देश में हो सकती है 9 महीने की मैटरनिटी लीव, नीति आयोग ने दी ये अहम सलाह, जानिए क्या है इसके पीछे की वजह?

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Neha Thakur
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देश में हो सकती है 9 महीने की मैटरनिटी लीव, नीति आयोग ने दी ये अहम सलाह, जानिए क्या है इसके पीछे की वजह?

DELHI. देशभर की कामकाजी महिलाओं के लिख खुशखबरी है। दरअसल, नीति आयोग के सदस्य पीके पॉल ने मैटरनिटी लीव को 6 महीने 9 महीने करने का सुझाव दिया है। पॉल ने कहा- प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर को महिला कर्मचारियों के लिए मैटरनिटी लीव की अवधि को बढ़ाने पर विचार करना चाहिए। आपको बता दें कि मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक, 2016 और 2017 में संसद में पारित किया गया था। इसमें पहले 12 हफ्ते के सैलरीड मैटरनिटी लीव को बढ़ाकर 26 हफ्ते कर दिया गया था।



ग्लोबल लेवल पर केयर इकोनॉमी एक अहम क्षेत्र



FLO अध्यक्ष सुधा शिवकुमार ने कहा- ग्लोबल लेवल पर केयर इकोनॉमी एक अहम क्षेत्र है। हमें प्राइवेट और सरकारी क्षेत्रों को मातृत्व अवकाश को मौजूदा 6 महीने से बढ़ाकर 9 महीने करने को लेकर साथ बैठकर विचार करना चाहिए। यह क्षेत्र फाइनेंशियल डेवलपमेंट, आर्थिक विकास, जेंडर इक्वैलिटी और वुमन एम्पॉवरमेंट को बढ़ावा देता है। देखभाल का काम आर्थिक रूप से मूल्यवान है, लेकिन ग्लोबल लेवल पर इसे कम आंका गया है। शिवकुमार ने कहा कि भारत में बड़ी खामी है कि हमारे पास केयर इकोनॉमी से जुड़े श्रमिकों की ठीक से पहचान करने का कोई सिस्टम नहीं है। अन्य देशों की तुलना में केयर इकोनॉमी पर भारत का सार्वजनिक खर्च बहुत कम है।



बच्चों की परवरिश के लिए खुलें क्रैच-पॉल 



बयान के अनुसार, पॉल ने कहा कि प्राइवेट क्षेत्र को बच्चों की बेहतर परवरिश सुनिश्चित करने के लिए और अधिक क्रैच (शिशु गृह) खोलने चाहिए और उनकी एवं जरूरतमंद बुजुर्गों की समग्र देखभाल की व्यवस्था तैयार करने के आवश्यक कार्य में नीति आयोग की मदद करनी चाहिए। पॉल ने कहा- चूंकि भविष्य में लाखों देखभाल कर्मियों की आवश्यकता होगी, इसलिए हमें व्यवस्थित सॉफ्ट और हार्ड स्किलिंग ट्रेनिंग विकसित करना होगा।



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बढ़ रहा केयर टेकिंग क्षेत्र



FLO अध्यक्ष सुधा शिवकुमार ने कहा कि वैश्विक स्तर पर देखभाल की अर्थव्यवस्था एक अहम क्षेत्र है, जिसमें देखभाल करने और घरेलू कार्य करने वालों को बेहतर रोजगार मिलेगा। यह क्षेत्र आर्थिक विकास, लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देता है। देखभाल का काम आर्थिक रूप से मूल्यवान है लेकिन विश्व स्तर पर इसका मूल्यांकन नहीं किया गया है। शिवकुमार ने कहा कि भारत में एक बड़ी खामी है कि हमारे पास देखभाल अर्थव्यवस्था से जुड़े श्रमिकों की ठीक से पहचान करने की कोई प्रणाली नहीं है और अन्य देशों की तुलना में देखभाल अर्थव्यवस्था पर भारत का सार्वजनिक खर्च बहुत कम है।

 


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