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सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के रिटायर्ड जजों की पेंशन को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सभी रिटायर्ड जजों को उनके पद या सेवा की अवधि के बावजूद समान पेंशन मिलेगी। यह आदेश न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संवैधानिक गरिमा को बनाए रखने के लिए अहम माना जा रहा है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस के विनोद चंद्रन शामिल थे, ने कहा कि सभी रिटायर्ड न्यायाधीशों को न्यूनतम 13.65 लाख रुपये प्रति वर्ष की पेंशन दी जानी चाहिए चाहे जज की प्रारंभिक नियुक्ति जिला न्यायपालिका से हुई हो या वकील से।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह उच्च न्यायालयों के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों को सालाना 15 लाख रुपये की पेंशन दे। साथ ही सभी न्यायाधीशों के लिए ‘वन रैंक, वन पेंशन’ के नियम का पालन किया जाना चाहिए, ताकि पेंशन में किसी प्रकार का भेदभाव न हो।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए न्यायाधीशों को वेतन के साथ-साथ टर्मिनल लाभ (Terminal Benefits) भी दिए जाने चाहिए। इस फैसले में अतिरिक्त न्यायाधीशों (Additional Judges) को भी मुख्य न्यायाधीशों (Chief Justices) के समान अधिकार दिए गए हैं।
पूर्व रिटायर्ड जजों ने लगाई थी याचिका
इस मामले में कई पूर्व रिटायर्ड जजों ने भी याचिकाएं दायर की थीं, जिन पर सुप्रीम कोर्ट ने विचार किया। उच्चतम कोर्ट ने कहा कि रिटायर्ड जजों के बीच पेंशन या दूसरे भत्तों लेकर किसी भी तरह का कोई भेदभाव संविधान के आर्टिकल 14 के तहत गैरकानूनी होगा।
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न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए जरूरी है समान पेंशन
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संवैधानिक पदों की गरिमा बनाए रखने के लिए सभी उच्च न्यायालय के जजों को समान पेंशन मिलनी चाहिए। यह फैसला न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए अहम है।