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Siddhivinayak mandir:मुंबई की चहल-पहल भरी जिंदगी में जहां सपनों का पीछा करने और भाग-दौड़ में हर कोई व्यस्त है, वहां एक ऐसी जगह है जो हर किसी को सुकून और उम्मीद देती है। यह है श्री सिद्धिविनायक गणपति मंदिर जो न सिर्फ मुंबई बल्कि पूरे भारत और दुनिया भर के भक्तों के लिए आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है।
मुंबई दादर के प्रभादेवी इलाके में स्थित यह मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि विश्वास और चमत्कारों का एक जीता-जागता प्रतीक है।
यहां हर दिन लाखों भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और यह मान्यता है कि गणपति बप्पा उनकी सभी इच्छाएं पूरी करते हैं। इस मंदिर का इतिहास जितना पुराना है उतना ही दिलचस्प भी। आइए जानते हैं इस पावन धाम के इतिहास के बारे में विस्तार से जानते हैं।
मंदिर का इतिहास और उसकी स्थापना
सिद्धिविनायक मंदिर की कहानी सिर्फ आस्था की नहीं, बल्कि एक महिला के त्याग और विश्वास की भी है। इस मंदिर का निर्माण लक्ष्मण विठु पाटिल और उनकी पत्नी देउबाई पाटिल ने 19 नवंबर 1801 को हुआ था। इसका श्रेय एक समृद्ध और नि:संतान महिला, श्रीमती देवबाई पाटिल को जाता है।
एक दिन देवबाई को यह विचार आया कि अगर उन्हें संतान सुख नहीं मिल सका तो क्या हुआ, वह अपनी संपत्ति का उपयोग एक ऐसा मंदिर बनवाने में करेंगी जहां अन्य नि:संतान महिलाओं को गणेश जी का आशीर्वाद मिल सके। उनका मानना था कि इस पवित्र कार्य से भगवान गणेश दूसरों को संतान सुख का वरदान देंगे।
उन्होंने अपनी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए एक कुशल ठेकेदार, लक्ष्मण विठु पाटिल, को मंदिर निर्माण का जिम्मा सौंपा। जब यह छोटा सा मंदिरबनकर तैयार हुआ, तो यह एक साधारण सी ईंटों और पत्थरों की संरचना थी, जिसकी माप केवल 3.6 x 3.6 मीटर थी। मंदिर के गर्भगृह में एक ही रास्ता था।
लेकिन इस साधारण मंदिर में भी एक ऐसा चमत्कार छिपा था जिसने इसे असाधारण बना दिया। समय के साथ, भक्तों की बढ़ती हुई संख्या और उनके दान से इस मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार किया गया और आज यह एक विशाल और भव्य संरचना में तब्दील हो चुका है। इसका (सिद्धिविनायक मंदिर में दर्शन) वर्तमान स्वरूप 1993 से 1994 के बीच बना है और इसमें राजस्थान से लाए गए ग्रेनाइट और संगमरमर का इस्तेमाल हुआ है।
मंदिर की मूर्ति की विशेषता
सिद्धिविनायक गणपति की मूर्ति ही इस मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण और रहस्य है। काले पत्थर से बनी भगवान गणेश की यह मूर्ति लगभग 4 फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है। लेकिन जो बात इस मूर्ति को सबसे अलग और खास बनाती है वह है उनकी सूंड। आम तौर पर गणेश जी की मूर्तियों में उनकी सूंड बाईं ओर होती है लेकिन यहां सिद्धिविनायक गणपति की सूंड दाईं ओर है।
दाईं ओर सूंड का महत्व:
हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, दाईं ओर सूंड वाले गणपति को 'सिद्धि विनायक' कहा जाता है। 'सिद्धि' का अर्थ है शक्ति और सफलता।
ऐसी मान्यता है कि दाईं ओर सूंड वाले गणपति बहुत शक्तिशाली होते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं बहुत जल्दी पूरी करते हैं। हालांकि, उनकी पूजा का विधान भी काफी कठिन और सख्त माना जाता है पर भक्त अपनी श्रद्धा और विश्वास के बल पर उनकी कृपा प्राप्त करते हैं।
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चमत्कारी और अनोखी बातें
चार भुजाएं:
गणपति की मूर्ति की चार भुजाएं हैं। उनके ऊपर के दो हाथों में एक कमल और एक कुल्हाड़ी है। नीचे के दो हाथों में एक मोदक और एक माला है।
नाग और तीसरा नेत्र:
मूर्ति के पेट के चारों ओर एक सांप लिपटा हुआ है और उनके मस्तक पर एक तीसरा नेत्र भी बना हुआ है, जो ज्ञान और जागरूकता का प्रतीक है।
सिद्धि योग का विशेष महत्व:
हर साल गणेश चतुर्थी के दिन, सिद्धिविनायक मंदिर में भक्तों का तांता लगता है। इस दिन 'सिद्धि योग' बनने से पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस योग में की गई पूजा से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। इस मंदिर में भगवान गणेश अपनी दोनों पत्नियों रिद्धि और सिद्धि के साथ स्थापित हैं।
कला का अद्भुत संगम:
मंदिर की अंदरूनी छत और दीवारों पर बनी कलाकृतियाँ अद्भुत हैं। इनमें गणपति के जीवन और पुराणों की कहानियों को दर्शाया गया है। यह मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि भारतीय कला और स्थापत्य का एक शानदार उदाहरण भी है।
गणपति की आंखों में छिपा रहस्य:
यह माना जाता है कि मूर्ति की आंखें हीरे से जड़ी हुई हैं। यह भक्तों की मान्यता है कि जब आप गणेश जी की आंखों में देखते हैं तो आप एक अजीब सी ऊर्जा और शांति महसूस करते हैं।
इच्छाएं पूरी करने वाले गणपति
सिद्धिविनायक मंदिर को इच्छाएं पूरी करने वाले गणपति के नाम से भी जाना जाता है। यह मान्यता है कि अगर आप सच्चे मन से गणपति बप्पा से कोई मन्नत मांगते हैं, तो वह जरूर पूरी होती है। इसी वजह से यहां आम जनता से लेकर बड़े-बड़े राजनेता और बॉलीवुड हस्तियाँ भी दर्शन के लिए आती हैं।
गणेश चतुर्थी का उत्सव और मंदिर की शोभा
गणेश चतुर्थी के 10 दिनों के दौरान, सिद्धिविनायक मंदिर की शोभा देखने लायक होती है। पूरे मंदिर को फूलों, लाइटों और सजावट से भव्य रूप दिया जाता है।
इस दौरान यहां भक्तों की भीड़ कई गुना बढ़ जाती है और सिद्धिविनायक दर्शन के लिए दिन-रात लाइनें लगी रहती हैं।
मंदिर ट्रस्ट (सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्टी) द्वारा भक्तों के लिए विशेष व्यवस्थाएं की जाती हैं ताकि सभी लोग सुरक्षित और शांतिपूर्ण तरीके से दर्शन कर सकें।
यहां आकर लोग न सिर्फ भगवान से जुड़ते हैं, बल्कि एक ऐसी ऊर्जा और शांति महसूस करते हैं जो उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देती है। यह मंदिर मुंबई की पहचान बन चुका है और यहां का हर दर्शन एक अविस्मरणीय अनुभव होता है।
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सिद्धिविनायक मंदिर तक कैसे पहुंचे
मुंबई का सिद्धिविनायक मंदिर दादर के प्रभादेवी इलाके में है। यहां तक पहुंचना बहुत ही आसान है क्योंकि यह शहर के बीच में स्थित है और पब्लिक ट्रांसपोर्ट से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
ट्रेन से:
- अगर आप मुंबई की लोकल ट्रेन से आ रहे हैं, तो दादर रेलवे स्टेशन सबसे नजदीकी स्टेशन है।
- दादर स्टेशन से आप टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या बस ले सकते हैं। यह स्टेशन से 10-15 मिनट की दूरी पर है।
बस से:
- मुंबई की BEST बसें शहर के लगभग हर हिस्से से चलती हैं।
- कई बसें सीधे सिद्धिविनायक मंदिर या उसके पास के बस स्टॉप तक जाती हैं।
टैक्सी या ऑटो-रिक्शा से:
- आप मुंबई में कहीं से भी टैक्सी या ऑटो-रिक्शा लेकर सीधे मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
- ओला (Ola) और उबर (Uber) जैसी राइड-शेयरिंग सर्विसेज भी आसानी से उपलब्ध हैं।
सिद्धिविनायक मंदिर में प्रसाद
मंदिर में प्रसाद के रूप में आपको नारियल, लड्डू, फूल और मोदक मिल सकते हैं। मंदिर के बाहर कई दुकानें हैं जहां आप यह सब खरीद सकते हैं। पूजा के बाद आप इन वस्तुओं को भगवान को अर्पित कर सकते हैं। मंदिर में दर्शन करने के बाद, आपको मंदिर की ओर से भी प्रसाद के रूप में मोदक दिया जा सकता है।
सिद्धिविनायक मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं है, बल्कि मुंबई की धड़कन का एक हिस्सा है। यह हमें सिखाता है कि विश्वास और आस्था में कितनी शक्ति होती है। यह मंदिर न केवल भक्तों की मुरादें पूरी करता है, बल्कि उन्हें एक नई आशा और सकारात्मक ऊर्जा भी देता है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
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