RBI ने पहली बार जारी की विलफुल डिफॉल्टर से समझौते की गाइडलाइन, जानिए लोन चुकाने में चूक के मामलों में बैंकों को क्या दिए निर्देश

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Sunil Shukla
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RBI ने पहली बार जारी की विलफुल डिफॉल्टर से समझौते की गाइडलाइन, जानिए लोन चुकाने में चूक के मामलों में बैंकों को क्या दिए निर्देश

MUMBAI. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए कर्जदारों को विलफुल डिफॉल्टर (जानबूझकर लोन न चुकाने वाले) या धोखेबाज (फ्रॉड) घोषित करने की प्रक्रिया में बैंकों को बेहद सजग और सतर्क बनाने के लिए ऐसे मामलों के समाधान  की जिम्मेदारी बैंकों के संचालक मंडल (बीओडी) को दी है। इस बारे में अपनी नई गाइडलाइन के तहत, आरबीआई ने ऐसे मामलों में समझौते के निबटारे की जिम्मेदारी बैंकों परिचालन कार्यालय (operating office) से लेकर पर्यवेक्षण कार्यालय (supervising office) को सौंपी है।



समझौते के लिए हर बैंक को पॉलिसी बनाने के निर्देश



आरबीई ने पिछले हफ्ते जारी किए गए मौद्रिक नीति वक्तव्य (monetary policy statement) के साथ समझौता निबटारे और तकनीकी राइट ऑफ के नए मापदंड जारी करते हुए बैंकों के बोर्ड को इन मामलों के समाधान की गति बढ़ाने और ज्यादा जिम्मेदारी लेने के लिए निर्देशित किया है। नए दिशा-निर्देशों में आरबीआई ने कर्ज देने वाले सभी बैंकों को कहा है कि उनके पास समझौता निबटारे और तकनीकी राइट ऑफ के लिए निदेशक मंडल से अनुमोदित नीतियां होनी चाहिए जो इसके लिए जरूरी प्रक्रिया को रेखांकित करती हो।



पॉलिसी में ये शर्तें शामिल करें बैंक



आरबीआई ने स्पष्ट किया है कि बैंकों के बोर्ड से मंजूर नीति में कर्ज की न्यूनतम अवधि बढ़ाने कोलेटरल वैल्यू में कमी जैसी विशिष्ट शर्तें भी शामिल होनी चाहिए। इसके अलावा नीति में ऐसे मामलों के लिए कर्मचारियों की जवाबदेही का आकलन करने का फ्रेमवर्क भी जरूर होना चाहिए जिसमें बोर्ड द्वारा परिभाषित समय सीमा निर्धारित की गई हो। ऐसी नीतियों में ये भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि समझौते के मामलों के निबटारे की मंजूरी देने के लिए जिम्मेदार व्यक्तिय या समितियां, क्रेडिट या जोखिम निवेश को मंजूरी देने वालों की तुलना में  ज्यादा अधिकार रखती हों।



बैंक के बोर्ड की मंजूरी जरूरी होगी



नई गाइडलाइन के मुताबिक विनियमित संस्थाएं जानबूझकर चूककर्ताओं या धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत खातों के संबंध में ऐसे देनदारों के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्रवाई के संबंध में समझौता निबटारे या तकनीकी बट्टे खाते में डाल सकती हैं। धोखाधड़ी या इरादतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत देनदारों के संबंध में समझौता निबटारे के प्रस्ताव के सभी मामलों में बैंक को बोर्ड की मंजूरी जरूरी होगी।



पहले ये थी आरबीआई की पॉलिसी



उल्लेखनीय है कि आरबीआई ने पहली बार विलफुल डिफॉल्टर्स के साथ समझौता करने के लिए समझौता मानदंड जारी किए हैं। पहले ऐसे मामलों में भारतीय रिजर्व बैंक के मानदंडों में ये सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था कि समझौता राशि कर्ज की सुरक्षा (value of the security) के शुद्ध वर्तमान मूल्य से कम न हो। इसके अलावा बैंकों को इरादतन चूककर्ताओं के ऋण पुनर्गठन (restructuring loans) से भी रोक दिया गया था। ये नियम जारी है और बैंक विलफुल डिफॉल्टर्स को नया लोन (फ्रेश क्रेडिट) नहीं दे सकते।



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RBI गवर्नर ने किया बैंकों की अनियमितताओं का उल्लेख



दरअसल, एक समझौता निबटारे का मामला बैंक और उधारकर्ता (borrower) के बीच एक बातचीत की व्यवस्था को संदर्भित करता है, जिसमें बैंक कम राशि को स्वीकार करके आंशिक रूप से उधारकर्ता के कर्ज को निबटाने के लिए सहमत होता है। दूसरी ओर तकनीकी राइट-ऑफ के मामले में बैंक के कर्ज की वसूली के अधिकार को छोड़े बिना लेखांकन उद्देश्यों (accounting purposes) के लिए बैंक की किताब से गैर-निष्पादित संपत्तियों (non-performing assets) को हटाना शामिल होता है। गौरतलब है कि आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस महीने की शुरुआत में बैंक निदेशकों के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए संबंधित अनियमितताओं पर प्रकाश डाला था कि बैंक कैसे खराब ऋणों (bad loans) से कैसे निपट रहे हैं।


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