RSS : थ्री लेयर ट्रेनिंग सेंटर में ऐसे तैयार होते हैं संगठनात्मक कौशल वाले मोटिवेटेड कार्यकर्ता

विश्व का सबसे बड़ा गैर सरकारी संगठन आरएसएस अपने कार्यकर्ताओं यानी स्वयंसेवकों के लिए तीन तरह के ट्रेनिंग कैंप आयोजित करता है। इस पूरे ट्रेनिंग सिस्टम की अंदर की कहनी 'द सूत्र' आपको पहली बार विस्तार से बता रहा है।

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Marut raj
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RSS organizes three types of training camps to train its workers द सूत्र the sootr
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RSS Training Camp

हरीश दिवेकर, भोपाल. विश्व की सबसे पार्टी का तमगा हासिल करने वाली बीजेपी की बैक बोन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( RSS  / आरएसएस ) है। ये तो सब जानते हैं, लेकिन आरएसएस ऐसा कौन सी ट्रेनिंग देता है, जिससे यहां का हर कार्यकर्ता संगठनात्मक कौशल के साथ साथ राष्ट्रवाद के लिए फूल मोटिवेटेड होता है। आइए हम आपको बताते हैं कि आरएसएस किस तरह से थ्री लेयर ( त्रिस्तरीय प्रशिक्षण शिविर ) चलाकर युवाओं को देश के लिए समर्पित कार्यकर्ता के तौर पर तैयार करता है। इन ट्रेनिंग सेंटर्स मे युवाओं को सुबह जल्दी उठाकर आत्म अनुशासन में कैसे रहना है, सिखाया जाता है। इन्हें बौद्धिक चर्चाओं में भाग लेने के लिए भी तैयार किया जाता है, जिससे वे विभिन्न वैचारिक मु​ददों पर अपना पक्ष मजबूती के साथ रख सकें। 

1 लाख शाखा का लक्ष्य

आरएसएस अपने संगठन को मजबूत करने के लिए देश में लगातार ट्रेनिंग सेंटर्स बढ़ाता जा रहा है। अभी इनकी 60 हजार से अधिक दैनिक शाखाएं लगती हैं। संघ ने इनकी संख्या 1 लाख करने का टारगेट रखा हुआ है। संघ के स्वयंसेवक तीन दर्जन से अधिक राष्ट्रीय संगठन का संचालन कर रहे हैं। इन शिविर में शामिल होने वाले ट्रे​नी युवाओं से मामूली शुल्क लिया जाता है, जिससे शिविर पर होने वाला खर्च निकल सके। जहां वर्ग, पंथ, जाति कोई मायने नहीं रखता। सभी प्रशिक्षुओं को एक समान माना जाता है। कोई भेदभाव नहीं है। आज यह बहुत सामान्य लग सकता है, लेकिन सभी जातियों के प्रशिक्षकों और प्रशिक्षुओं को एक साथ लाना और उन्हें एक साथ खाना खिलाना और भाइयों की तरह एक साथ रहना एक असाधारण उपलब्धि है।

सुबह 4 बजे से शुरू होता है प्रशिक्षण

वैसे तो संघ कई तरह के ट्रेनिंग सेंटर जिन्हें प्रशिक्षण शिविर कहा जाता है, आयोजित करता है। इन शिविरों को मोटे तौर पर संघ शिक्षा वर्ग ( एसएसवी ) के नाम से जाना जाता है। ये तीन स्तर के होते हैं जो एसएसवी-प्रथम वर्ष, एसएसवी-द्वितीय वर्ष, एसएसवी-तृतीय वर्ष हैं। इन शिविरों की अवधि दो से चार सप्ताह तक होती है। ये शिविर दिन में आम तौर पर सुबह चार बजे शुरू होता है और रात दस बजे समाप्त होते हैं। सुबह और शाम को शरीरिक गतिविधियां कराई जाती हैं। दोपहर और देर शाम के बचे हुए समय में विभिन्न वैचारिक मुद्दों के साथ-साथ वैचारिक ढांचे के संदर्भ में बौद्धिक प्रवचन और चर्चा की जाती है। इसमें संघ के बड़े पदाधिकारी भी शामिल होते हैं। 

इस तरह का दिया जाता है भोजन

ट्रेनिंग सेंटर में सात्विक भोजन कराया जाता है। इसमें मसालों का भी उपयोग नहीं किया जाता। खाना स्वयंसेवक खुद बनाते हैं। इस तरह के शिविर को आवासीय शिविर कहा जाता है। इन शिविरों में परोसा जाने वाला भोजन शाकाहारी है और इसमें कोई मसाला नहीं है। इसे स्वयंसेवकों द्वारा पकाया और परोसा जाता है। शिविर का आरंभ और समापन शल्य चिकित्सा परिशुद्धता के साथ होता है। प्रत्येक गतिविधि पूर्व नियोजित होती है और उसमें आत्म-अनुशासन होता है। ये शिविर आवासीय शिविर हैं और स्वयंसेवक छात्रावासों में सोते हैं।

जिला स्तर पर लगते हैं शिविर

संघ अपने प्रथम और द्वितीय वर्ष के शिविर प्रांतीय और जिला स्तर पर आयोजित करता है, लेकिन तीसरे वर्ष का शिविर आरएसएस मुख्यालय नागपुर में होता है। ये संघ का सबसे महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित शिविर है और पूरे देश से एक कठोर प्रक्रिया के माध्यम से चुने गए स्वयंसेवक ही इसमें भाग लेते हैं। आम तौर पर 16 साल से अधिक उम्र के युवा पहले और दूसरे वर्ष के शिविर में भाग लेते हैं जबकि तीसरे वर्ष के शिविर में आम तौर पर 18 साल से अधिक उम्र के स्वयंसेवक भाग लेते हैं। बड़ी संख्या में स्वयंसेवक, जो तीसरे वर्ष के शिविर में भाग लेते हैं, ज्यादातर 'प्रचारक' (आरएसएस के पूर्णकालिक कार्यकर्ता) बनना चुनते हैं। हालाँकि, तीसरे वर्ष के शिविर को पूरा करने वाला हर कोई ऐसा नहीं करता है।

पहले शिविर की शुरुआत नागपुर से हुई थी 

आरएसएस के पहला प्रशिक्षण शिविर की शुरुआत 1929 में नागपुर से हुई थी। संघ का पहला शिविर 1 मई से 10 जून तक यानि 40 दिनों तक चला था। गर्मी में इस शिविर की शुरुआत हुई थी, इसलिए नागपुर में होने वाले तीसरे वर्ष शिक्षा वर्ग शिविर को 'ग्रीष्मकालीन शिविर' कहा जाने लगा। 1950 के बाद इन शिविरों के लिए 'संघ शिक्षा वर्ग' नाम का प्रयोग किया जाने लगा। समय के साथ संघ शिविरों के लिए प्रशिक्षण पाठ्यक्रम विकसित करता रहता है, जिससे बदलती दुनिया के अनुसार वे अपने कार्यकर्ताओं को तैयार कर सकें। संघ ने शुरुआती वर्षों में मार्च पास्ट और अन्य सैन्य गतिविधियों पर फोकस रखा था। बड़ी संख्या में कमांड अंग्रेजी भाषा में दिए जाते थे।

हेगड़ेवार ने दिया था ओटीसी नाम

नागपुर मुख्यालय ( RSS Headquarters Nagpur ) में तीसरे वर्ष के प्र​शिक्षण शिविर को डॉ. केशव बलिराम हेगड़ेवार ने ऑफिसर ट्रेनिंग सेंटर (ओटीसी) नाम दिया था। डॉ. हेगड़ेवार का मानना था कि ये शिविर आरएसएस कार्यकर्ताओं को तैयार करने का महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित शिविर होता है इसलिए इसे कहा जाना चाहिए। अधिकारी प्रशिक्षण शिविर (ओटीसी) कहा जाना चाहिए। उसके बाद से ओटीसी आरएसएस प्रशिक्षण शिविरों के लिए एक लोकप्रिय शब्द बना हुआ है, हालांकि अब यह आरएसएस शिविर का आधिकारिक नाम नहीं है। गुरुजी, जो आरएसएस के दूसरे प्रमुख थे, ने इन शिविरों का नाम बदलकर संघ शिक्षा वर्ग रख दिया।

शिविर में बंद किए गए मनोरंजन कार्यक्रम

आरएसएस के शिविरों में 1937 तक शनिवार की शाम और रविवार को कुछ मनोरंजन कार्यक्रम होते थे। शाखा के दैनिक कार्यक्रम का पालन करने में भी छूट रहती थी। बाद में संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों के चिंतन में ये बात सामने आई कि शिविरों में तैयार होने वाले आत्म अनुशासन वाला कार्यकर्ता का फोकस इससे बिगड़ रहा है। इसके बाद 1938 में इसे बंद कर दिया गया। शिविरों की समयावधि भी 40 से घटाकर 30 दिन कर दी गई। 1934 तक आरएसएस के शिविर केवल नागपुर में आयोजित किये जाते थे। दूसरे और तीसरे वर्ष के शिविर 1935 में पुणे में शुरू हुए। 1938 में, पहले और दूसरे वर्ष के शिविर भी लाहौर में शुरू हुए।

महात्मा गांधी ने किया था दौरा

संघ के शिविरों में लोगों की रुचि बढ़ते देख खुद महात्मा गांधी 1934 में वर्धा में एक संघ शिक्षा वर्ग का दौरा करने पहुंच गए थे। महात्मा गांधी ने खुद ये बात 16 सितंबर 1947 को दिल्ली में अपने एक भाषण को याद करते हुए कही थी। उन्होंने आरएसएस के कार्यकर्ताओ को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने कई साल पहले आरएसएस शिविर का दौरा किया था, जब संस्थापक डॉ हेडगेवार जीवित थे। मैं आपके अनुशासन, अस्पृश्यता के पूर्ण अभाव और कठोर सादगी से बहुत प्रभावित हुआ। तब से संघ का विकास हुआ है. मुझे विश्वास है कि कोई भी संगठन, जो सेवा और आत्म-बलिदान के उच्च आदर्श से प्रेरित है, उसकी ताकत बढ़ती ही है।''

अंबेडकर भी पहुंचे थे शिविर में

जिस समय छुआ छूत की परंपरा चरम पर थी, उस समय आरएसएस के प्रशिक्षण वर्ग में सभी जातियों के प्रशिक्षकों और प्रशिक्षुओं को एक साथ खाना खिलाना और भाइयों की तरह एक साथ रखा जा रहा था। इसकी जानकारी मिलने के बाद डॉ भीमराव अंबेडकर 1939 में पुणे में संघ शिक्षा वर्ग का दौरा करने जा पहुंचे। जब डॉ. अंबेडकर ने डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से पूछा कि क्या शिविर में कोई अछूत थे, तो आरएसएस संस्थापक ने उत्तर दिया कि न तो स्पृश्य थे और न ही अछूत, बल्कि वहां केवल हिंदू थे। डॉ. अंबेडकर ने कहा, "मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि स्वयंसेवक दूसरों की जाति जानने की परवाह किए बिना पूर्ण समानता और भाईचारे के साथ आगे बढ़ रहे हैं।"

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पहुंचे थे मुख्यालय

भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जून 2018 में नागपुर में आरएसएस के मुख्यालय गए थे। उन्होने यहां तीसरे वर्ष के प्रशिक्षण शिविर को भी संबोधित किया। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा था कि 'मैं यहां पर राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति समझाने आया हूं। भारत दुनिया का पहला राज्य है और इसके संविधान में आस्था ही असली देशभक्ति है। उन्होंने उस घर का भी दौरा किया जहां डॉ. हेडगेवार का जन्म हुआ था और जहां 1920 के दशक की शुरुआत में आरएसएस की स्थापना के विचार पर चर्चा हुई थी।

आरएसएस प्रशिक्षण वर्ग | RSS Training Camp | Dr. Hedgewar

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