NEW DELHI. गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इस मौके पर पीएम मोदी 60 हजार श्रमयोगियों का भी सम्मान करेंगे, जिन्होंने संसद भवन के निर्माण में अपना योगदान दिया है। उन्होंने बुधवार (24 मई) को मीडिया से बातचीत में बताया कि नई संसद के उद्घाटन के मौके पर ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित होगी। नई संसद में सेंगोल (राजदंड) को स्थापित किया जाएगा। इसका अर्थ होता है संपदा से संपन्न।
सेंगोल इलाहाबाद के संग्रहालय में रखा था
अमित शाह ने सेंगोल के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया नई संसद में स्थापित सेंगोल (राजदंड) का अर्थ होता है संपदा से संपन्न। जिस दिन राष्ट्र को समर्पित होगी, उसी दिन तमिलनाडु से आए विद्वानों द्वारा सेंगोल पीएम को दी जाएगी फिर संसद में ये परमानेंट स्थापित की जाएगी। शाह ने बताया कि सेंगोल इससे पहले इलाहाबाद के संग्रहालय में रखा था।
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सेंगोल का इतिहास
अमित शाह ने बताया कि आजादी के समय जब पंडित नेहरू से पूछा गया कि सत्ता हस्तांतरण के दौरान क्या आयोजन होना चाहिए? नेहरूजी ने अपने सहयोगियों से चर्चा की। सी गोपालाचारी से पूछा गया। सेंगोल की प्रक्रिया को चिन्हित किया गया। पंडित नेहरू ने पवित्र सेंगोल को तमिलनाडु से मंगवा कर अंग्रेजों से सेंगोल को स्वीकार किया। इसका तात्पर्य था पारंपरिक तरीके से ये सत्ता हमारे पास आई है।
चोल साम्राज्य से जुड़ा है सेंगोल
शाह ने बताया, सेंगोल के इतिहास और डीटेल में जाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि सेंगोल जिसको प्राप्त होता है उससे निष्पक्ष और न्यायपूर्ण शासन की उम्मीद की जाती है। यह चोल साम्राज्य से जुड़ा हुआ है। तमिलनाडु के पुजारियों द्वारा इसमें धार्मिक अनुष्ठान किया गया। आजादी के समय जब इसे नेहरू जी को सौंपा गया था, तब मीडिया ने इसे कवरेज दिया था।
गृह मंत्री ने कहा, 1947 के बाद उसे भुला दिया गया। फिर 1971 में तमिल विद्वान ने इसका जिक्र किया और किताब में इसका जिक्र किया। भारत सरकार ने 2021-22 में इसका जिक्र है। 96 साल के तमिल विद्वान जो 1947 में उपस्थित थे वो भी उसी दिन रहेंगे।
संस्कृत के संकु से लिया गया सेंगोल शब्द
सेंगोल संस्कृत शब्द "संकु" से लिया गया है, जिसका अर्थ है "शंख"। शंख हिंदू धर्म में एक पवित्र वस्तु थी, और इसे अक्सर संप्रभुता के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। सेंगोल राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक था। यह सोने या चांदी से बना था, और इसे अक्सर कीमती पत्थरों से सजाया जाता था। सेनगोल राजदंड औपचारिक अवसरों पर सम्राट द्वारा ले जाया जाता था, और इसका उपयोग उनके अधिकार को दर्शाने के लिए किया जाता था।
भारत में सेंगोल राजदंड का इतिहास प्राचीन काल में देखा जा सकता है। सेनगोल राजदंड का पहला ज्ञात उपयोग मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) द्वारा किया गया था। मौर्य सम्राटों ने अपने विशाल साम्राज्य पर अपने अधिकार को दर्शाने के लिए सेनगोल राजदंड का इस्तेमाल किया। गुप्त साम्राज्य (320-550 ईस्वी), चोल साम्राज्य (907-1310 ईस्वी) और विजयनगर साम्राज्य (1336-1646 ईस्वी) द्वारा सेनगोल राजदंड का भी इस्तेमाल किया गया था।