Jaipur. राजेश्वर प्रसाद विधुड़ी, इस नाम को शायद देश में कोई नहीं जानता लेकिन यदि राजेश पायलट कहा जाए देश के अनेक लोग और खासकर राजस्थान के लोग इस नाम को बखूबी जानते हैं। वायुसेना में पायलट रहे राजेश पायलट का राजनैतिक जीवन महज 20 साल का था। हंसमुख और विरोधियों को भी अपने अंदाज और वाकपटुता से कायल करने वाले राजेश पायलट पर इतने छोटे राजनैतिक जीवन में शायद ही कोई दाग लगा हो। लेकिन अब साल 1966 में मिजोरम की राजधानी आइजॉल पर बमबारी के लिए उन पर आरोप लगाए जा रहे हैं, वह भी उनकी मौत के 23 साल बाद। उनके बेटे सचिन पायलट के साथ-साथ पूरी कांग्रेस इन आरोपों पर पलटवार कर रही है, लेकिन आरोप लगाने वाले बीजेपी आईटी सेल के चीफ अमित मालवीय अब भी अपने दावे पर अडिग हैं।
आखिर क्यों उठा यह मुद्दा?
दरअसल मणिपुर हिंसा को लेकर विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा पर जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने साल 1966 में मिजोरम में हुई घटना का जिक्र किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि कांग्रेस तो वह पाटभर्् है जिसकी सरकार ने 5 मार्च 1966 को मिजोरम में वायुसेना से बमबारी करवाई थी। हालांकि पीएम मोदी ने किसी भी पायलट के नाम का जिक्र नहीं किया था। लेकिन सोशल मीडिया पर यह खबरें वायरल होने लगीं कि बमबारी में शामिल वायुसेना के जेट्स को सुरेश कलमाड़ी और राजेश पायलट नाम के पायलट चला रहे थे। इन खबरों को बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने भी आगे बढ़ाया। राजेश पायलट के बेटे सचिन पायलट ने आरोपों का खंडन किया और बकायदा अपने पिता का नियुक्ति पत्र भी पोस्ट किया, जिसमें तारीख अक्टूबर 1966 की है।
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अमित मालवीय दावे पर अडिग
इधर अमित मालवीय अब भी अपने दावे पर अडिग हैं, उनका कहना है कि उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता द्वारा सितंबर 2011 में लिखे गए लेख के आधार पर यह आरोप लगाया है। लेख में उन्होंने मिजोरम विद्रोह के दौरान बमबारी करने में सुरेश कलमाड़ी और राजेश पायलट के शामिल होने की बात लिखी थी। यह लेख अब तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छप चुका है। वहीं राजेश पायलट से जुड़े अनेक प्रबुद्ध लोग इस आरोप का खंडन कर रहे हैं। उनका कहना है कि सचिन पायलट सही कह रहे हैं, राजेश पायलट ने मिजोरम की घटना के कई माह बाद वायुसेना ज्वाइन की थी।
इंदिरा गांधी ने बदला था नाम
1971 की जंग में पूर्वी पाकिस्तान में वीरता और पराक्रम दिखाने में राजेश पायलट का नाम शुमार होता है। उन्हें इसके लिए प्रमोशन भी मिला था। इसके बाद उनकी दोस्ती राजीव गांधी से हो गई थी, जो खुद भी एक पायलट थे। इसी बीच राजेश पायलट ने इंदिरा गांधी से राजनीति में आने की इच्छा जताई थी। आपातकाल के बाद जब इंदिरा गांधी विपक्ष में थीं और 1980 में मध्यावधि चुनाव होने वाले थे, तब उन्होंने राजेश पायलट से एयरफोर्स से इस्तीफा देने कह दिया। पहले उन्हें चौधरी चरण सिंह के खिलाफ मैदान में उतारने की योजना थी, बाद में उन्हें भरतपुर से टिकट दिया गया। इस दौरान इंदिरा गांधी ने उन्हें राजेश पायलट नाम से जनता के बीच जाने कहा। इसके बाद से उनके पूरे परिवार का सरनेम ही पायलट हो गया।
लगातार जीते चुनाव
राजेश पायलट 1980 के बाद 1984, 1991, 1996 और 1999 में सांसद चुने गए। उन्हें इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव ने अपने मंत्रिमंडल में शामिल भी किया। उन्होंने सीताराम केसरी के खिलाफ राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव भी लड़ा था। इसके बाद साल 2000 में दौसा के पास सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। अब 23 साल बाद 2023 में उन पर यह आरोप लग रहा है। जबकि 20 साल के राजनैतिक जीवन में विपक्षियों ने भी कभी राजेश पायलट पर उंगली नहीं उठाई थी।