भारत में रामायण गाथा और श्रीराम को काल्पनिक बताने वाले नेताओं और सियासी दल अक्सर सवाल उठाए जाते रहे हैं। कभी कांग्रेस हाईकमान के साथ-साथ कई नेता भी रामायण को काल्पनिक बताते रहे हैं। यहां तक कि रामसेतु को काल्पनिक मानकर तुड़वाने की साल 2005 में तैयारी कर ली गई थी। कांग्रेस की इस बात को भगवान राम पर अपार विश्वास रखने वाले उनके भक्त और हिंदू संगठन कई बार नकार चुके हैं।
भगवान राम के भक्तों को अब समर्थन मिला है पड़ोसी देश चीन ( ड्रैगन ) का। अब बीजिंग (Beijing ) ने भी मान लिया है कि भगवान श्रीराम और उनकी रामायण (Ramayana ) गाथा काल्पनिक नहीं है। चीन ने प्रभु श्रीराम के पद चिह्न खोजने का दावा किया है। इससे पहले नासा समेत कई अन्य रिपोर्ट में श्रीराम सेतु समेत अन्य प्रमाणों के जरिए भगवान श्रीराम के अस्तित्व को प्रमाणित किया जा चुका है। चीन से पहले अमेरिका की एजेंसी नासा ने भी श्रीराम के धरती में अवतरण होने का दावा किया था।
चीन ने किया श्रीराम पद खोजने का दावा
चीनी विद्वानों ने कहा है कि चीन के पास सदियों से बौद्ध धर्मग्रंथों में छिपी रामायण की कहानियों के पदचिह्न हैं। जो शायद पहली बार देश के उतार-चढ़ाव वाले इतिहास में हिंदू धर्म के प्रभाव को सामने ला रहे हैं। चीनी स्कॉलरों ने अपने शोध के दौरान भगवान श्रीराम के पदचिह्नों की खोज करने का प्रमाणिक दावा किया है। कला और साहित्य सिंघुआ विश्वविद्यालय (Tsinghua University ) के इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड एरिया स्टडीज के प्रोफेसर ने कहा, इस खोज के साथ धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दुनिया को आपस में जोड़ने वाली रामायण का प्रभाव सांस्कृतिक प्रसारण के कारण और भी अधिक बढ़ गया है।
चीन में राम के पदचिन्ह
चीन में राम के पदचिन्ह विषय पर बोलते हुए सिचुआन विश्वविद्यालय (Sichuan University ) के चीन दक्षिण के उप निदेशक प्रोफेसर किउ योंगहुई (Qiu yonghui ) ने संग्रहालय क्वानझोउ (Museum Quanzhou ) में विभिन्न हिंदू देवताओं की एक विस्तार से तस्वीरें प्रदर्शित की। चीन के फुजियान प्रांत (Fujian Province ) में उन्होंने एक हिंदू पुजारी द्वारा प्रबंधित बौद्ध मंदिर (Buddhist temple ) की तस्वीर भी दिखाई। यह मुख्य रूप से बौद्ध धर्म के माध्यम से था कि भारतीय संस्कृति ने चीन में अपना गढ़ बनाया। उन्होंने कहा, बहुआयामी भारतीय संस्कृति चीनी धरती पर अपनी छाप छोड़ती नजर आ रही।
तिब्बत में रामायण के प्रभाव
चीन का कहना है कि तिब्बत में रामायण (Ramayana in Tibet ) के प्रभाव का अधिक व्यापक और पुराना इतिहास है। जहां इसे पहली बार तुबो साम्राज्य ( Tubo Empire ) की अवधि के दौरान पेश किया गया था। साहित्यिक कृतियों और नाट्य प्रदर्शनों के माध्यम से, रामायण ना केवल तिब्बती विद्वानों के बीच गहन अध्ययन का विषय बन गया है, बल्कि तिब्बत में आम लोगों के बीच भी व्यापक लोकप्रियता हासिल की है।
रामसेतु को लेकर शुरू हुआ विवाद
भारत में रामसेतु को लेकर असली विवाद 2005 में शुरू हुआ। तत्कालीन मनमोहन सरकार ने सेतुसमुद्रम शिपिंग नहर परियोजना ( Sethusamudram Shipping Canal Project ) को हरी झंडी दे दी थी। इस परियोजना के तहत इस सेतु को तोड़कर एक मार्ग तैयार करना था । हालांकि, हिंदू संगठनों ने इसका विरोध किया और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया।
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