Geneva. 'मीठा है पर चीनी नहीं' इस तरह के विज्ञापनों के साथ मिलने वाले डाइट सोडा और अन्य नान-शुगर मीठे उत्पादों को लेकर चिंताजनक बात सामने आई है। कैंसर पर शोध करने वाली WHO की संस्था आईएआरसी (International Agency for Research on Cancer) का कहना है कि इन उत्पादों में प्रयोग होने वाला आर्टिफिशियल स्वीटनर एस्पार्टेम कैंसर का कारण बन सकता है। जल्द ही इसे कैंसरकारक के रूप में सूचीबद्ध किया जा सकता है।
चुइंगम से लेकर कई उत्पादों में मिठास के लिए रसायनों का हो रहा प्रयोग
डायबिटीज के मरीजों और सेहत को लेकर सतर्क रहने वाले बहुत से लोग आर्टिफिशियल स्वीटनर का प्रयोग करते हैं। ये कुछ ऐसे रसायन होते हैं, जिनमें मिठास तो होती है, लेकिन इनसे ग्लूकोज नहीं बनता है। इससे शुगर लेवल पर फर्क नहीं पड़ता है। इसी खूबी के नाम पर कई कंपनियां डाइट सोडा भी बेचती हैं, जिनमें मिठास के लिए इसी तरह के रसायनों का प्रयोग किया जाता है। चुइंगम से लेकर कई अन्य मीठे उत्पादों में भी इनका प्रयोग किया जाता है। एस्पार्टेम सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाले आर्टिफिशयल स्वीटनर में से है।
1,300 अध्ययनों का विश्लेषण, नतीजे गोपनीय रखे
विभिन्न खबरों के मुताबिक, इंटरनेशनल एजेंसी फार रिसर्च आन कैंसर (IARC) जुलाई में एस्पार्टेम को कैंसर का कारण बनने वाले संभावित तत्वों की सूची में डाल सकता है। IARC का कहना है कि उसने 1,300 अध्ययनों का विश्लेषण किया है। नतीजों को अभी गोपनीय रखा जा रहा है।
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नतीजों को सार्वजनिक करने से सतर्कता बरती जा रही
IARC के प्रवक्ता का कहना है कि अभी नतीजे शुरुआती चरण के हैं। नतीजों को सार्वजनिक करने से पहले इसलिए सतर्कता बरती जा रही है, क्योंकि 2015 में ग्लाइफोजेट को लेकर IARC का ऐसा दावा मुकदमे में उलझ गया था। आर्टिफिशियल स्वीटनर का प्रयोग करने वाली कंपनियां ऐसी रिपोर्ट को गलत बता रही हैं। इंटरनेशनल स्वीटनर एसोसिएशन के महासचिव फ्रांसेस हंट वुड ने रिपोर्ट को खारिज किया है। उन्होंने कहा, 'IARC खाद्य सुरक्षा से जुड़ी संस्था नहीं है। एस्पार्टेम को लेकर उसका दावा भी कई ऐसे शोध पर आधारित है, जिन्हें प्रमाणिक नहीं माना जा सकता है।'
अब तक बताया जाता रहा है सुरक्षित
1981 में WHO और फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन की विशेषज्ञ समिति ने एस्पार्टेम के सीमित प्रयोग को सुरक्षित बताया था। उसके अनुसार, स्वस्थ वयस्क को रोजाना 12 से 36 केन डाइट सोडा पीने पर ही खतरा है। अब IARC का यह कदम कई तरह से सवालों में आ रहा है। IARC का कहना है कि सूची में एस्पार्टेम को शामिल करने से इस दिशा में शोध को बढ़ावा मिलेगा, वहीं खाद्य संगठनों ने चिंता जताई है कि अंतिम नतीजे पर पहुंचने से इस तरह का कदम भ्रम बढ़ाएगा और लोगों में अनावश्यक अफरा-तफरी मचेगी।