KOLKATA. कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर रेप-मर्डर केस में सीबीआई की कार्रवाई जारी है। मामले में मुख्य आरोपी संजय रॉय समेत अन्य 7 लोगों का पॉलीग्राफ टेस्ट शुरू हो गया है। CBI अधिकारी ने बताया कि बयानों की सत्यता के लिए पॉलीग्राफ टेस्ट किया जा रहा है।
सीबीआई के अधिकारी ने बताया कि दिल्ली के केंद्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (CFSL) से पॉलीग्राफ विशेषज्ञों की एक टीम कोलकाता पहुंच गई है। मुख्य आरोपी संजय रॉय, मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष, वारदात की रात पीड़िता के साथ रहने वाले चार डॉक्टर, एक वालंटियर का टेस्ट किया जा रहा है। अधिकारियों के अनुसार संजय रॉय जेल में अभी जेल में बंद है तो उसका पॉलीग्राफ टेस्ट जेल में किया जाएगा।
पॉलीग्राफ टेस्ट क्यों कराना चाहती है सीबीआई
सीबीआई मामले में बयानों को सत्यता के उद्देश्य से पॉलीग्राफ टेस्ट करा रही है। इस केस में सीबीआई यह जानना चाहती है कि क्या इन चारों ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ का है। ये लोग किसी षड्यंत्र का हिस्सा थे। दरअसल, अन्य मेडिकल रिपोर्ट जैसे पीड़िता का डीएनए, वेजाइनल स्वैब, पोस्टमार्टम ब्लड सही तरीके घटना से जोड़ने में असफल रही हैं।
संजय रॉय की प्रवृत्ति जानवर जैसी
ट्रेनी डॉक्टर से हुई दरिंदगी के मुख्य आरोपी संजय के मनोविश्लेषण ने भी कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। सीबीआई अधिकारी ने बताया कि आरोपी संजय की मानसिक विश्लेषण से यह संकेत मिला है कि वह अश्लील फिल्म देखने का आदी था। वह विकृत व्यक्ति था। CFSL के डॉक्टरों का हवाला देते हुए अधिकारी ने बताया कि कोलकाता पुलिस का स्वयंसेवी रहा आरोपी संजय जानवर जैसी प्रवृत्ति का है।
पॉलीग्राफ टेस्ट क्या होता है?
कई केस की जांच में सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस पॉलीग्राफ टेस्ट का इस्तेमाल करती है। आरोपी से सच उगलवाने के लिए पॉलीग्राफ टेस्ट किया जाता है। इसके तहत झूठ पकड़ने वाली मशीन (लाई डिटेक्टर मशीन) की मदद से आरोपी का झूठ पकड़ने की कोशिश की जाती है।
टेस्ट के दौरान आरोपी के जवाब और शरीरिक प्रतिक्रियाओं से लगाया जाता है कि आरोपी सवालों के सही जवाब दे रहा है या नहीं, मशीन की मदद से इस टेस्ट में आरोपी के रिएक्शन के हिसाब से तय होता है कि केस में जवाब सच है या गलत।
कैसे काम करती है ये मशीन?
पॉलीग्राफ टेस्ट वाली मशीन के कई हिस्से होते हैं। इसमें कुछ यूनिट्स को आरोपी के शरीर से जोड़ा जाता है। टेस्ट के शुरू होते ही जब आरोपी जांच टीम के सवालों के जवाब देता है तो इन यूनिट्स से डेटा मिलतने लगता है, यह डाटा एक मुख्य मशीन में जाकर झूठ या सच का पता लगाता है। शरीर से अटैच यूनिट्स में न्यूमोग्राफ, कार्डियोवास्कुलर रिकॉर्डर और गैल्वेनोमीटर होता है। साथ ही मशीन के माध्यम से ब्लड प्रेशर, पल्स रेट आदि की मॉनिटरिंग की जाती है। शरीर से अटैच डिवाइस में न्यूमोग्राफ से प्लस रेट और श्वस्न प्रक्रिया आदि को मॉनिटर किया जाता है। जवाब के दौरान सांस के जरिए सच या झूठ का अंदाजा लगाया जाता है। इसकी ट्यूब को सीने के चारों तरफ बांधा जाता है। कार्डियोवास्कुलर रिकॉर्डर से दिल की धड़कन और बीपी को मॉनिटर किया जाता है। क्योंकि झूठ बोलने पर असामान्य बदलाव देखने को मिलते है, जिससे सच का पता किया जा सकता है।
जांच शुरू होते ही आरोपी से ऐसे सामान्य सवाल किए जाते हैं, जो मामले से जुड़े नहीं होते है। फिर ज्यादातर सवाल हां या ना में पूछे जाते हैं और इसके एक्सपर्ट उन मशीन के डेटा से सच पता लगाते हैं। इसमें पल्स रेट, बीपी, सांस आदि होने वाले बदलाव के डेटा के अनुसार परिणाम निकाला जाता है। आपको बता दें कि पॉलीग्राफ टेस्ट कराने के लिए पहले अदालत से परमिशन लेनी होती है। कोर्ट मामले में पॉलीग्राफ टेस्ट की आवश्यकता को देखते हुए टेस्ट करवाने की इजाजत देता है।
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