सरोजिनी नायडू की 143वीं जयंती, 12 की उम्र से कविताएं लिखने लगीं, स्वर कोकिला का खिताब मिला, गांधी जी से मिली और देश के लिए जुट गईं

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Atul Tiwari
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सरोजिनी नायडू की 143वीं जयंती, 12 की उम्र से कविताएं लिखने लगीं, स्वर कोकिला का खिताब मिला, गांधी जी से मिली और देश के लिए जुट गईं

BHOPAL. स्वतंत्रता सेनानी और कवयित्री सरोजिनी नायडू के जन्मदिन पर 13 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। सरोजिनी नायडू राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई की थी। सरोजिनी का जन्म 13 फरवरी 1879 को हुआ था। उनकी मां का नाम वरदा सुंदरी और पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय था, जो कि निजाम कॉलेज में केमिस्ट्री के साइंटिस्ट थे। सरोजिनी के पिता हमेशा से उन्हें वैज्ञानिक बनाना चाहते थे, लेकिन बचपन से ही उनकी दिलचस्पी कविताओं में ही थी। महज 12 साल की उम्र में सरोजिनी ने कविताएं लिखने की शुरुआत की थी। 



उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से मैट्रिक परीक्षा में टॉप किया था। 16 साल की उम्र में सरोजिनी नायडू हायर एजुकेशन के लिए इंग्लैंड चली गईं। वहां उन्होंने किंग्स कॉलेज लंदन और गिरटन कॉलेज में पढ़ाई की। 1895 में हैदराबाद के निजाम ने वजीफे पर इंग्लैंड भेजा। सरोजिनी नायडू बेहद टैलेंटेड थीं। उन्हें इंग्लिश, बंगला, उर्दू, तेलुगु और फारसी भाषा का अच्छा ज्ञान था। वे भारत की पहली महिला राज्यपाल (उत्तर प्रदेश की) बनी थीं। 2 मार्च 1949 को लखनऊ में उन्हें हार्ट अटैक आया और उनका निधन हो गया। सरोजिनी नायडू की 135वीं जयंती यानी 13 फरवरी 2014 को भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत हुई।



19 साल में शादी हो गई थी



उनकी शादी डॉ. गोविंद राजालु नायडू के साथ 19 साल की उम्र में हुई। डॉ. नायडू फौज में डॉक्टर थे।  पहले तो सरोजिनी के पिता ने इस शादी से इंकार कर दिया था, लेकिन बाद में वो शादी के लिए मान गए। शादी के बाद सरोजिनी और डॉक्टर गोविंदराजुलु हैदराबाद में रहने लगे। जहां उनके चार बच्चे हुए



गांधी जी से मिलीं और फिर देश के लिए जुट गईं



सरोजिनी नायडू का प्रथम कविता संग्रह ‘ द गोल्डन थ्रेशहोल्ड  1909 में प्रकाशित हुआ। सरोजिनी नायडू पहली बार 1914 में महात्मा गांधी से मिली और तभी से देश के लिए मर मिटने को तैयार हो गईं। दांडी मार्च (1930) के दौरान वे भी गांधी जी के साथ-साथ चलीं। 



कैसर-ए-हिंद वापस कर दिया था



नायडू के राजनीति में सक्रिय होने में गोखले के 1906 के कोलकाता अधिवेशन के भाषण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय समाज में फैली कुरीतियों के लिए भारतीय महिलाओं को जागृत किया। भारत की स्वतंत्रता के लिए विभिन्न आंदोलनों में सहयोग दिया। काफी समय तक वे कांग्रेस की प्रवक्ता रहीं। जलियांवाला बाग हत्याकांड से दुखी होकर उन्होंने 1908 में मिला कैसर-ए-हिंद सम्मान लौटा दिया था। यह मेडल उन्हें भारत में प्लेग की महामारी के दौरान उनके काम के लिए दिया गया था। 1925 में सरोजिनी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। कांग्रेस अध्यक्ष बनने वालीं वे पहली महिला थीं।



गांधी के दरबार की विदूषक



वे गोपालकृष्ण गोखले को अपना 'राजनीतिक पिता' मानती थीं। उनके मजाकिया स्वभाव के कारण उन्हें 'गांधीजी के लघु दरबार में विदूषक' (clown) कहा जाता था। एनी बेसेंट के साथ युवाओं में राष्ट्रीयता की भावना जगाने के लिए उन्होंने 1915 से 18 तक देश भ्रमण किया। 1919 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में वे गांधीजी की विश्वसनीय सहायक थीं। होमरूल के मुद्दे को लेकर वे 1919 में इंग्लैंड गईं। 1922 में उन्होंने खादी पहनने का व्रत लिया। 1922 से 26 तक साउथ अफ्रीका में भारतीयों के समर्थन में आंदोलन किया और गांधीजी के प्रतिनिधि के रूप में 1928 में अमेरिका गईं। सरोजिनी नायडू ने गांधीजी के साथ कई आंदोलनों में हिस्सा लिया और भारत छोड़ो आंदोलन में वे जेल भी गईं। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें आगा खां महल में रखा गया। उन्हें 'भारत कोकिला' के नाम से भी जाना जाता था। 


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