सुप्रीम कोर्ट का फैसला- ट्रांसफर-पोस्टिंग LG नहीं, दिल्ली सरकार का अधिकार, चुनी हुई गवर्मेंट के पास ही हों प्रशासनिक हक

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BP Shrivastava
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सुप्रीम कोर्ट का फैसला- ट्रांसफर-पोस्टिंग LG नहीं, दिल्ली सरकार का अधिकार, चुनी हुई गवर्मेंट के पास ही हों प्रशासनिक हक

NEW DELHI. दिल्ली में सेवाओं पर किसका अधिकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (11 मई) को बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को होना चाहिए यानी उपराज्यपाल (एलजी) नहीं मुख्यमंत्री ही दिल्ली का असली बॉस होगा। साथ ही कहा कि चुनी हुई सरकार के पास ही प्रशासनिक व्यवस्था होनी चाहिए। केंद्र सरकार के पास पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और जमीन से संबंधित मामलों पर नियंत्रण का हक रहेगा।



चीफ जस्टिस ने क्या कहा?



चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने संवैधानिक बेंच का फैसला सुनाते हुए कहा, दिल्ली सरकार की शक्तियों को सीमित करने को लिए केंद्र की दलीलों से निपटना जरूरी है। एनसीटीडी एक्ट का अनुच्छेद 239 aa काफी विस्तृत अधिकार परिभाषित करता है। 239aa विधानसभा की शक्तियों की भी समुचित व्याख्या करता है। इसमें तीन विषयों को सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है।



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SC की पूरी बेंच की सहमित से हुआ फैसला



सीजेआई ने कहा, यह सब जजों की सहमति से बहुमत का फैसला है। यह मामला सिर्फ सर्विसेज पर नियंत्रण का है। अधिकारियों की सेवाओं पर किसका अधिकार है? CJI  ने कहा, हमारे सामने सीमित मुद्दा यह है कि केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में सेवाओं पर किसका नियंत्रण होगा? 2018 का फैसला इस मुद्दे पर स्पष्टता प्रदान करता है, लेकिन केंद्र द्वारा उठाए गए तर्कों से निपटना आवश्यक है। अनुच्छेद 239AA व्यापक सुरक्षा प्रदान करता है। 



सीजेआई ने यह भी कहा




  •  सीजेआई ने कहा, NCT एक पूर्ण राज्य नहीं है। ऐसे में राज्य पहली सूची में नहीं आता। NCT दिल्ली के अधिकार दूसरे राज्यों की तुलना में कम हैं।


  • सीजेआई ने कहा, प्रशासन को GNCTD (गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली ) के संपूर्ण प्रशासन के रूप में नहीं समझा जा सकता है। नहीं तो निर्वाचित सरकार की शक्ति कमजोर हो जाएगी। 



  • क्या है मामला?



    दिल्ली सरकर और उपराज्यपाल के अधिकारों से संबंधित मामले को तीन बिंदुओं से समझा जा सकता है। संक्षिप्त में यह बताया गया-




    • दिल्ली में अफसरों की पोस्टिंग और उनके ट्रांसफर के अधिकार की मांग वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर ये फैसला आया है। देश की सर्वोच्च अदालत का ये फैसला दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण के अधिकार से भी जुड़ा है। 


  • कोर्ट ने इस मामले में 18 जनवरी को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। दिल्ली सरकार का तर्क रहा है कि केंद्र दरअसल उसके और संसद के बीच के अंतर को खत्म करना चाहता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि दुनिया के लिए दिल्ली को देखना यानी भारत को देखना है। उन्होंने कहा कि चूंकि ये राष्ट्रीय राजधानी है, इसलिए ये जरूरी है कि केंद्र के पास अपने प्रशासन पर विशेष अधिकार हों और अहम मुद्दों पर नियंत्रण हो।

  • केंद्र सरकार ने 2021 में गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली एक्ट (GNCTD Act) पास किया था। इसमें दिल्ली के उपराज्यपाल को कुछ और अधिकार दे दिए गए थे। आम आदमी पार्टी ने इसी कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। आम आदमी पार्टी अक्सर केंद्र सरकार पर चुनी हुई सरकार के कामकाज में बाधा डालने के लिए उपराज्यपाल का इस्तेमाल करने का आरोप लगाती रही है। 



  • सुप्रीम कोर्ट ने किया न्याय: केजरीवाल



    दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट को अपनी सबसे बड़ी जीत बताया। केजरीवाल ने कहा, सुप्रीम कोर्ट का आदेश कई मायनों में बहुत ही ऐतिहासिक आर्डर है। दिल्ली के लोगों की बड़ी जीत है। उन्होंने मीडिया से चर्चा में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के लोगों के साथ में आज न्याय किया है। इसके साथ ही दिल्ली की जनता का आभार भी जताया, जिन्होंने इतने सालों तक उनका साथ दिया। इसके बाद जब सीएम से नई नौकरियों के बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि, सर्विसेज आने के बाद नई पोस्ट क्रिएट कर सकते हैं। इसके साथ ही अगर किसी भी विभाग में या कोई भी अफसर भ्रष्टाचार करता है तो विजिलेंस सरकार के पास है, और ऐसे मामलों में विजिलेंस की कार्रवाई होगी। एलजी को लेकर जब उनसे सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, बस उनसे ही आशीर्वाद लेने जा रहा हूं। 



     सीएम केजरीवाल ने कहा-पिता के समान होता है प्रधानमंत्री



    उन्होंने बताया कि 2015 में सरकार बनने के 3 महीने के अंदर ही प्रधानमंत्री ने एक आदेश पारित करके केंद्र सरकार से आदेश पारित करके मामले एलजी को दे दिए। इसका मतलब ये हुआ कि दिल्ली सरकार में काम करने वाले जितने भी अधिकारी और कर्मचारी हैं। वो चुनी सरकार के अधिकार में नहीं होगा। हम शिक्षा सचिव नियुक्त नहीं कर सकते थे। पीएम मोदी सारे देश के पीएम हैं, वह हमारे भी प्रधानमंत्री हैं। प्रधानमंत्री पिता के समान होते हैं। पिता की जिम्मेदारी होती है सारे बच्चों का पालन पोषण करें। मुसीबत के समय हमें उम्मीद होती है कि वह हमारी मदद करेंगे, लेकिन 8 साल हमें बिना पावर के काम करना पड़ा। उनके इस आदेश से किसी को कोई लाभ नहीं हुआ। इसलिए ऐसा नहीं करना चाहिए था।


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