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बिहार में जारी SIR (Special Identity Registration) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में SIR पर रोक लगाने से इनकार किया है। इसके साथ ही, कोर्ट ने निर्वाचन आयोग (ECI) से सवाल किया कि आधार कार्ड, वोटर आईडी (EPIC) और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को मतदाता पहचान के रूप में क्यों स्वीकार नहीं किया जा रहा है। यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए एक ऐतिहासिक कदम है, जो लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर कई सवाल उठाता है।
सुप्रीम कोर्ट का SIR पर अहम आदेश
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने बिहार SIR केस पर सुनवाई की और दोनों पक्षों से मंगलवार (29 जुलाई) सुबह 10:30 बजे तक अपनी दलीलें प्रस्तुत करने को कहा। हालांकि, इस मामले में कोई भी स्थगन आदेश नहीं दिया गया। कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से पूछा कि अगर फर्जीवाड़े की बात हो रही है, तो धरती पर कोई भी दस्तावेज ऐसा नहीं हो सकता जिसका नकल न हो सके। कोर्ट ने सवाल उठाया कि ऐसे में आयोग के जरिए सूचीबद्ध किए गए 11 दस्तावेजों को क्या आधार है।
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बिहार के लिए है जरूरी फैसला
सुप्रीम कोर्ट का यह बयान बिहार में जारी SIR मामले को लेकर बहुत जरूरी है। दरअसल, निर्वाचन आयोग के जरिए कुछ दस्तावेजों को चुनावी पहचान के लिए अस्वीकार किया गया है। इसमें आधार कार्ड, वोटर आईडी (EPIC) और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज शामिल हैं। इन दस्तावेजों का अस्वीकार होना एक बड़ा सवाल खड़ा करता है, क्योंकि ये दस्तावेज आम नागरिकों के जीवन का अहम हिस्सा हैं और इनका प्रयोग पहचान के लिए किया जाता है।
SIR की रोक पर SC का बड़ा फैसला...
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जानें निर्वाचन आयोग ने हलफनामा में क्या कहा-
निर्वाचन आयोग ने हलफनामे में यह कहा कि जनवरी 2025 की मतदाता सूची में शामिल सभी लोग ड्राफ्ट सूची में रहेंगे, बशर्ते वे गणना फॉर्म जमा करें। इसी के साथ, आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई मतदाता सूची से हटाया जाता है, तो उसके खिलाफ आपत्ति दर्ज करने और सुनवाई का कोई तंत्र स्थापित किया जाएगा।
बिहार में ड्राफ्ट सूची पर बहस
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं के वकील गोपाल शंकर नारायण ने ड्राफ्ट मतदाता सूची को अंतिम रूप देने पर रोक लगाने की मांग की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ड्राफ्ट सूची किसी भी नागरिक के अधिकारों को प्रभावित नहीं करती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जरूरत पड़ने पर, वह पूरी प्रक्रिया को रद्द भी कर सकता है। इसके साथ ही, कोर्ट ने चुनावी प्रक्रिया में सामूहिक समावेशन को प्रोत्साहित करने की बात भी की, ना कि सामूहिक बहिष्करण की।
आधार और राशन कार्ड पर आपत्ति
सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयोग के वकील ने यह भी कहा कि उन्हें राशन कार्ड को स्वीकार करने में समस्या हो रही है, क्योंकि बड़े पैमाने पर फर्जी राशन कार्ड पाए जाते हैं। इस पर कोर्ट ने सवाल उठाया कि अगर आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं हो सकता, तो उसे पहचान के प्रमाण के रूप में क्यों नहीं स्वीकार किया जा सकता है। इसके साथ ही, चुनाव आयोग ने कहा कि उनका उद्देश्य फर्जी दस्तावेजों का मुकाबला करना है, ताकि सही और पात्र मतदाताओं को ही मताधिकार मिले।
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