सेम सेक्स मैरिज पर टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी बोले- प्यार की कोई सीमा नहीं, सभी को अपनी साथी चुनने का हक, उम्मीद है SC इसे समझेगा

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Atul Tiwari
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सेम सेक्स मैरिज पर टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी बोले- प्यार की कोई सीमा नहीं, सभी को अपनी साथी चुनने का हक, उम्मीद है SC इसे समझेगा

NEW DELHI/KOLKATA. तृणमूल कांग्रेस नेता अभिषेक बनर्जी ने समलैंगिक विवाह का समर्थन किया है। अभिषेक ने कहा कि हर किसी को अपना जीवनसाथी चुनने का हक है। मामला कोर्ट में है, इसलिए मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा। लेकिन मुझे लगता है कि प्यार की जाति या धर्म नहीं होता। अगर मैं एक पुरुष हूं और एक पुरुष से प्यार करता हूं और अगर एक महिला हूं और महिला से प्यार करती हूं, तो हर किसी को प्यार करने का अधिकार है। हर किसी को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार है, चाहे वह पुरुष हो या महिला। उम्मीद है सुप्रीम कोर्ट इसे समझेगा।







— ANI (@ANI) April 21, 2023





टीएमसी सांसद का केंद्र पर आरोप





केंद्र सरकार ने इस मामले को लेकर सभी राज्यों को पत्र लिखा है और इस पर 10 दिनों में राय देने को कहा है। केंद्र ने कोर्ट में दिए हलफनामे में कहा है कि इस पर राज्यों की राय जानना जरूरी है और उन्हें पार्टी बनाने का आग्रह किया है। इसे लेकर पूछे गए सवाल पर अभिषेक बनर्जी ने केंद्र पर टाल-मटोल की कोशिश का आरोप लगाया। बनर्जी ने कहा कि केंद्र जानबूझकर मामले में देरी कर रहा है। यह तरीका बेवजह मामले को लटकाए रखता है। अगर वे राय लेने के बारे में गंभीर होते तो बीते 7 साल में ऐसा कर सकते थे।





सुप्रीम कोर्ट में है मामला





समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच सुनवाई कर रही है।





मामले में अब तक क्या हुआ?







  • 25 नवंबर 2022: दो समलैंगिक जोड़ों ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसके बाद अदालत ने याचिका पर नोटिस जारी किया। याचिकाओं में मांग की गई थी कि विशेष विवाह अधिनियम को किसी भी लिंग या कामुकता-आधारित प्रतिबंध को हटाकर जेंडर बेस्ड बनाया जाए।



  • अदालत ने कहा था कि केरल हाईकोर्ट में इसी तरह के एक मामले में केंद्र सरकार ने डिप्टी सॉलिसिटर जनरल के माध्यम से एक बयान दिया था कि मंत्रालय दिल्ली हाईकोर्ट में रिट याचिका सहित सभी रिट याचिकाओं को हासिल करने के लिए कदम उठा रहा है। अदालत ने एक ही विषय पर विभिन्न अदालतों में लंबित याचिकाओं पर भी ध्यान दिया, जिसमें केरल हाईकोर्ट में एक याचिका और दिल्ली हाईकोर्ट की आठ याचिकाएं शामिल थीं।


  • सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 2 जजों की बेंच ने नोटिस जारी कर केंद्र सरकार से जवाब मांगा।


  • 14 दिसंबर 2022: सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक जोड़े द्वारा दायर एक अन्य याचिका पर नोटिस जारी किया। एक भारतीय नागरिक और एक अमेरिकी नागरिक सहित विवाहित जोड़े ने विदेशी विवाह अधिनियम 1969 के तहत अपनी शादी को कानूनी मान्यता मांगी।


  • 6 जनवरी, 2023: सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न हाईकोर्ट्स लंबित समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली सभी याचिकाओं को शीर्ष अदालत में ट्रांसफर करने का निर्देश दिया।


  • 30 जनवरी, 10 फरवरी, 20 फरवरी और 3 मार्च, 2023: सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह की राहत की मांग करने वाली और याचिकाओं पर नोटिस जारी किया और उन्हें मुख्य मामले से जोड़ दिया।


  • 12 मार्च, 2023: केंद्र ने सेम सेक्स मैरिज का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया। इसमें कहा गया कि भारतीय परिवार की अवधारणा में एक जैविक पुरुष और महिला शामिल है और अदालत के लिए पूरी विधायी नीति को बदलना संभव नहीं होगा। हिंदुओं के बीच यह एक संस्कार है, एक पुरुष और एक महिला के बीच पारस्परिक कर्तव्यों के लिए एक पवित्र मिलन है। मुसलमानों में यह एक अनुबंध है, जो एक जैविक पुरुष और एक जैविक महिला के बीच ही हो सकता है।


  • 13 मार्च 2023: SC ने याचिकाओं के व्यापक संदर्भ और शासन-संवैधानिक अधिकारों के बीच अंतर-संबंध पर विचार करते हुए मामले को संविधान पीठ को भेज दिया।


  • 1 अप्रैल 2023: जमीयत उलमा-ए-हिंद ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं का विरोध किया। 


  • 6 अप्रैल 2023: दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) ने एक आवेदन दिया, जिसमें समलैंगिक विवाह और सेम सेक्स जोड़ों को गोद लेने के अधिकार का समर्थन किया गया।


  • 15 अप्रैल 2023: सुप्रीम कोर्ट ने मामले के लिए 5 जजों की बेंच के गठन को नोटिफाई किया, जो समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।


  • 17 अप्रैल 2023: केंद्र ने एक नया आवेदन दायर किया। कहा कि भारत में विवाह समानता की मांग करने वाले केवल सामाजिक स्वीकृति के उद्देश्य से इलीट विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। लोगों की इच्छा यही है कि विवाह को केवल विषमलैंगिक यानी अपोजिट सेक्स वाले व्यक्तियों के बीच ही मान्यता दी जाए।




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