दिल्ली-एनसीआर में भारी वायु प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 25 नवंबर को एक बार फिर सख्त रुख अपनाया। जस्टिस एएस ओका और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) को निर्देश दिया कि ट्रकों और लाइट कमर्शियल वाहनों (एलसीवी) के प्रवेश पर लगाए गए प्रतिबंध को लागू न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ सीएक्यूएम अधिनियम की धारा 14 के तहत केस दर्ज कर अभियोजन शुरू किया जाए।
जानें पूरा मामला
दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के लिए ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के चौथे चरण के तहत ट्रकों और बीएस-IV से कम मानक वाले भारी और मध्यम वाणिज्यिक वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया था। यह प्रतिबंध दिल्ली-एनसीआर के वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के लगातार खराब होने के बाद लागू किया गया।
इसके बाद भी कोर्ट में यह बात सामने आई कि दिल्ली के एंट्री पॉइंट्स पर ट्रकों और हल्के कमर्शियल वाहनों पर रोक को सख्ती से लागू नहीं किया गया। कोर्ट आयुक्तों की रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश चेक पोस्ट से पुलिस सहित जिम्मेदार अधिकारी नदारत थे और जिन पोस्ट पर पुलिस तैनात थी, उन्हें इस बारे में कोई साफ निर्देश नहीं दिए गए थे। इस तरह चेकिंग पॉइंट में खड़े पुलिस कर्मियों को भी यह नहीं पता था कि किन वाहनों को एंट्री देनी है और किन्हे रोकना है।
अधिकारियों की लापरवाही पर कोर्ट की सख्ती
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि 18 नवंबर को GRAP-IV लागू होने के बाद भी अधिकारियों ने इसका पालन करने में लापरवाही दिखाई है। कोर्ट ने पूछा कि "क्या 18 नवंबर के बाद जांच चौकियों पर पुलिस बल तैनात करने को लेकर कोई लिखित आदेश जारी किया गया?"
कोर्ट ने यह भी पाया कि सिर्फ 23 एंट्री पॉइंट्स पर पुलिस बल तैनात किया गया था, जबकि 83 चेक पोस्टों में से ज्यादातर पर कोई निगरानी नहीं थी। जस्टिस एएस ओका ने इसे गंभीर लापरवाही बताते हुए कहा कि जिम्मेदार केवल 23 चेक पॉइंट्स तक सीमित ही क्यों रहे है।
अधिकारियों पर कार्रवाई का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने सीएक्यूएम को आदेश दिया कि वह अधिनियम की धारा 14 के तहत अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करें। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि GRAP-IV के तहत लगे प्रतिबंधों को हटाने या चरण 3 या 2 में लाने का निर्णय तभी होगा जब वायु गुणवत्ता में लगातार सुधार दिखेगा।
मजदूरों को मिलेगी आर्थिक सहायता
दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए निर्माण गतिविधियों पर लगाई गई रोक के कारण लाखों मजदूरों के सामने रोजगार की समस्या खड़ी हो गई है। इसे ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को श्रमिक उपकर (labour cess) से जमा की गई राशि का उपयोग करते हुए मजदूरों को आर्थिक सहायता देने का निर्देश दिया।
ट्रक ड्राइवरों को ही नहीं है प्रतिबंध की जानकारी
मामले में कोर्ट की सहायता कर रहीं अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने बताया कि ज्यादातर ट्रक ड्राइवरों को प्रतिबंधों की जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा, "ट्रकों के ड्राइवर्स को यह भी नहीं पता होता कि उन्हें दिल्ली में प्रवेश नहीं करना है।" अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायणन ने सुझाव दिया कि ट्रकों को केवल दिल्ली की सीमा पर रोकने के बजाय यह प्रतिबंध एनसीआर के सभी 28 जिलों में लागू होना चाहिए। उनका मानना है कि यदि प्रतिबंध को पूरे एनसीआर क्षेत्र में लागू नहीं किया गया, तो यह पूरी तरह से कारगर नहीं होगा।
सीएक्यूएम को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने सीएक्यूएम को निर्देश दिया कि वह 20 से 24 नवंबर तक AQI के आंकड़ों की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करे। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक वायु गुणवत्ता में संतोषजनक सुधार नहीं होता, GRAP-IV के तहत लगाए गए प्रतिबंध जारी रहेंगे।
कोर्ट ने दिए यह निर्देश
1. सीएक्यूएम अधिनियम की धारा 14 के तहत लापरवाही करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी।
2. सभी राज्यों को निर्माण मजदूरों की सहायता के लिए श्रम उपकर निधि (labour cess fund) का उपयोग करने का आदेश दिया गया।
3. GRAP-IV के प्रतिबंध हटाने के लिए संतोषजनक AQI डेटा प्रस्तुत करना अनिवार्य।
4. सीएक्यूएम को प्रतिबंध को प्रभावी बनाने के लिए एनसीआर के सभी जिलों में लागू करने पर विचार करने का निर्देश।
दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख साफ हवा की स्थित को सुधारने के लिए जरूरी कदम हैं। लेकिन जनता के स्वास्थ्य से जुड़े इतनी जरुरी मुद्दे पर अधिकारियों की लापरवाही और सुस्त रवैया जरूर चिंता का विषय है।
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