NEW DELHI. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ईसाई महिला की याचिका पर अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि सिर्फ आरक्षण (Reservation) का फायदा उठाने के लिए किया गया धर्म परिवर्तन संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। यह संविधान के साथ धोखाधड़ी है। साथ ही कोर्ट ने महिला को अनुसूचित जाति का सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील को ठुकराते हुए कहा कि इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
महिला को एससी सर्टिफिकेट देने से इनकार
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) के उस फैसले को सही ठहराया। जिसमें अदालत ने ईसाई महिला को अनुसूचित जाति (Scheduled Cast) का सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया गया था। इस महिला ने क्रिश्चियन धर्म अपना लिया था, लेकिन बाद में महिला ने नौकरी के लिए जाति प्रमाण पत्र पाने के लिए हिंदू होने का दावा किया था। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कई प्वाइंट्स उठाए।
बगैर आस्था के धर्म बदलने की इजाजत नहीं
जस्टिस पंकज मित्तल (Justice Pankaj Mithal) और जस्टिस आर. महादेवन (Justice R Mahadevan) की बेंच ने मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय को उचित मानते हुए कहा गया कि किसी व्यक्ति को धर्म परिवर्तन तभी करना चाहिए जब वह वास्तव में उस धर्म के सिद्धांतों, विचारधाराओं और आस्था से प्रभावित हुआ हो। कोर्ट ने आगे कहा कि अगर धर्म परिवर्तन का उद्देश्य आरक्षण का लाभ उठाने के लिए हो, लेकिन व्यक्ति की उस धर्म के प्रति आस्था नहीं या भरोसा नहीं हो तो ऐसे में इजाजत नहीं दी जा सकती। यह स्थिति केवल आरक्षण नीति और सामाजिक स्वभाव को हानि पहुंचाएगी।
बाप्टिज्म के बाद हिंदू होने का दावा गलत
सबूत के आधार पर अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता महिला ने क्रिश्चियन धर्म को अपनाया है। महिला लगातार चर्च जाती है, इससे यह साबित होता है कि वह क्रिश्चियन धर्म का पालन कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ वह दावा कर रही है कि हिंदू धर्म की है उसे आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। वह रोजगार के लिए अनुसूचित जाति का सर्टिफिकेट चाहती है। यह दोहरा दावा सही नहीं है। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। बाप्टिज्म के बाद महिला खुद के हिंदू होने का दावा नहीं कर सकतीं। अदालत ने आगे कहा कि क्रिश्चियन बनने के बाद सिर्फ आरक्षण का फायदा उठाने के लिए हिंदू होने का दावा संविधान के साथ धोखा है। यह आरक्षण देने के मकसद के खिलाफ है।
ईसाई महिला की अपील खारिज
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि यह मामला एक महत्वपूर्ण सवाल से संबंधित है, जिसमें एससी/एसटी आरक्षण में धर्म को आधार बनाने की संवैधानिकता पर सुनवाई चल रही है। इसमें ईसाई और मुस्लिम दलितों के लिए आरक्षण की मांग की गई है। 1950 के राष्ट्रपति के आदेश के अनुसार, केवल हिंदुओं को ही अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त हो सकता है। आरक्षण के संदर्भ में सिखों और बौद्धों को भी हिंदू के रूप में माना जाता है। 2007 में, जस्टिस रंगनाथ मिश्र आयोग ने दलित ईसाइयों और मुसलमानों को अनुसूचित जाति के आरक्षण देने की सिफारिश की थी।
याचिका लगाने वाली महिला सेल्वरानी की ओर से वकील एनएस नप्पिनई, वी बालाजी, असाइथम्बी एमएसएम, अतुल शर्मा, सी कन्नन, निज़ामुद्दीन, बी धनंजय और राकेश शर्मा ने जिरह की। वहीं, तमिलनाडु सरकार का पक्ष वकील अरविंद एस, अक्षय गुप्ता, अब्बास बी और थराणे एस ने रखा।
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