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रेलवे का वो कवच जो रोक सकता था ओडिशा रेल हादसा, 288 लोगों की बचा सकता था जान, जानिए कैसे काम करता कवच

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The Sootr
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रेलवे का वो कवच जो रोक सकता था ओडिशा रेल हादसा, 288 लोगों की बचा सकता था जान, जानिए कैसे काम करता कवच

NEW DELHI. ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण ट्रेन हादसे ने एक बार फिर भारतीय रेल यात्रियों की सुरक्षा से जुड़े दावों पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। अब सवाल उठ रहे हैं रेलवे के कवच प्रोजेक्ट को लेकर, जिसे रेलवे ने जीरो एक्सीडेंट टार्गेट हासिल करने के लिए लॉन्च किया था। हालांकि, रेलवे की कवच टेक्नोलॉजी को सभी ट्रैक पर अभी तक नहीं जोड़ा गया है। दरअसल रेलवे ने यात्रियों की सिक्योरिटी को ध्यान में रखते हुए ‘कवच’ का निर्माण करवाया था जिसके आने के बाद ये माना जा रहा था कि भविष्य में ट्रेन हादसों पर एक दिन जरूर लगाम लग जाएगी।





रेलवे का मास्टर स्ट्रोक था ‘कवच’





रेल हादसों को रोकने के लिए भारतीय रेलवे के 'कवच' को मास्टर स्ट्रोक और बड़ी क्रांति बताकर प्रचारित किया था। इस तकनीक के बारे में कहा जा रहा था कि रेलवे वो तकनीक विकसित कर चुका है जिसमें अगर एक ही पटरी पर ट्रेन आमने सामने भी आ जाए तो एक्सीडेंट नहीं होगा। रेल मंत्रालय ने तब बताया था कि इस ‘कवच’ टेक्नोलॉजी को धीरे-धीरे देश के सभी रेलवे ट्रैक और ट्रेनों पर इंस्टाल कर दिया जाएगा। अब रेलवे के इन्हीं दावों पर कांग्रेस पार्टी ने सवाल उठाए हैं।





परीक्षण में सफल लेकिन वास्तविकता में विफल

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मार्च 2022 में हुए कवच टेक्नोलॉजी के ट्रायल में एक ही पटरी पर दौड़ रही दो ट्रेनों में से एक ट्रेन में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव  सवार थे और दूसरी ट्रेन के इंजन में रेलवे बोर्ड के चेयरमैन खुद मौजूद थे। एक ही पटरी पर आमने सामने आ रहे ट्रेन और इंजन ‘कवच’ टेक्नोलॉजी के कारण टकराए नहीं, क्योंकि कवच ने रेल मंत्री की ट्रेन को सामने आ रहे इंजन से 380 मीटर दूर ही रोक दिया और इस तरह परीक्षण सफल रहा था।





कामयाबी पर रेल मंत्री ने दिया था बयान





कामयाब ट्रायल के बाद रेल मंत्री ने कहा था कि अगर एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनें आमने सामने हों तो कवच टेक्नोलॉजी ट्रेन की स्पीड कम कर इंजन में ब्रेक लगाती है। इससे दोनों ट्रेनें आपस में टकराने से बच जाएंगी। 2022-23 में कवच टेक्नोलॉजी को इस साल 2000 किलोमीटर रेल नेटवर्क पर इस्तेमाल में लाया जाएगा। इसके बाद हर साल 4000-5000 किलोमीटर नेटवर्क जुड़ते जाएंगे। लेकिन इस काम में जिस तेजी की उम्मीद की गई थी शायद उस स्तर पर काम नहीं हो पाया।

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RDSO ने डेवलप किया था कवच





कवच टेक्नोलॉजी को देश के तीन वेंडर्स के साथ मिलकर RDSO ने डेवलप किया था ताकि पटरी पर दौड़ती ट्रेनों की सेफ्टी सुनिश्चित की जा सके। RDSO ने इसके इस्तेमाल के लिए ट्रेन की स्पीड लिमिट अधिकतम 160 KMph तय की थी। इस सिस्टम में कवच का संपर्क पटरियों के साथ-साथ ट्रेन के इंजन से होता है। पटरियों के साथ इसका एक रिसीवर होता है तो ट्रेन के इंजन के अंदर एक ट्रांसमीटर लगाया जाता है जिससे की ट्रेन की असल लोकेशन पता चलती रहे।





कवच के बारे में जाने सबकुछ

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कवच के बारे में कहा गया था कि वो उस स्थिति में एक ट्रेन को ऑटोमेटिक रूप से रोक देगा, जैसे ही उसे निर्धारित दूरी के भीतर उसी पटरी पर दूसरी ट्रेन के होने का सिग्नल मिलेगा। इसके साथ-साथ डिजिटल सिस्टम रेड सिग्नल के दौरान ‘जंपिंग’ या किसी अन्य तकनीकि खराबी की सूचना मिलते ही ‘कवच’ के माध्यम से ट्रेनों के अपने आप रुकने की बात कही गई थी। कवच प्रणाली लगाने की शुरुआत दिल्ली-हावड़ा और दिल्ली-मुंबई रूट से करने की बात कही गई थी।





आखिर कैसे हुआ हादसा





बालासोर ट्रेन हादसे की शुरुआती खबर जब आई तो टक्कर एक एक्सप्रेस और मालगाड़ी के बीच बताई जा रही थी। इस हादसे में 30 लोगों के मौत की जानकारी मिली थी, लेकिन कुछ ही वक्त बाद हादसे की पूरी डिटेल आई। इसमें पता चला की हादसा दो ट्रेनों के बीच नहीं बल्कि तीन ट्रेनो के बीच हुआ है। एक्सीडेंट के वक्त आउटर लाइन पर मालगाड़ी खड़ी थी। हावड़ा से आ रही कोरोमंडल एक्सप्रेस बहानगा बाजार से लगभग 300 मीटर दूर डिरेल हुई। ये हादसा इतना भयानक था कि कोरोमंडल एक्सप्रेस का ईंजन मालगाड़ी के ऊपर चढ़ गया और इसकी बोगियां तीसरे ट्रैक पर जा गिरीं। इस बीच तेज रफ्तार से आ रही हावड़ा-बेंगलुरु एक्सप्रेस डिरेल हुई कोरोमंडल एक्सप्रेस की बोगियों से टक्करा गई।

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रेल एक्सपर्ट के मुताबिक हादसे के पीछे ये कारण हो सकते हैं





तापमान: रेल एक्सपर्ट ने पांच कारणों में से सबसे पहला कारण टेंपरेचर बताया है। उन्होंने कहा कि भारत में गर्मी एक बड़ी समस्या है। जब गर्मी के मौसम में तापमान 40 डिग्री के पार चला जाता है। इस दौरान रेल पटरियों पर अधिक जोखिम रहता है। दिन के समय में पटरियों का विस्तार होता है। वहीं रात में ठंड के कारण लाइनें सिकुड़ जाती है। इस विस्तार और संकुचन के कारण रेल की पटरियों में दरारें आ जाती हैं। यह एक पहला संभावित कारण हो सकता है।





टेक्नोलॉजी फेल्योर: एक्सपर्ट ने दूसरा कारण बताया कवच फेल्योर, कवच भारतीय रेल ट्रैक में उपयोग किया जाने वाला एक डिवाइस है, जो एक ट्रेन को एक निश्चित दूरी पर रुकने में मदद करता है जब दूसरी ट्रेन उसी ट्रैक पर आती है। अगर कोई ट्रेन सेम ट्रैक के ट्रैक पर आती है, तो ऑटोमेटिक ब्रेकिंग सिस्टम लागू हो जाता है और ट्रेन रुक जाती है। शायद यहां ऐसा नहीं हुआ होगा। यह दूसरा संभावित कारण हो सकता है।

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सिग्नलिंग फेल्योर: रेल एक्सपर्ट ने तीसरा संभावित कारण सिग्नलिंग फेल्योर बताया। एक्सपर्ट का कहना है कि नेशनल रेल ट्रैक में सिग्नलिंग अपने आप होती है फिर भी सिग्नल ऑपरेशन में फेल्योर या सॉफ्टवेयर की खराबी के कारण सिग्नल फेल हो सकते हैं, जिससे दोनों ट्रेनें एक ही लाइन पर आ सकती हैं। उन्होंने कहा कि जैसा कि लोकोमोटिव पायलट दूसरी ट्रेन देखता है, वह इमरजेंसी ब्रेक लगाता है और हाई स्पीड ट्रेन में होने के कारण दुर्घटना हो जाती है।





फिशप्लेट की खराबी: एक्सपर्ट ने चौथा कारण फिशप्लेट की खराबी बताया। रेल एक्सपर्ट ने कहा कि फिशप्लेट एक प्लेट है, जो दो रेलों को जोड़ती है। अगर फिश प्लेट खुली रहती है या फिश प्लेट का पेंच खुला रहता है तो पटरी ढीली हो जाएगी और दुर्घटना का कारण बनेगी।





टेरर एंगल: पांचवां और आखिरी संभावित कारण टेरर एंगल बताया जा रहा है। एक्सपर्ट का कहना है कि ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश अभी भी माओवादी प्रभावित क्षेत्र हैं। अगर कोई ट्रैक की फिश प्लेट खोल देता है, तो ट्रेन अपने आप पटरी से उतर जाएगी और टक्कर का कारण बनेगी, जिससे जनहानि और सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान होगा। इस दौरान उन्होंने गणेश्वरी ट्रेन दुर्घटना का उदाहरण दिया। इस हादसे में करीब 100 लोगों की मौत हो गई थी। माओवादी हमले के कारण ये घटना हुई। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा भी हो सकता है कि किसी अन्य आतंकी संगठन ने दुर्घटना को अंजाम दिया हो।



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