सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने संसदों और विधायकों के खिलाफ मुकदमों को लेकर एक अहम आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें संबंधित हाईकोर्ट की इजाजत के बिना केस वापस नहीं ले सकेंगी। सासंदों/ विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल न करने पर केंद्र सरकार (Central Government) से सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई।
राज्य सरकारें वापस लेना चाहती हैं केस
सुप्रीम कोर्ट ने ये बड़ा कदम एमिक्स क्यूरी विजय हंसारिया की रिपोर्ट पर उठाया। इसके मुताबिक- यूपी सरकार मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी बीजेपी विधायकों के खिलाफ 76 मामले वापस लेना चाहती है। कर्नाटक सरकार विधायकों के खिलाफ 61 मामलों को वापस लेना चाहती है। उतराखंड और महाराष्ट्र सरकार भी इसी तरह केस वापस लेना चाहती हैं। एमिकस क्यूरी ने सुझाव दिया कि बिना हाईकोर्ट की इजाजत के विधायकों और सांसदों के केस वापस न लिया जाए।
स्पेशल बेंच का गठन करेगा सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी हाईकोर्ट के रजिस्टार जरनल अपने चीफ जस्टिस को सांसद और विधायकों के खिलाफ लंबित, निपटारे की जानकारी दें। सीबीआई कोर्ट (CBI Court) और अन्य कोर्ट सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों की सुनवाई जारी रखें। सासंदों/ विधायकों के खिलाफ आपराधिक ट्रायल के जल्द निपटारे की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट स्पेशल बेंच का गठन करेगा।
MP के 41 प्रतिशत विधायकों पर केस
2018 के चुनावी हलफनामें में बीजेपी, कांग्रेस, बसपा, सपा और निर्दलीय विधायकों पर आपराधिक केस दर्ज थे। बीजेपी के बड़े नेताओं की बात करें तो विधायक गौरीशंकर बिसेन, मोहन यादव (मंत्री) कमल पटेल (मंत्री) ओमप्रकाश सखलेचा (मंत्री) पूर्व विधायक पारस जैन, विधायक राजेंद्र शुक्ल, विधायक रामेश्वर शर्मा, विधायक संजय पाठक, विधायक सुरेंद्र पटवा, ऊषा ठाकुर (मंत्री) पर आपराधिक मामले दर्ज थे। कांग्रेस के बड़े नेताओं में जीतू पटवारी, बाला बच्चन, जयवर्धन सिंह, कमलेश्वर पटेल, कुणाल चौधरी, लाखन सिंह यादव, नर्मदा प्रसाद प्रजापति, पीसी शर्मा, सुखदेव पांसे, विक्रम सिंह नातीराजा पर भी आपराधिक मामले दर्ज थे। (नोट- इनमें से कितने विधायकों के मामले वापस लिए गए हैं इसकी स्थिति फिलहाल स्पष्ट नहीं है।)