राजीव की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी, एक एक्सीडेंट के बाद चुनाव लड़ना पड़ा, लिट्टे ने उन्हें मारने के लिए प्लान B भी बनाया था

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Atul Tiwari
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राजीव की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी, एक एक्सीडेंट के बाद चुनाव लड़ना पड़ा, लिट्टे ने उन्हें मारने के लिए प्लान B भी बनाया था

BHOPAL. भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी की आज (21 मई) 32वीं पुण्यतिथि है। 1991 में तमिलनाडु में श्रीपेरंबुदूर में आत्मघाती हमले में उनकी हत्या कर दी गई थी। श्रीलंका के आतंकी संगठन लिट्टे (LTTE) ने हत्या की जिम्मेदारी ली थी। आइए जानते हैं राजीव गांधी के बारे में और श्रीपेरंबुदूर में क्या हुआ था...





मुंबई में हुआ था जन्म





राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 को बंबई (अब मुंबई) में हुआ था। उनकी मां इंदिरा गांधी और पिता का नाम फिरोज गांधी थे। उनके दादा पं. जवाहरलाल नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे। उनके पिता भी सांसद थे। राजीव गांधी का बचपन अपने दादा के साथ नई दिल्ली के तीन मूर्ति भवन मे बीता। शुरुआत में उन्हें पढ़ने के लिए देहरादून के वेल्हम स्कूल भेजा गया, लेकिन जल्द ही यहां से उन्हें दून स्कूल में भेज दिया गया। उनके छोटे भाई संजय गांधी को भी इसी स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा गया।





स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद राजीव गांधी लंदन के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज गए, लेकिन यहां उनका मन नहीं लगा। इसके बाद वे इंपीरियल कालेज गए, जहां से उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। कैंब्रिज के दौरान ही उनकी मुलाकात इटली की रहने वाली सोनिया माइनो से हुई थी, जो वहां अंग्रेजी की पढ़ाई कर रही थीं। राजीव और सोनिया ने 1968 में नई दिल्ली में शादी कर ली।





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म्यूजिक में इंटरेस्ट था





राजीव की राजनीति में कोई रुचि नहीं थी। उन्हें शास्त्रीय और मॉडर्न संगीत दोनों पसंद था। इसके अलावा फोटोग्राफी, रेडियो सुनने और विमान उड़ाने का भी उन्हें शौक था। उन्होंने दिल्ली फ्लाइंग क्लब की प्रवेश परीक्षा पास कर कमर्शियल पायलट का लाइसेंस मिल गया, जिसके बाद वे इंडियन एयरलाइंस के पायलट बन गए। 





ऐसे हुई राजनीति में एंट्री





1980 में एक प्लेन क्रैश में अपने भाई संजय की मौत के बाद राजीव ने ना चाहते हुए भी राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने भाई की सीट अमेठी पर हुए संसदीय उपचुनाव में जीत हासिल की और सांसद बने। 31 अक्टूबर 1984 को अपनी मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वे कांग्रेस अध्यक्ष और फिर देश के प्रधानमंत्री बने। राजीव गांधी को भारत में सूचना क्रांति का जनक माना जाता है। वे ही देश में कम्प्यूटराइजेशन और टेलीकम्युनिकेशन क्रांति लाए। महिलाओं को 33% आरक्षण दिलवाने का काम भी उन्होंने ही किया।





ऐसे रची गई राजीव की हत्या की साजिश...





देश में लोकसभा चुनाव की तैयारियां चल रही थीं। 12 मई 1991 को तमिलनाडु के मद्रास (अभी चेन्नई) में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की रैली होनी थी। इस रैली में शिवरासन भी मौजूद था। शिवरासन जनवरी 1991 में ही श्रीलंका से चेन्नई लौटा था। उस रैली में शिवरासन अपने साथ धनु, शुभा और नलिनी को भी लेकर गया। मकसद था कि वो पूर्व प्रधानमंत्री के सुरक्षा घेरे में जाकर उन्हें माला पहनाने का अभ्यास कर सकें। वीपी सिंह के मंच में आने से पहले धनु और शुभा ने उन्हें माला पहनाई। ये प्रैक्टिस राजीव गांधी की हत्या करने के लिए की गई थी।





7 दिन बाद 19 मई को अखबारों में राजीव गांधी का चुनावी कार्यक्रम छपा। इसी से शिवरासन को पता चला कि 21 मई को राजीव गांधी श्रीपेरंबुदूर आ रहे हैं। शिवरासन ने शुभा और धनु को अपने आखिरी मकसद के लिए तैयार रहने को कहा। 21 मई की सुबह-सुबह धनु ने अपने शरीर पर एक्सप्लोसिव्स लगा लिए। इसके बाद शिवरासन अपने साथ धनु और शुभा को ऑटो से लेकर नलिनी के घर पहुंचा। थोड़ी देर में सभी श्रीपेरंबुदूर की रैली वाली जगह पर पहुंच गए। राजीव गांधी अभी पहुंचने ही वाले थे। कुछ देर में राजीव गांधी भी वहां पहुंच गए। तभी धनु ने शिवरासन और शुभा को वहां से हट जाने को कहा। माला पहनाने के बहाने धनु राजीव गांधी के पास पहुंची और जोर का धमाका हुआ। कुछ देर बाद जब धुआं छंटा तो चारों ओर लाशें, खून, चीख और आंसू थे। इस धमाके में राजीव गांधी समेत कुल 18 लोगों की मौत हो गई थी। धनु के साथ ही इस साजिश में शामिल हरि बाबू की भी मौत हो गई। हरि बाबू पत्रकार के रूप में मौजूद था और उसका काम था सारे घटनाक्रम की फोटो लेना। इस पूरे हत्याकांड का मास्टरमाइंड था शिवरासन था।  





लोटो के जूते से पहचाने गए थे राजीव





बाद में तमिलनाडु के कांग्रेस नेता जीके मूपनार ने लिखा था, "जैसे ही धमाका हुआ लोग दौड़ने लगे। मेरे सामने क्षत-विक्षत शव पड़े हुए थे। राजीव के सुरक्षा अधिकारी प्रदीप गुप्ता जिंदा थे। उन्होंने मेरी तरफ देखा। कुछ बुदबुदाए और मेरे सामने ही दम तोड़ दिया मानो वो राजीव गांधी को किसी के हवाले कर जाना चाह रहे हों। मैंने उनका सिर उठाना चाहा, लेकिन मेरे हाथ में सिर्फ मांस के लोथड़े और खून ही आया। मैंने तौलिए से उन्हें ढंक दिया।"





मूपनार से थोड़ी ही दूरी पर जयंती नटराजन खड़ी थीं। बाद में उन्होंने भी एक इंटरव्यू में बताया, "सारे पुलिस वाले मौके से भाग खड़े हुए। मैं शवों को देख रही थी, इस उम्मीद के साथ कि मुझे राजीव ना दिखाई दें। पहले मेरी नजर प्रदीप गुप्ता पर पड़ी। उनके घुटने के पास जमीन की तरफ मुंह किए हुए एक सिर पड़ा हुआ था। मेरे मुंह से निकला ओह माई गॉड। दिस लुक्स लाइक राजीव।" वहीं खड़ी नीना गोपाल आगे बढ़ती चली गईं, जहां कुछ मिनटों पहले राजीव खड़े हुए थे।





नीना ने बताया था, "मैं जितना भी आगे जा सकती थी, गई। तभी मुझे राजीव गांधी का शरीर दिखाई दिया। मैंने उनका लोटो जूता देखा और हाथ देखा जिस पर गुच्ची की घड़ी बंधी हुई थी। थोड़ी देर पहले मैं कार की पिछली सीट पर बैठकर उनका इंटरव्यू कर रही थी। राजीव आगे की सीट पर बैठे हुए थे और उनकी कलाई में बंधी घड़ी बार-बार मेरी आंखों के सामने आ रही थी।"







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दिल्ली में राजीव गांधी के अंतिम संस्कार में सोनिया और प्रियंका गांधी।







श्रीलंका से ऐसे शुरू हुई कहानी





इस पूरी कहानी की शुरुआत श्रीलंका की आजादी से शुरू होती है। श्रीलंका में बहुसंख्यक आबादी बौद्ध धर्म को मानने वाले सिंहली लोगों की थी। यहां बड़ी संख्या में तमिल भी थे, लेकिन वो लगातार उपेक्षा का शिकार थे। 1972 में श्रीलंका का संविधान बना। इसमें बौद्ध को देश का प्राथमिक धर्म घोषित कर दिया। बहुसंख्यक होने के बावजूद बौद्ध धर्म के सिंहली लोगों को हर जगह वरीयता और आरक्षण दिया जाने लगा। तमिल हाशिए पर चले गए। नतीजा ये हुआ कि तमिलों ने हथियार उठा लिए। तमिल युवा वेलुपिल्लई प्रभाकरण ने एक संगठन बनाया, जिसका नाम- लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी लिट्टे रखा। 80 का दशक आते-आते लिट्टे की पहचान एक आतंकी संगठन के तौर पर होने लगी। 





23 जुलाई 1983 को को लिट्टे ने श्रीलंकाई सेना के 13 जवानों की हत्या कर दी। इसके बाद देश में गृहयुद्ध छिड़ गया। ये लड़ाई सिंहली और तमिलों के बीच हुई। श्रीलंकाई सरकार भी इसमें उतर गई। 1987 में भारत और श्रीलंका सरकार के बीच एक शांति समझौता हुआ। इसमें तय हुआ कि भारत लिट्टे से हथियार रखवा देगा। समझौते वाले दिन ही भारत ने अपनी सेना (इंडियन पीस कीपिंग फोर्स यानी IPKF) श्रीलंका भेज दी। भारतीय सेना ने श्रीलंका के पलाली में जाफना के पास अपना बेस बनाया। लिट्टे भी हथियार डालने के लिए राजी हो गया। लिट्टे के कई आतंकी सरेंडर करने लगे। तभी अक्टूबर में श्रीलंकाई सेना ने लिट्टे के दो कमांडरों को पकड़ लिया। 





IPKF लिट्टे के उन कमांडरों को श्रीलंका सरकार को सौंपने को राजी हो गया। उसके बाद उन कमांडरों ने साइनाइड खाकर अपनी जान दे दी। इससे लिट्टे और IPKF के रिश्ते बिगड़ गए। 13 अक्टूबर 1987 को IPKF ने 'ऑपरेशन पवन' चलाया। इस ऑपरेशन में भारतीय सेना के कई जवान शहीद हो गए। भारतीय सेना श्रीलंका में तीन साल तक रही। 24 मार्च 1990 को IPKF का आखिरी बेड़ा श्रीलंका से लौट आया। माना जाता है कि श्रीलंका में भारतीय सेना का ये ऑपरेशन ही राजीव गांधी की हत्या का कारण बना। लिट्टे के आतंकियों का मकसद बदला लेना था।







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लिट्टे सरगना वेलुपिल्लई प्रभाकरण। दाईं तरफ- मरने के बाद ये फोटो सामने आई थी।







प्रभाकरण की भारत सरकार से बातचीत विफल





श्रीलंका में जब गृह युद्ध चल रहा था, तभी बीच में लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण को दिल्ली बुलाया गया। उसने राजीव गांधी से मुलाकात की। ये मुलाकात अच्छी नहीं रही। तभी प्रभाकरण ने सोच लिया कि इसका बदला लिया जाएगा। 1989 में राजीव गांधी की सरकार गिर गई। बाद में राजनीतिक अस्थिरता बनी रही। इसी बीच अगस्त 1990 में राजीव गांधी ने एक इंटरव्यू में श्रीलंका के साथ हुए शांति समझौते का समर्थन किया। उन्होंने अखंड श्रीलंका की बात कही। इससे लिट्टे का अलग ईलम का सपना टूट गया। 





लिट्टे को डर था कि राजीव गांधी का प्रधानमंत्री बनना उसके लिए घातक हो सकता है। लिहाजा लिट्टे ने उनकी हत्या की साजिश रची। इस साजिश के मुख्य पात्र थे- लिट्टे का मुखिया वेलुपिल्लई प्रभाकरण, लिट्टे की खुफिया इकाई का मुखिया पोट्टू अम्मन, महिला इकाई की मुखिया अकीला और शिवरासन। राजीव गांधी की हत्या का मास्टरमाइंड शिवरासन ही था। राजीव गांधी के इंटरव्यू के कुछ महीनों बाद लिट्टे के आतंकी अलग-अलग टुकड़ियों में शरणार्थी के तौर पर भारत आने लगे थे।





लिट्टे का प्लान-बी 





लिट्टे ने मानव बम के लिए तीन महिलाओं को तैयार किया। पहली धनु थी, दूसरी थी शुभा और तीसरी अतिरई थी। प्लान था कि अगर धनु नाकाम हुई तो शुभा इसे अंजाम देगी और अगर शुभा भी नाकाम हुई तो अतिरई दिल्ली में इस वारदात को अंजाम देगी। अतिरई दिल्ली के मोतीबाग इलाके में सोनिया के नाम से रह रही थी। अतिरई दिल्ली में कहां रहेगी, इसका काम शिवरासन ने श्रीलंका सरकार के रिटायर्ड अफसर कनगासाबापति को लगाया। कनगासाबापति ने मोतीबाग के मकान नंबर ए-233 को किराये पर लिया। ये घर राजीव गांधी के घर 10, जनपथ से 8 किमी दूर था। 





26 आरोपी पकड़े गए





राजीव गांधी की हत्या के तीन दिन बाद ही इसकी जांच सीबीआई को सौंपी गई। इसके बाद गिरफ्तारियां शुरू हो गईं। एक महीने के भीतर ही नलिनी और मुरुगन पकड़ लिए गए। शिवरासन और शुभा समेत कई आरोपियों ने गिरफ्तारी से पहले ही आत्महत्या कर ली। मामले में कुल 41 लोगों को आरोपी बनाया गया। 12 लोगों की मौत हो चुकी थी और तीन फरार थे। बाकी 26 पकड़े गए थे, जिसमें श्रीलंकाई और भारतीय नागरिक थे। 28 जनवरी 1998 को टाडा कोर्ट ने हजार पन्नों का फैसला सुनाया। इसमें सभी 26 आरोपियों को मौत की सजा सुनाई गई। इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। 





सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने इस पूरे फैसले को ही पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 26 में से 19 दोषियों को रिहा कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इन्होंने जो अपराध किया था, उसकी सजा वो जेल में काट चुके हैं। इस मामले में बाकी 7 दोषी- नलिनी श्रीहरन, मुरुगन, संतन, एजी पेरारिवलन, जयकुमार, रॉबर्ट पयास और पी. रविचंद्रन बचे थे। इन सात दोषियों में तीन की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। बाकी चार दोषियों- नलिनी, मुरुगन, संतन और एजी पेरारिवलन की फांसी की सजा को बरकरार रखा गया। 2000 में नलिनी की फांसी की सजा भी माफ कर दी गई।







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राजीव गांधी की हत्या के सातों दोषी।







पहले फांसी हुई, फिर उम्रकैद में बदली





फांसी की सजा को बदलने के लिए तीनों दोषियों ने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका लगाई, जो खारिज हो गई। तीनों की फांसी की सजा तारीख 9 सितंबर 2011 तय हुई। इसके बाद मद्रास हाईकोर्ट ने तीनों दोषियों की फांसी की सजा पर रोक लगा दी। मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में चला गया। फरवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अब तीनों को फांसी देना सही नहीं है, क्योंकि तीनों की दया याचिका 11 साल तक लंबित रही। आखिरकार तीनों की फांसी की सजा को भी उम्रकैद में बदल दिया गया। 





सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले ही दिन तमिलनाडु सरकार ने सभी सातों दोषियों को रिहा करने का आदेश दिया। इससे ये मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट चला गया। सुप्रीम कोर्ट ने रिहा करने के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि जिस मामले की जांच केंद्रीय एजेंसियों से जुड़ी हों और जिन्हें केंद्रीय कानून के तहत सजा मिली हो, उनकी सजा माफी पर फैसला केंद्र सरकार ही कर सकती है। राजीव गांधी की हत्या की 31वीं बरसी (21 मई 2022) से 3 दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया। पेरारिवलन रिहा होकर घर जा चुका है। बाकी 6 दोषी अब भी जेल में सजा काट रहे हैं।



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