नाबालिग बच्चों को चलाने के लिए गाड़ी देना माता-पिता के लिए भी खतरनाक हो सकता है। यदि बच्चे कोई दुर्घटना कर देते हैं तो माता-पिता भी इसके लिए बराबर से जिम्मेदार होंगे। ज्ञात हो कि ( hit and run case india पुणे सड़क हादसा ) पुणे में पोर्श कार से दो लोगों की जान लेने वाले नाबालिग आरोपी के पिता को गिरफ्तार कर लिया गया है। ये कार्रवाई पीएम नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से साल 2019 में किए गए कानून में बदलाव के बाद की गई है। ये घटना 18 मई को हुई थी। पुलिस के अनुसार नाबालिग आरोपी ने पोर्श कार से बाइक सवार अनीष अवधिया और अश्विनी कोस्टा को टक्कर मार दी, जिससे दोनों की मौत हो गई थी।
एमपी के रहने वाले थे मृतक
Pune Road Accident में मारे गए अनीष अवधिया और अश्विनी कोस्टा, दोनों ही 24 साल के थे और मध्य प्रदेश के रहने वाले थे। दोनों ही पुणे में एक आईटी कंपनी में जॉब करते थे। ये घटना पुणे के कल्याणी नगर में हुई थी। पुलिस ने 17 साल के नाबालिग आरोपी को गिरफ्तार किया था, लेकिन जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने कुछ शर्तों के साथ उसे जमानत दे दी थी। जमानत की शर्तों में 300 शब्दों का एक निबंध लिखने की शर्त भी शामिल थी। इसके बाद जब गुस्सा फूटा तो पुलिस हरकत में आई और आरोपी के पिता विशाल अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया।
बेटे की गलती पर पिता ऐसे फंस गए
पुलिस ने इस मामले पिता के खिलाफ जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 75 और 77 के तहत केस दर्ज किया है। इस कानून की धारा 75 बच्चों के प्रति क्रूरता, जबकि धारा 77 बच्चों को नशीले पदार्थों की आपूर्ति करने से जुड़ी है।
पिता पर आरोप है कि उन्हें पता था कि उनके बेटे के पास वैलिड ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है। इसके बावजूद उसे कार दी। इतना ही नहीं, उन्हें ये भी पता था कि उनका बेटा शराब पीता है, तब भी उसे पार्टी में जाने की इजाजत दी। इस मामले में पुलिस ने आरोपी लड़के खिलाफ आईपीसी की धारा 304 ( गैर-इरादतन हत्या ) और मोटर व्हीकल एक्ट के तहत केस दर्ज किया है।
2019 में हुआ मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन
2019 में मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन हुआ ( underage driving rules ) था। संशोधन के जरिए नाबालिग अपराधियों के लिए एक अलग से धारा जोड़ी गई थी। इसमें नाबालिगों के अपराध के लिए माता-पिता, गार्जियन या गाड़ी मालिक की जवाबदेही तय की गई थी। मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 199A कहती है कि अगर नाबालिग कोई अपराध करता है तो ऐसे मामले में उसके माता-पिता या गार्जियन या फिर गाड़ी के मालिक को दोषी माना जाएगा।
कानून के मुताबिक, अदालत ये मानकर चलेगी कि नाबालिग को गाड़ी देने में माता-पिता, गार्जियन या गाड़ी मालिक की सहमति थी। ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर तीन साल जेल और 25 हजार रुपये जुर्माने की सजा का प्रावधान है।
ऐसे मामलों में खुद को निर्दोष साबित करने का सारा जिम्मा माता-पिता, गार्जियन या गाड़ी मालिक पर होता हैद्ध उन्हें साबित करना होता है कि नाबालिग ने जो अपराध किया है, उसके बारे में उन्हें कुछ नहीं पता था और उन्होंने ऐसे अपराध को रोकने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए थे।
निर्भया कांड की तरह केस चलाने का प्लान
पुलिस का कहना है कि इस मामले में वो कोर्ट से नाबालिग पर वयस्क की तरह केस चलाने की अर्जी दाखिल करेगी, क्योंकि ये जघन्य अपराध का मामला बनता है।
दिसंबर 2012 में दिल्ली के निर्भया कांड के बाद कानून में संशोधन किया गया था। इसमें प्रावधान किया गया कि अगर 16 साल या उससे ज्यादा उम्र का कोई किशोर जघन्य अपराध करता है तो उसके साथ वयस्क की तरह बर्ताव किया जाएगा।
अगर आरोपी को नाबालिग मानकर ही मुकदमा चलाया गया तो उसे तीन साल के लिए सुधार गृह भेजा में भेजा जाएगा। लेकिन अगर उसे वयस्क मानकर मुकदमा चलाया जाता है और जेल की सजा होती है, तो भी कानूनन 21 साल तक उसे सुधार गृह में रखा जाएगा और इसके बाद ही जेल में डाला जाता है।
हालांकि, अगर नाबालिग को वयस्क मानकर मुकदमा चलाया जाता है तो भी उसे मौत की सजा या उम्रकैद की सजा नहीं दी जा सकती.