हिटलर दोनों के पास अच्छी वक्तृत्व कला है। इस कारण वे बीजेपी और नाज़ी पार्टी के लिए मूल्यवान बन गए। इस वर्ग का यह भी कहना है कि जब हिटलर सत्ता में था तो उसने जर्मनी के शिक्षा विभाग में कई अफसरों की नियुक्ति की जो उसके विचारों में विश्वास करते थे। उनके दृष्टिकोण के अनुरूप इतिहास बदला जा रहा था। इसी तरह मोदी के पीएम बनने के बाद इतिहास के कई पाठ्यपुस्तकों में बदलाव किया जा रहा है ताकि हिंदू और सिख राजाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सके और मुगलों और अन्य मुस्लिम शासकों का सफाया किया जा सके। शर्मा के अनुसार यह सभी आरोप फर्जी हैं। पीएम मोदी और उनकी पार्टी का रवैया हमेशा लोकतांत्रिक रहा है और वे हमेशा देशहित के बारे में ही सोचते रहते हैं। असल में इस वर्ग की देश में दाल नहीं गल पा रही है, इसलिए अनर्गल आरोप लगाए जा रहे हैं।
क्या मोदी वाकई हिटलर जैसा व्यवहार करते हैं?
इन आरोपों पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता व देश के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ही सवाल खड़े करते हैं। उनका कहना है कि ऐसे आरोप लगाने वाले लोग असल में देश विरोधी है और देश की तरक्की नहीं चाहते हैं। पीएम मोदी विश्व के सबसे पापुलर लीडर माने जाते हैं और वह देश में कानून के हिसाब से ही सरकार चला रहे हैं। हमारी सरकार की ऐसी कौन सी योजना या कार्यक्रम है, जिसमें किसी वर्ग या समुदाय की अनदेखी की जा रही है। देश की महत्वपूर्ण योजनाएं बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ, आयुष्मान योजना, किसान सम्मान विधि योजना, उज्ज्वला योजना, जल जीवन मिशन देश के सभी नागरिकों के लिए हैं। इन योजनाओं में कोई जातिगत या धार्मिक भेदभाव नहीं किया जा रहा है। अल्पसंख्यक विशेषकर मुसलमानों को मुख्यधारा में लाने और उनकी शिक्षा को आधुनिक बनाने के लिए सबसे अधिक प्रयास किए जा रहे हैं। देश सांप्रदायिक दंगों से मुक्त है, आतंकवादी छिपे हुए हैं तो कश्मीर में शांति है। डॉ. हर्षवर्धन के अनुसार मोदी देश के निर्विवाद नेता हैं, तभी दो बार देश ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाया है। अब तीसरी बार भी वह देश के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं।
हिटलर यहूदी विरोधी थे, मोदी मुस्लिम विरोधी है?
देश के अधिकतर विपक्षी दल मोदी सरकार को मुस्लिम विरोधी बताती है और आरोप लगाती है कि उसके राज में मुस्लिमों पर अत्याचार हो रहे हैं और उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का प्रयास किया जा रहा है। खास बात यह है कि जब भी चुनाव का दौर आता है तो गुजरात दंगों का मसला उछाला जाता है। इन दंगों में राज्य के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी व मंत्री अमित शाह पर शामिल होने के आरोप लगाए गए और सालों उन पर मुकदमे चले लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें निर्दोष मानकर बरी कर दिया। इस मसले पर 22 जून 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002-गुजरात दंगा मामले में SIT की ओर से नरेंद्र मोदी को दी गई क्लीन चिट को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं हैं कि गोधरा कांड और उसके बाद ही हिंसा सुनियोजित साजिश का नतीजा थी। गौरतलब है कि इन दंगों में मुसलमानों के अलावा हिंदू भी मारे गए थे। वर्ष 2005 में संसद में कांग्रेस सरकार ने लिखित जतवाब में जानकारी दी थी कि 2002 के गुजरात दंगे में 1044 लोग मरे, जिसमें 790 मुस्लिम और 254 हिंदू थे। दूसरी ओर वरिष्ठ पत्रकार व पुस्तक 'साजिश की कहानी-तथ्यों की जुबानी' के लेखक संदीप देव मानते हैं कि पीड़ितों में हिंदुओं की संख्या भी बहुत थी, जिसे उजागर नहीं किया गया।
हिटलर व मोदी का मीडिया पर रवैया एक जैसा है?
विरोधी यह भी आरोप लगाते हैं कि जिस तरह एडॉल्फ हिटलर ने सूचना-तंत्र को कंट्रोल में किया हुआ था, पीएम मोदी भी वैसा ही करते हैं। अब हाल यह है कि अधिकतर मीडिया हाउस मोदी सरकार के गुण गा रहे हैं और आलोचना करने वालों को रोका जा रहा है। पहले इस मसले पर हिटलर के प्रचारतंत्र व सेंसरिशप पर बात करें। इतिहास की कई पुस्तकों में इस पर विस्तार से जानकारी दी गई है, जैसे साल 1933 में नाज़ियों ने सत्ता में आने पर भाषण की स्वतंत्रता और प्रेस की आजादी की गारंटी दी। लेकिन बाद में फरमानों और कानूनों के जरिए इन नागरिक अधिकारों को खत्म कर दिया गया। हाल यह हो गया कि नाज़ी सरकार की आलोचना करना अवैध था। यहां तक कि हिटलर के बारे में चुटकुला सुनाना भी देशद्रोह माना जाता था। इस दौरान नाजी विरोधी समाचार पत्रों, रेडियो समाचारों को नियंत्रण में लिया गया। दूसरी ओर नाजी विचारों को फैलाने के लिए मजबूत प्रचारतंत्र बनाया गया। दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर कुमुद शर्मा के अनुसार मोदी सरकार में तो बंदिश जैसा कुछ नजर नहीं आ रहा है। मीडिया घराने अपनी मर्जी से चल रहे हैं, उन पर सरकार का दबाव नहीं दिख रहा है। हां, इस फील्ड में जुड़े अराजक तत्वों पर लगाम लगाई जा रही है। इतिहास गवाह है कि अधिकतर मीडिया सत्ता पक्ष के साथ रहता है। सोशल मीडिया पर खुलेआम सरकार की बेबाक आलोचना हो रही है। बस सरकार उन खबरों पर नजर रख रही है जो समाज या देशविरोधी हैं। देश में सैकड़ों खबरिया चैनल, हजारों समाचारपत्र व लाखों सोशल मीडिया पर खबरें प्रसारित हो रही हैं।
प्रचार को लेकर दोनों की सोच एक-समान है
यह भी कहा जाता है कि प्रचार को लेकर हिटलर व मोदी का व्यवहार एक जैसा है, यानि सरकार व पार्टी के पक्ष में जबर्दस्त व लगातार प्रचार किया जाए। नाजियों ने अपने विचारों और विश्वासों को बढ़ावा देने के लिए प्रचार का इस्तेमाल किया। वर्ष 1933 में हिटलर शासन ने जोसेफ गोएबल्स के नेतृत्व में एक नए मंत्रालय प्रचार को फोकस करने के लिए ही बनाया गया। इसमें बुद्धिजीवियों की भरमार थी। पोस्टरबाजी भी खूब की जाती थी। यही आरोप विपक्ष मोदी पर लगाते हैं। वह प्रचार पर अधिक ध्यान देते हैं। नाजी रणनीति की तरह ही किसी बात को बार-बार दोहराना। जैसे कि अबकी बार-400 पार को लगातार और हर मंच से दोहराया जा रहा है। प्रचार के लिए विशेष प्रकोष्ठ बनाए जा रहे हैं। हिंदू समाचार पत्र के वरिष्ठ पत्रकार सुजय महदूदिया के अनुसार अब तो जमाना ही प्रचार का है। आप खुद, सरकार या पार्टी का प्रचार नहीं करोगे तो सोशल मीडिया में उठ रहे विरोधी स्वरों का जवाब नहीं दे पाओगे। असल में अब सिस्टम ही ऐसा बन गया है कि आपको टिके रहने के लिए लगातार प्रचार करना होगा। अगर आप साधन संपन्न हैं तो आगे ही रहेंगे।