अवधेशानंद गिरि की SC को चिट्ठी- विवाह एक पवित्र संस्कार, समलैंगिक विवाह को वैधानिक करना मानवीय अस्तित्व के लिए अनिष्टकारक होगा

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Atul Tiwari
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अवधेशानंद गिरि की SC को चिट्ठी- विवाह एक पवित्र संस्कार, समलैंगिक विवाह को वैधानिक करना मानवीय अस्तित्व के लिए अनिष्टकारक होगा

NEW DELHI. सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को लेकर सुनवाई जारी है। अब हिंदू धर्म आचार्य सभा के अध्यक्ष और जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखी है। इसमें अवधेशानंद ने लिखा कि विवाह एक पवित्र संस्कार है, समलैंगिक विवाह को वैधानिक करना मानवीय अस्तित्व के लिए अनिष्टकारक होगा।



अवधेशानंद ने चिट्ठी में ये लिखा



'भारत केवल 146 करोड़ जनसंख्या का देश नहीं है, अपितु यह प्राचीन वैदिक सनातन धर्म-संस्कृति, परंपरा और मानवीय संवेदनाओं की धरोहर है। हमारे यहां विवाह एक अत्यंत पवित्र कल्याणकारी संस्कार है। विवाह स्त्री-पुरुष को वंश वृद्धि, पारिवारिक मूल्यों के संरक्षण और सामाजिक उत्तरदायित्वों के भीतर एकीकृत करता है। अत: 'समलैंगिकता का वैधीकरण विवाह' भारत जैसे देश में भीषण विसंगतियों का कारण बनकर भारत राष्ट्र की दिव्य वैदिक मान्यताओं, सांस्कृतिक प्रथाओं और सामाजिक विकास की विविध साधन पद्धतियों को ध्वस्त कर मानवीय अस्तित्त्व के लिए अनिष्टकारक सिद्ध होगा।'  



अवधेशानंद के मुताबिक, भारत के शीर्षस्थ धर्माचार्य संत-सत्पुरुष इस प्रकार के अप्राकृतिक और अस्वाभाविक विचार से स्तब्ध हैं। इस प्रकार के अनुचित और अनैतिक प्रयोग भारत में सर्वथा अस्वीकार्य रहे हैं।



ये है समलैंगिक विवाह मामला?



दिल्ली हाईकोर्ट समेत अलग-अलग अदालतों में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लेकर याचिकाएं दायर हुई थीं। इन याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के निर्देश जारी करने की मांग की गई थी। पिछले साल 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में पेंडिंग 2 याचिकाओं को ट्रांसफर करने की मांग पर केंद्र से जवाब मांगा था।



इससे पहले 25 नवंबर को भी सुप्रीम कोर्ट दो अलग-अलग समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर भी केंद्र को नोटिस जारी किया था। इन जोड़ों ने अपनी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की थी। इस साल 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक कर अपने पास ट्रांसफर कर लिया था।



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याचिकाओं में क्या है मांग?



सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज कर दिया था यानी भारत में अब समलैंगिक संबंध अपराध नहीं हैं। लेकिन अभी भारत में समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं मिली है। ऐसे में इन याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट समेत विवाह से जुड़े कई कानूनी प्रावधानों को चुनौती देते हुए समलैंगिकों को विवाह की अनुमति देने की मांग की गई है। समलैंगिकों की मांग है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार LGBTQ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) समुदाय को उनके मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में दिया जाए। एक याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग की गई थी, ताकि किसी व्यक्ति के साथ उसके सेक्सुअल ओरिएंटेशन की वजह से भेदभाव ना किया जाए। 



27 अप्रैल को हुई सुनवाई में दलीलें और कोर्ट का रुख



सीजेआई चंद्रचूड़ और केंद्र की ओर से मामले की पैरवी कर रहे तुषार मेहता के बीच नोकझोंक हुई। मेहता ने कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा देने का समाज पर खतरनाक असर हो सकता है। समलैंगिक विवाह से सगे भाई-बहनों के बीच यौन संबंधों को भी वैध बनाने के लिए याचिकाएं और दलीलें आ सकती हैं। 



इस पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि फिलहाल ये तो दूर की कौड़ी है, क्योंकि यह तो नैतिक रूप से भी उचित प्रतिबंध में आता है। कोई भी अदालत अनाचार को वैध नहीं करेगी।



कोर्ट ने कहा कि हमारे देश में भी कई राज्य, प्रदेश और क्षेत्र ऐसे हैं, जहां प्राचीन काल से मामा-भांजी या फिर मामा की बेटी से भी शादी की प्रथा है यानी ममेरे-फुफेरे भाई बहन के बीच भी शादी ब्याह होते हैं। इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि सरकार भी तो यही कह रही है। 



बेंच ने केंद्र सरकार से कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा दिए बगैर उनके लिए बुनियादी सामाजिक लाभ देने का तरीका खोजा जाए। इसके लिए केंद्र सरकार को तीन मई तक का समय दिया गया है। 


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