New Delhi. मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में लगातार हो रही चीते की मौत को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने चिंता जाहिर की। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अभी एक भी साल नही हुआ और अफ्रीका और नामीबिया से लाए गए 40 फीसदी चीतों की मौत हो चुकी है। जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान सवाल किया कि आखिरकार सारे चीतों को अलग अलग जगहों पर क्यों नहीं रखा गया? सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान कुछ चीतों को राजस्थान के किसी अभ्यारण्य में रखने का और इन चीतों को बचाने के लिए सकारात्मक कदम उठाने का सुझाव दिया है।
सर्वाच्च न्यायालय की इस टिप्पणी का जवाब देते हुए केंद्र सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐशवर्या भाटी ने कहा कि इस मामले में विस्तृत रिपोर्ट दाखिल किया जाएगा। इस परियोजना के लिए सरकार पूरी तरह से प्रयास कर रही है।
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एएसजी ऐशवर्या भाटी ने आगे बताया कि चीतों को नए स्थान पर बसाने में 50 फीसदी चीतों की मौत को सामान्य माना जाता है। बता दें पिछले साल कुल 20 चीतों को लाया गया था। जिसमें अभी तक 8 चीतों की मौत हो गई है। भाटी के इस बयान पर जस्टिस बी पादरीवाला ने कहा कि यदि ऐसी बात है तो मुद्दा क्या है? क्या चीते हमारी जलवायु के लायक नहीं है? क्या चीतों को किडनी या सांस की समस्याएं है? बता दें इस मामले की अगली सुनवाई 1 अगस्त को होगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने इससे पहले भी कह चुका है कि चीतों एक ही स्थान पर बसाना सही नहीं होगा। इन चीतों देश के किसी दूसरे अभ्यारण्य में भी बसाने का प्रयास किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ये अभ्यारण्य राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के भी हो सकते है। वहीं मई महीने में सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि इस मुद्दे पर सभी को मिलजुल कर काम करना चाहिए। अभ्यारण्य का चुनाव करते वक्त पार्टी राजनीति से ऊपर उठकर सोचना चाहिए