19 साल बाद साथ आए उद्धव और राज ठाकरे, 59 साल में ऐसा रहा ठाकरे फैमली का सियासी सफर

20 साल बाद उद्धव और राज ठाकरे ने एक मंच पर आए हैं। हिंदी के विरोध में और मराठी एकता के लिए ठाकरे ब्रदर्स ने गले मिलकर विजय रैली की शुरूआत की।

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Rohit Sahu
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महाराष्ट्र की राजनीति में शनिवार को एक बड़ा नजारा देखने को मिला। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे करीब 19 साल बाद एक ही मंच पर नजर आए। मुंबई के वर्ली स्थित NSCI डोम में आयोजित विजय रैली में दोनों नेताओं ने मराठी एकता के लिए एक मंच से भाषण दिया। कार्यक्रम की शुरूआत में दोनों मंच पर गले मिले और सरकार की तीन-भाषा नीति के खिलाफ एकजुटता दिखाई।

ठाकरे ब्रदर्स की रैली से पहले ही सरकार ने फैसला वापस लिया

इस मंच का आयोजन शिवसेना (UBT) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने संयुक्त रूप से किया था। इस रैली का मकसद महाराष्ट्र सरकार द्वारा हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने के निर्णय के खिलाफ आवाज उठाना था।  हालांकि आज यानी 5 जुलाई को प्रस्तावित ठाकरे ब्रदर्स की विरोध रैली से पहले ही 29 जून को सरकार ने अपना फैसला वापस ले लिया था।

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ठाकरे फैमली का 59 साल का सियासी सफर

1966 में शिवसेना के गठन के बाद से शुरू हुआ ठाकरे फैमली का सियासी सफर 59 सालों में कई मोड़ देख चुका। इस बीच शिवसेना ने बीजेपी के साथ सरकार बनाई। 2006 में राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर खुद की पार्टी गठित की। कांग्रेस और सहयोगी दलों के साथ शिवसेना ने सरकार बनाई। पार्टी में गुटबाजी हुई। अब भाषा
विवाद पर उद्धव राज फिर साथ आ गए।

क्या है मराठी और हिंदी भाषा का विवाद

असल में महाराष्ट्र सरकार ने 16 और 17 अप्रैल को दो GR (सरकारी आदेश) जारी किए थे। एक आदेश में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने की घोषणा की थी। यह आदेश मराठी और अंग्रेजी दोनों मीडियम के स्कूलों पर लागू होने वाला था। इस फैसले का उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने कड़ा विरोध किया।

सरकार के आदेश के विरोध में ठाकरे ब्रदर्स की रैली

तीसरी अनिवार्य भाषा हिंदी करने को लेकर शनिवार 5 जुलाई को संयुक्त रैली का ऐलान किया गया। हालांकि सरकार के फैसला वापस लेने के बाद अब इसे विजय रैली का नाम दिया गया। रैली में उद्धव और राज ठाकरे साथ नजर आए। उद्धव ठाकरे ने इसे विपक्ष और जनता की एकजुट आवाज की जीत बताया।

मराठी एकता के सामने झुकी सरकार: राज ठाकरे

रैली के दौरान उद्धव ठाकरे ने कहा कि सरकार को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा। उन्होंने इसे जनता की ताकत का बताया और मराठी भाषियों को बधाई दी। राज ठाकरे ने मंच से कहा कि अगर मराठी की अनदेखी होती रही तो वे फिर एकजुट होकर विरोध करेंगे।

मराठी एकता का दिया संदेश

विजय रैली में मंच से दोनों नेताओं ने स्पष्ट संकेत दिया कि मराठी एकता किसी पार्टी की नहीं, जनभावना की बात है। रैली के माध्यम से उन्होंने यह भी जताया कि यदि जनहित के मुद्दे होंगे, तो राजनीतिक मतभेद भुलाकर साथ खड़ा हुआ जा सकता है।

राज और उद्धव ठाकरे के साथ आने के क्या मायने

जानकारों का मानना है कि रैली का उद्देश्य सिर्फ भाषा नीति पर विरोध नहीं था, बल्कि इसे एक बड़े राजनीतिक संकेत की तरह देखा जाना चाहिए। करीब 19 साल पहले 2006 में दोनों भाई एक साथ बाला साहेब ठाकरे की रैली में दिखे थे। उसके बाद राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर MNS की स्थापना की थी। अब दोनों के साथ आने पर इसके सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। आने वाले नगर निगम चुनावों को लेकर भी इसे बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है।

तीसरी भाषा को लेकर अब सरकार ये गाइडलाइन

नई गाइडलाइन के मुताबिक, अब छात्रों को हिंदी के अलावा अन्य भारतीय भाषाएं भी तीसरी भाषा के रूप में चुनने का विकल्प मिलेगा। शर्त यह होगी कि एक कक्षा में कम से कम 20 छात्र उस भाषा को चुनें। ऐसी स्थिति में स्कूल में उस भाषा के शिक्षक की नियुक्ति होगी। अगर छात्रों की संख्या 20 से कम हुई तो उन्हें online classes के जरिए भाषा पढ़ाई जाएगी।

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