अजय बोकिल, BHOPAL. हाल में हिंदी पट्टी के मप्र सहित तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की बंपर जीत के बाद इन सूबों के तीन दिग्गज नेताओं की सत्ता से विदाई एक तरह से भाजपा के अघोषित कामराज प्लान का क्रियान्वयन है। पार्टी क्षत्रप बन चुके इन धुरंधर नेताओं का क्या करेगी, यह अभी भी साफ नहीं है। छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें नया विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है, लेकिन मप्र में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह और राजस्थान में वसुंधरा राजे के राजनीतिक भविष्य को लेकर अभी भी धुंधलका ही है। हालांकि, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यह कहकर दिलासा जरूर दी है कि शिवराज और वसुंधरा पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं, उनके अनुभव का लाभ लिया जाएगा, लेकिन उन्हें क्या और किस स्तर का काम सौंपा जाएगा, यह अभी भी रहस्य ही है। इस बीच शिवराज लाड़ली बहनों के बीच आंसू बहाते तो वसुंधरा फीकी मुस्कान के साथ राज्य में सत्ता का हस्तांतरण होते देखती दिखीं।
आडवानी, जोशी और सिन्हा जैसे दिग्गज पहले भी हुए दरकिनार
वैसे भाजपा में इस तरह बुजुर्ग नेताओं को दरकिनार करने का यह पहला मामला नहीं है। 2014 में भाजपा में मोदी युग की शुरुआत के साथ ही पार्टी के वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी के साथ-साथ मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा जैसे दिग्गज नेताओं के टिकट काटकर संदेश दे दिया गया था कि उनकी राजनीतिक पारी अब खत्म हो चुकी है। मोदी के सत्तासीन होने के बाद सांत्वना के लिए आडवाणी और उन जैसे करीब आधा दर्जन नेताओं का एक मार्गदर्शक मंडल बनाने का ऐलान भी किया गया था, लेकिन उस ‘मंडल’ को ‘मार्गदर्शन’ देने का कभी मौका नहीं मिला। शुरूआती बेचैनी के बाद इनमें से ज्यादातर उनसे कभी कभार मिलने आने वाले पार्टी नेताओं आशीर्वाद देने में लग गए तो यशवंत सिन्हा ने ममता बैनर्जी की टीएमसी जॉइन कर ली। बाद में राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में आखिरी हार अपने खाते में लिखवाई। इसके बाद भाजपा के कुछ और वरिष्ठ नेताओं को अलग अलग तरीके से मुख्य धारा की राजनीति से बाहर किया गया। कुछ के हिस्से में राज्यपाली आई तो कुछ को घर बिठा दिया गया।
भाजपा का अघोषित कामराज प्लान...
इस लिहाज से भाजपा में ‘कम्पलसरी रिटायरमेंट’ का तीसरा चरण है। कुछ लोग इसे भाजपा का अघोषित कामराज प्लान मान रहे हैं, हालांकि यह कांग्रेस के कामराज प्लान से काफी अलग है। साठ साल पहले लागू कांग्रेस के कामराज प्लान के मूल में बुजुर्ग नेताओं का स्वैच्छिक पद त्याग था। भाजपा में यह त्याग किया नहीं, करवाया जा रहा है। दरअसल कामराज प्लान उस वक्त तमिलनाडु के दिग्गज कांग्रेस नेता के. कामराज के दिमाग की उपज था। कामराज तमिलनाडु ( उस वक्त के मद्रास) राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रहे थे। उन्ही दिनों कांग्रेस में पीढ़ी परिवर्तन को लेकर भी मंथन चल रहा था। कामराज ने सीएम रहते हुए अचानक 2 अक्टूबर 1963 को गांधी जयंती पर अपने पद से इस्तीफे का ऐलान कर दिया। साथ ही उन्होंने इस बात की ओर इशारा भी किया कि कांग्रेस अपना जोश खोती जा रही है। इस इस्तीफे के बाद कामराज को कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। तब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को सुझाव दिया कि नए खून को अवसर देने के लिए सभी कांग्रेस शासित राज्यों के बुजुर्ग मुख्यमंत्री और केन्द्रीय मंत्रिमंडल के मंत्री अपने पदों से इस्तीफा दें, ताकि कांग्रेस को नए सिरे से ऊर्जावान बनाया जा सके, युवा चेहरों को आगे लाया जा सके। यही सुझाव कामराज प्लान कहलाया। इस प्लान पर अमल करते हुए नेहरू मंत्रिमंडल के सात मंत्रियों और छह राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपने पदों से इस्तीफे दे दिए ( यह प्लान खुद नेहरू पर लागू नहीं था)।
पहले ही बन चुका था शिवराज, वसुंधरा और रमन सिंह को पेवेलियन भेजने का प्लान
यह बात अलग है कि इस योजना पर अमल के कुछ समय बाद ही नेहरूजी का देहांत हो गया और इस्तीफे देने वाले अधिकांश मंत्री फिर मुख्य धारा में लौट आए। जहां तक भाजपा की बात है तो उसकी कामराज योजना और सोशल इंजीनियरिंग अलग तरह से चलती है। इसमें भाजपा की मातृ संस्था आरएसएस का भी बड़ा हाथ होता है, जो देश की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का लगातार अवलोकन और समीक्षा करती रहती है और उसी हिसाब से भाजपा की गाड़ी आगे बढ़ती है। बताया जाता है कि मप्र, छग और राजस्थान में दो दशकों से सत्ता की धुरी रहे शिवराज, वसुंधरा और रमन सिंह को पेवेलियन में भेजने का प्लान पहले ही बन चुका था। उस पर अमल अब हुआ है। मप्र कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के सहारे 2020 में पिछले दरवाजे से सत्ता में लौटी भाजपा के चौथी बार मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज को कमान संघ के वरदहस्त के कारण सौंपी गई थी। इस पारी में उन्होंने इमोशनल पॉलिटिक्स की नई इबारत लिखी। लाड़ली बहना योजना उनका मास्टर स्ट्रोक था, जिसने भाजपा की सत्ता में वापसी कराने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन इसी के साथ जीत में शिवराज के योगदान को नकारने का सिलसिला शुरू हो गया। उसी से साफ हो गया था कि शिवराज अब ‘भाजपाई कामराज प्लान’ के निशाने पर हैं। अलबत्ता तत्कालीन कांग्रेस के कामराज प्लान और भाजपा के अघोषित कामराज प्लान में बुनियादी फर्क यह है कि यहां दरकिनार नेताओं की मुख्य धारा में वापसी अपवाद स्वरूप ही होती है। अलबत्ता क्षत्रपों को इस तरह वृद्धाश्रम का रास्ता दिखाकर भाजपा ने बड़ा राजनीतिक जोखिम भी उठाया है, लेकिन यह जोखिम उठाने का साहस पार्टी के आत्म विश्वास को भी रेखांकित करता है।
...तब सामने आया कामराज प्लान
कामराज प्लान, साल 1962 में चीन से युद्ध हारने के बाद सामने आया। इसके बाद कांग्रेस चार लोकसभा उपचुनाव हार गई थी। तत्पश्चात पहली बार समाजवादियों और जनसंघ ने हाथ मिलाया था और लोहिया ने गैर कांग्रेसवाद का मारा बुलंद किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का ग्राफ तेजी से गिर रहा था।