CAA में किसे मिलेगी नागरिकता, मुस्लिम CAA में क्यों शामिल नहीं, जानिए वजह

देश में CAA यानी नागरिकता कानून में संशोधन लागू हो गया है। इसको लेकर कई तरह के सवाल मन में उठ रहे होंगे, द सूत्र पर आपके हर सवाल का जवाब पढ़िए...

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Marut raj
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CAA से जुड़े सभी सवालों के जवाब 

भोपाल. नागरिकता कानून में संशोधन का बिल दिसंबर 2019 में ही संसद के दोनों सदनों से पास हो गया था। जनवरी 2020 में राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी भी दे दी थी, लेकिन इसके नियम नहीं बन पाने के कारण इसे अमल में लाने में देरी हो रही थी।

गृह मंत्रालय ने 9 बार एक्सटेंशन मांगा था

आमतौर पर कोई भी कानून बनने के बाद 6 महीने के भीतर उसके नियम बनाने होते हैं। अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो उसके लिए संसद से समय मांगना पड़ता है। सीएए के मामले में ऐसा ही हुआ। गृह मंत्रालय ने 9 बार एक्सटेंशन मांगा था।

चूंकि, अब तक इस कानून के नियम नहीं बने थे और नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ था, इसलिए इन कानून के जरिए जिन लोगों को नागरिकता मिलनी है, वो आवेदन नहीं कर सकते थे। मगर अब नागरिकता के लिए आवेदन किया जा सकता है।

नागरिकता के लिए कौन आवेदन कर सकेगा?

नागरिकता संशोधन बिल पहली बार 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था। यहां से तो ये पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में अटक गया। बाद में इसे संसदीय समिति के पास भेजा गया और फिर चुनाव आ गए।

दोबारा चुनाव के बाद नई सरकार बनी, इसलिए दिसंबर 2019 में इसे लोकसभा में फिर पेश किया गया। इस बार ये बिल लोकसभा और राज्यसभा, दोनों जगह से पास हो गया। राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद 10 जनवरी 2020 से ये कानून बन गया था।

नागरिकता संशोधन कानून के जरिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी धर्म से जुड़े शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगा. कानून के मुताबिक, जो लोग 31 दिसंबर 2014 से पहले आकर भारत में बस गए थे, उन्हें ही नागरिकता दी जाएगी.

मुस्लिमों को क्यों नहीं मिलेगी नागरिकता इस कानून के तहत

नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की सबसे बड़ी वजह यही है। विरोध करने वाले इस कानून को एंटी-मुस्लिम बताते हैं। उनका कहना है कि जब नागरिकता देनी है तो उसे धर्म के आधार पर क्यों दिया जा रहा है? इसमें मुस्लिमों को शामिल क्यों नहीं किया जा रहा?

इस पर सरकार का तर्क है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान इस्लामिक देश हैं और यहां पर गैर-मुस्लिमों को धर्म के आधार पर सताया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है। इसी कारण गैर-मुस्लिम यहां से भागकर भारत आए हैं। इसलिए गैर-मुस्लिमों को ही इसमें शामिल किया गया है।

कानूनन भारत की नागरिकता के लिए कम से कम 11 साल तक देश में रहना जरूरी है, लेकिन, नागरिकता संशोधन कानून में इन तीन देशों के गैर-मुस्लिमों को 11 साल की बजाय 6 साल रहने पर ही नागरिकता दे दी जाएगी। बाकी दूसरे देशों के लोगों को 11 साल का वक्त भारत में गुजारना होगा, भले ही फिर वो किसी भी धर्म के हों।

कितने लोगों को मिलेगी नागरिकता, जानिए

नागरिकता संशोधन कानून लागू होते ही 31 हजार 313 लोग इस कानून के जरिए नागरिकता हासिल करने के योग्य होंगे। 

जनवरी 2019 में संयुक्त संसदीय समिति ने इस बिल पर अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इस समिति के अध्यक्ष बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल थे। इस समिति में आईबी और रॉ के अधिकारियों को भी शामिल किया गया था।

समिति की रिपोर्ट में बताया गया था कि 31 दिसंबर 2014 तक भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर-मुस्लिमों की संख्या 31 हजार 313 थी। कानून लागू होने के तुरंत बाद इन्हें नागरिकता मिल जाएगी।

किस धर्म के कितने लोग

इन लोगों में सबसे ज्यादा 25 हजार 447 लोग हिंदू और 5 हजार 807 सिख थे। इनके अलावा 55 ईसाई, बौद्ध और पारसी धर्म के 2-2 लोग थे। ये वो लोग थे जो धार्मिक प्रताड़ना के चलते देश छोड़कर भारत आकर बसे थे।

कैसे मिलेगी नागरिकता

सरकार ने पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन बनाया है। इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार किया गया है। आवेदक अपने मोबाइल फोन से भी एप्लाई कर सकता है। आवेदकों को वह साल बताना होगा, जब उन्होंने दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था। 

आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा। नागरिकता से जुड़े जितने भी ऐसे मामले पेंडिंग हैं वे सब ऑनलाइन कन्वर्ट किए जाएंगे। पात्र विस्थापितों को सिर्फ पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। उसके बाद गृह मंत्रालय जांच करेगा और नागरिकता जारी कर देगा।

क्या किसी की नागरिकता भी छीनेगी?

नहीं। सीएए किसी भी भारतीय की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है। गृहमंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि सीएए में किसी भारतीय की नागरिकता छीनने का प्रावधान नहीं है। इसके तहत, 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम छह समुदायों को नागरिकता देने का प्रावधान है।

नॉर्थ-ईस्ट में ये है डर

सीएए का भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में लंबे वक्त से विरोध होता रहा है। इसकी वजह ये है कि वहां के स्थानीय लोगों को अपनी पहचान खोने का डर है।

दरअसल, पूर्वोत्तर राज्यों की बड़ी आबादी अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासियों की है। इनकी अपनी संस्कृति और परंपराएं हैं। संविधान से भी इन्हें कुछ छूट मिली हुई हैं। इन राज्यों में बांग्लादेश से बड़ी संख्या में हिंदू शरणार्थी आकर बस गए हैं।

मेघालय में गारो और जैंतिया जैसी ट्राइब्स मूल निवासी हैं। इसी तरह त्रिपुरा में बोरोक समुदाय मूल निवासी हैं। अब इन्हें डर है कि सीएए आने के बाद शरणार्थियों को नागरिकता मिल जाएगी, जिससे उनके संसाधनों पर इनका कब्जा हो जाएगा।

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