सिंधु सभ्यता के समाप्त होने के पीछे का राज, आसमान से लाखों लोगों पर गिरा था 'मौत का गोला'

author-image
Pooja Kumari
एडिट
New Update
सिंधु सभ्यता के समाप्त होने के पीछे का राज, आसमान से लाखों लोगों पर गिरा था 'मौत का गोला'

BHOPAL. विशाल उल्का पिंडों के धरती पर गिरने से जीव-जंतुओं और वनस्पतियों के विलुप्त होने के वैज्ञानिक प्रमाण तो बहुत मिले हैं, लेकिन क्या कभी मानव सभ्यता भी उल्का पिंड गिरने से खत्म हुई है? वैज्ञानिकों के मुताबिक जल्द इस सवाल का जवाब भी मिल जाएगा। वर्तमान में हमारे वैज्ञानिक गुजरात के कच्छ में एक विशाल गड्ढे के सैंपल की स्टडी कर रहे हैं, जो उल्का पिंड गिरने के वजह से बना है। काफी संघर्ष के बाद केरल यूनिवर्सिटी के जूलॉजी डिपार्टमेंट के रिसर्चरों को इसका खजाना निल गया है। बता दें कि विज्ञान की भाषा में उसे मेल्ट-रॉक यानी पिघला हुआ चट्टान कहते हैं जो कि उल्कापिंड का हिस्सा होता है। यह किसी उल्कापिंड गिरने से बनता है। ये मेल्ट-रॉक मिला है कच्छ स्थित लूना नाम के एक छोटे से इलाके में।

क्या उल्कापिंड गिरने से मानव सभ्यता की समाप्ति हुई?

मेल्ट-रॉक की कॉर्बनडेटिंग से पता चला है कि वो उल्कापिंड करीब 6,900 वर्ष पहले गिरा था। मोटे तौर पर उसी दौरान जब उस इलाके में सिंधु घाटी सभ्यता फल-फूल रही थी। अब रिसर्चरों और तमाम अकादमिक विशेषज्ञों के सामने ज्वलंत प्रश्न ये है कि क्या उस उल्कापिंड का सिंधु घाटी सभ्यता पर कोई असर पड़ा था। केरल यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रफेसर रजिन कुमार के. एस. बताते हैं, 'उल्कापिंड जिस जगह गिरी थी वह लूना है लेकिन मशहूर सिंधु घाटी सभ्यता स्थल धोलावीरा (जहां खुदाई में सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष मिले) उससे करीब 200 किलोमीटर ही दूर है। लूना में 2 किलोमीटर लंबा क्रेटर है और जो उल्कापिंड यहां गिरा होगा उसका आकार 200-400 मीटर रहा होगा।' उन्होंने ये भी बताया कि हम उल्कापिंड गिरने की वजह से वनस्पतियों और जानवरों के विलुप्त होने की हमेशा चर्चा करते हैं। लेकिन क्या कभी मानव सभ्यता पर इसका असर पड़ा, यह अभी तक साफ नहीं है। इसलिए, यह उस दिशा में अध्ययन है कि क्या कोई मानव सभ्यता संभवतः उल्कापिंड गिरने की वजह से नष्ट हुई।'

भारत में अब तक 4 उल्कापिंडों के गिरने के प्रमाण हैं

बता दें कि उल्कापिंड आग के गोले की तरह होते हैं। उनके गिरने के कारण आस-पास की सभी चीजें पिघल जाती हैं और उसके बाद मेल्ट-रॉक बनते हैं। जानकारी के मुताबिक लूना से लिए गए सैंपल में वुस्टाइट, किरस्टेइनाइट, उल्वोस्पिनेल और हर्सिनाइट जैसे उच्च-तापमान वाले खनिज मौजूद हैं। बताया जा रहा है कि लूना में मिला विशाल गड्ढा उल्कापिंडों के गिरने से बने क्रेटर के भारत में मिलने का चौथा मामला है। इतना ही नहीं, लूना में जो उल्कापिंड गिरा था, वह समयावधि के हिसाब भारत में गिरने वाले उल्कापिंडों में सबसे युवा है। यानी अब तक जो 4 उल्कापिंडों के गिरने के प्रमाण हैं, उनमें यह सबसे आखिर में गिरा होगा।

साजिन कुमार ने दी जानकारी

उल्कापिंड से बने क्रेटर यानी विशाल गड्ढे उसके आकार से 10-20 गुना से भी ज्यादा बड़े होते हैं। केरल यूनिवर्सिटी की टीम ने 1 मीटर का गड्ढा खोदा था और उन्हें करी 10 सेंटीमीटर की ही गहराई में सैंपल मिल गए थे। साजिन कुमार का कहना है कि 'यह सिंधु नदी का एक ऐक्टिव स्ट्रेच है। इसलिए इस इलाके में कई नदियों से बहकर गाद आती है। उन्होंने ये भी बताया कि 'इस इलाके में सैंपल लेने के लिए हम 4 बार गए। दलदली भूमि होने के कारण सैंपल इकट्ठा करना बहुत मुश्किल है। लेकिन जुलाई 2022 में हम खुशकिस्मत रहे। हमें जांच के लिए सूखा सैंपल मिल गया।'


Indus Valley Civilization End of Indus Valley Civilization Huge Meteorite Story behind the end of Indus Valley Civilization सिंधु सभ्यता सिंधु सभ्यता की समाप्ति विशाल उल्का पिंड सिंधु सभ्यता खत्म होने के पीछे की कहानी