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हाल ही में, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने 75 साल की उम्र में रिटायरमेंट के मुद्दे पर बयान देकर इस बहस को फिर से जन्म दिया। यह बयान खासतौर पर इसलिए चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भागवत दोनों इस साल सितंबर में 75 साल के होने जा रहे हैं।
नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान भागवत ने कहा कि जब कोई व्यक्ति 75 साल का हो जाता है और उसे बधाई दी जाती है, तो इसका मतलब यह होता है कि अब उसे रुक जाना चाहिए और दूसरों को काम करने देना चाहिए।
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क्या यह बयान प्रधानमंत्री मोदी के लिए था?
शिवसेना (उद्धव बालासाहब ठाकरे) के नेता संजय राउत ने मोहन भागवत के इस बयान को प्रधानमंत्री मोदी को लेकर देखा। राउत ने कहा कि संघ प्रमुख का इशारा प्रधानमंत्री मोदी की ओर था, जो अब तक 75 साल के होने वाले हैं।
राउत ने यह भी उल्लेख किया कि मोदी ने अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं जैसे लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और जसवंत सिंह को 75 साल की उम्र के बाद रिटायर कर दिया था। उन्होंने यह सवाल उठाया कि क्या मोदी खुद इस नियम का पालन करेंगे।
इससे पहले, राउत ने मार्च में पीएम मोदी के रिटायरमेंट को लेकर बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि मोदी RSS के नागपुर मुख्यालय में अपने रिटायरमेंट का ऐलान करने के लिए गए थे।
बीजेपी का रुख क्या है?
इसके बावजूद, भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं ने यह स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री मोदी 75 साल के बाद भी राजनीति से रिटायर नहीं होंगे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मई 2024 में कहा था कि भाजपा के संविधान में इस उम्र के बाद सेवानिवृत्ति का कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि मोदी 2029 तक देश का नेतृत्व करेंगे और अगले चुनावों में भी भाजपा का नेतृत्व करेंगे। शाह का यह बयान विपक्षी नेताओं द्वारा मोदी के भविष्य पर उठाए गए सवालों का जवाब था।
क्या है 75 साल की उम्र में रिटायरमेंट वाला मामला?
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75 साल की उम्र के बाद ये बड़े नेता रिटायर किए गए
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में 75 साल की उम्र में नेताओं के रिटायर होने की एक अघोषित परंपरा रही है, जिसे 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद शुरू किया गया था। इस नीति के तहत कई वरिष्ठ नेताओं को सक्रिय राजनीति या महत्वपूर्ण पदों से हटाया गया या उन्हें चुनाव लड़ने का टिकट नहीं दिया गया। इनमें कुछ प्रमुख बीजेपी नेता हैं, जिन्हें 75 साल की उम्र के बाद रिटायर किया गया या किनारे किया गया:
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- बीजेपी में यह 75 साल की उम्र की नीति मुख्य रूप से लोकसभा और विधानसभा चुनावों में टिकट वितरण और कैबिनेट में शामिल करने के लिए लागू की गई थी।
- हालांकि, कुछ अपवाद भी देखे गए हैं। उदाहरण के लिए, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 2024 में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर यह नियम लागू नहीं होगा और वह 2029 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का नेतृत्व करेंगे।
- हाल ही में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के 75 साल की उम्र में रिटायरमेंट की टिप्पणी ने इस नीति को फिर से चर्चा में ला दिया है, खासकर क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी और भागवत दोनों सितंबर 2025 में 75 साल के हो जाएंगे।
क्या राजनीति से रिटायरमेंट की कोई उम्र होती है?
राजनीति से संन्यास लेने की कोई निर्धारित उम्र नहीं होती है। यह पूरी तरह से व्यक्ति या पार्टी पर निर्भर करता है कि वे कब और क्यों रिटायरमेंट का निर्णय लेते हैं। अधिकांश देशों में राजनेताओं के लिए कोई उम्र सीमा नहीं होती। वे तब तक चुनावी प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं, जब तक उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य इसे समर्थन करता हो।
भारत में, 75 साल से अधिक उम्र के कई नेता आज भी सक्रिय राजनीति में हैं और महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं। इनमें 83 साल के शरद पवार (NCP अध्यक्ष), 82 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे (कांग्रेस अध्यक्ष), 91 साल के एचडी देवगौड़ा (JD(S) अध्यक्ष और सांसद), 86 साल के फारूक अब्दुल्ला, 77 साल की सोनिया गांधी और 79 साल के अवधेश प्रसाद (अयोध्या से सांसद) जैसे नेता शामिल हैं।
राजनीति से रिटायरमेंट को लेकर भारतीय संविधान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 84 में संसद सदस्य बनने के लिए आवश्यक योग्यताओं का उल्लेख किया गया है। लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार की न्यूनतम उम्र 25 साल और राज्यसभा का चुनाव लड़ने के लिए कम से कम 30 साल होना चाहिए। भारतीय संविधान में राजनीति से संन्यास लेने की कोई निर्धारित उम्र सीमा नहीं है।
सांसद, विधायक, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत लोगों के लिए कोई अधिकतम रिटायरमेंट आयु सीमा नहीं है। उनके कार्यकाल के समाप्त होने के बाद उनका पद स्वतः समाप्त हो जाता है, लेकिन यदि वे चुनाव जीतते हैं, तो पुनः उसी पद पर आ सकते हैं।
संविधान में इस बात का भी कोई प्रावधान नहीं है कि कोई व्यक्ति कितनी बार इन पदों पर आ सकता है। इसका मतलब यह है कि कोई भी व्यक्ति चुनाव जीतकर एक ही या विभिन्न राजनीतिक पदों पर बार-बार रह सकता है।
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