BHOPAL. गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः। आज गुरु पूर्णिमा है। आज का दिन गुरु को समर्पित है। कहते हैं गुरु बिन ज्ञान कहां। अगर आपको ज्ञान की प्राप्ति करनी है तो गुरु की शरण में जाना ही होगा। गुरु आपको सच्ची राह दिखाते हैं। गुरु पूर्णिमा पर हम आपको बता रहे हैं मध्यप्रदेश के उन गुरु के बारे में जो देश-दुनिया में छा गए।
आचार्य रजनीश
ओशो रजनीश का जन्म 11 दिसम्बर, 1931 को कुचवाड़ा गांव, बरेली तहसील, जिला रायसेन, राज्य मध्यप्रदेश में हुआ था। उन्हें जबलपुर में 21 वर्ष की आयु में 21 मार्च 1953 मौलश्री वृक्ष के नीचे संबोधि की प्राप्ति हुई। 19 जनवरी 1990 को पूना स्थित अपने आश्रम में सायं 5 बजे के लगभग अपनी देह त्याग दी। उनका जन्म नाम चंद्रमोहन जैन था। ओशो रजनीश के 3 गुरु थे। मग्गा बाबा, पागल बाबा और मस्तो बाबा। इन तीनों ने ही रजनीश को आध्यात्म की ओर मोड़ा, जिसके चलते उन्हें उनके पिछले जन्म की याद भी आई। अक्टूबर 1985 में अमेरिकी सरकार ने ओशो पर अप्रवास नियमों के उल्लंघन के तहत 35 आरोप लगाए और उन्हें हिरासत में भी ले लिया। उन्हें 4 लाख अमेरिकी डॉलर की पेनल्टी भुगतनी पड़ी साथ ही साथ उन्हें देश छोड़ने और 5 साल तक वापस ना आने की भी सजा हुई। ओशो कहते हैं जीवन एक अवसर है, समग्रता से जीकर इसके पार जाने का। यदि मनुष्य जन्म पाकर हम इस अवसर का सम्यक उपयोग न करे तो दैहिक दुखों से मुक्ति नहीं मिलेगी और इस अनंत ब्रह्मांड के एक छोटे से कण, जिसे हम विराट धरती कहते हैं, इस पर सिमटकर रह जाना पड़ेगा। निर्णय प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में है कि वो पूरे जीवन एक ही कक्षा में पढ़ना चाहता है या आगे बढ़ना चाहता है। ओशो के अनुयायी देश समेत दुनियाभर में थे।
महर्षि महेश योगी
महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास ही स्थित पांडुका गांव में हुआ। उनके पिता का नाम रामप्रसाद श्रीवास्तव था। महर्षि योगी का वास्तवित नाम महेश प्रसाद श्रीवास्तव था। उनके पिता राजस्व विभाग में कार्यरत थे। नौकरी के सिलसिले में उनका तबादला जबलपुर हो गया। लिहाजा पूरा परिवार गोसलपुर में रहने लगा। योगी का प्रारंभिक बचपन यहीं बीता। उन्हें यहां की प्रकृति बहुत पसंद थी। जब एक दिन वे साइकिल से बड़े भाई के घर की तरफ जा रहे थे तभी उनके कानों में सुमधुर प्रवचन सुनाई पड़े। सम्मोहक बोल सुनते ही वे साइकिल को एक तरफ पटक कर वहां खिंचे चले गए। जैसे ही उन्होंने स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती को देखा और सुना तो अपनी सुध-बुध खो बैठे। उसी क्षण उनके मन में वैराग्य जागृत हो गया। उसके बाद योगी फिर कभी घर नहीं गए। उनके लिए पूरा विश्व एक परिवार की तरह हो गया। अपने गुरु स्वामी ब्रहानंद सरस्वती से आध्यात्म साधना ग्रहण कर भावातीत ध्यान की अलख जगाने के लिए महर्षि विश्व भ्रमण पर निकल पड़े। इस दौरान उन्होंने करीब 100 से अधिक देशों की यात्रा की। 1953 में ब्रह्मलीन हुए शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद को जब वाराणसी के दशमेश घाट पर जल समाधि देने लगे तब शोकाकुल गुरुभक्त महेश ने भी गंगा में छलांग लगा दी। फिर काफी मशक्कत के बाद गोताखोरों ने उन्हें किसी तरह बाहर निकाला। पांच फरवरी 2008 को महाशून्य में निलय हुए महर्षि महेश योगी ने कहा- 'मेरे न होने से कुछ नुकसान नहीं होगा। मैं नहीं होकर और भी ज्यादा प्रगाढ़ हो जाऊंगा...' उनके इन शब्दों से महर्षि पहले से अधिक प्रासंगिक और ज्यादा प्रगाढ़ हो गए थे। महर्षि योगी ने भावातीत ध्यान के माध्यम से पूरी दुनिया को वैदिक वांग्मय की संपन्नता की सहज अनुभूति कराई। नालंदा व तक्षशिला के अकादमिक वैभव को साकार करते हुए विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय की सुपरंपरा को गति दी। महर्षि द्वारा प्रणीत भावातीत ध्यान एक विशिष्ठ व अनोखी शैली है, जो चेतना के निरंतर विकास को प्राप्त करने का मार्ग दिखाती है।
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितम्बर 1924 को मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी के दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में पिता धनपति उपाध्याय और मां गिरिजा देवी के यहां हुआ। माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा। 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्राएं शुरू कर दी थीं। इस दौरान वे काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। 1950 में ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दंड संन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे। 1950 में वे दंडी संन्यासी बनाए गए। शंकराचार्य का पद हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है, हिंदुओं का मार्गदर्शन एवं भगवत प्राप्ति के साधन आदि विषयों में हिंदुओं को आदेश देने के विशेष अधिकार शंकराचार्यों को प्राप्त होते हैं। सभी हिंदूओं को शंकराचार्यों के आदेशों का पालन करना चाहिए। गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने अपनी चिंता वर्ष 2003 के माघ मेले में प्रकट की थी। तब उन्होंने लाखों कल्पवासियों के साथ स्वयं भी एक दिन का उपवास किया था। 17 जून 2008 को बदरीनाथ मंदिर प्रांगण में आयोजित अपनी अभिनंदन सभा में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने राष्ट्रव्यापी गंगा सेवा अभियान आरंभ करने की घोषणा की थी। आंदोलन पूरे देश में फैला और अनेक स्थानों पर प्रदर्शन हुए। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने प्रतिनिधिमंडल के साथ 16 अक्टूबर 2008 तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी। उनसे गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के साथ-साथ सहायक नदियों को अविरल और निर्मल बनाने का अनुरोध किया था। नतीजतन 4 नवंबर 2008 को तत्कालीन प्रधानमंत्री ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करते हुए गंगा घाटी प्राधिकरण बनाने की घोषणा की थी।
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री
बागेश्वर धाम सरकार नाम से विख्यात धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री एक कथावाचक हैं। धीरेन्द्र शास्त्री जी मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में पड़ने वाले प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थ स्थल बागेश्वर धाम सरकार के पीठाधीश्वर तथा पुजारी हैं। उनके धाम में देश के कोने -कोने से कई श्रद्धालु उनके दर्शन के लिए छतरपुर जाते हैं और अपनी अर्जी लगाते हैं। धीरेंद्र शास्त्री देशभर में अपने चमत्कार के लिए जाने जाते हैं। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति अपनी अर्जी बागेश्वर धाम में लगाता है बाबा उनकी सभी समस्याओं को एक कागज में लिखकर उसका उपाय बताते हैं। बागेश्वर धाम सरकार धीरेन्द्र शास्त्री का जन्म 4 जुलाई 1996 को मध्यप्रदेश के छतरपुर के गढ़ागंज गांव में हुआ था। इसी जगह पर प्राचीन मंदिर जो हनुमान जी को समर्पित है, बागेश्वर धाम है। गढ़ा गांव धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री का पैतृक गांव है। इनके दादाजी पंडित भगवान दास गर्ग (सेतु लाल) ने चित्रकूट के निर्मोही अखाड़े से दीक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद ही धीरेन्द्र शास्त्री के दादाजी ने बागेश्वर धाम जो कि वर्तमान समय में काफी प्रचलित है, इसका जीर्णोद्धार करवाया था। दादा जी पंडित भगवान दास गर्ग इसी धाम में दरबार लगाया करते थे।
पंडित प्रदीप मिश्रा
पंडित प्रदीप मिश्रा का जन्म 16 जून 1977 को सीहोर में हुआ था। उनका उपनाम रघु राम है। उन्होंने ग्रेजुएशन तक पढ़ाई की है। प्रदीप मिश्रा के पिता का नाम पंडित रामेश्वर दयाल मिश्रा है। पंडित प्रदीप मिश्रा के 2 भाई हैं, जिनका नाम दीपक और विनय मिश्रा है। पंडित प्रदीप मिश्रा के पिता स्वर्गीय रामेश्वर मिश्रा ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। वे चने का ठेला चलाते थे। बाद में उन्होंने चाय की दुकान खोल ली। प्रदीप मिश्रा अपने पिता के काम में उनकी मदद करते थे। उन्होंने बड़ी मुश्किल हालत में अपनी बहन की शादी की थी। पंडित मिश्रा को बचपन से ही भक्ति-भजन में काफी रुचि थी, जिसके चलते वे अपने स्कूल के दिनों में ही भजन-कीर्तन किया करते थे। जब वे बड़े हुए तो सीहोर में ही एक ब्राह्मण परिवार की गीता बाई पराशर नाम की महिला ने उन्हें कथावाचक बनने के लिए प्रेरित किया। गीता बाई पराशर ने उन्हें गुरु दीक्षा के लिए इंदौर भेजा। इसके बाद गुरु श्री विठलेश राय काका जी से उन्होंने दीक्षा लेकर पुराणों का ज्ञान प्राप्त किया। पंडित प्रदीप मिश्रा ने शुरू में शिव मंदिर से कथा वाचन शुरू किया था। सीहोर में पहली बार कथावाचक के रूप में मंच संभाला। पंडित प्रदीप मिश्रा अपने कथा कार्यक्रम में कहते हैं 'हर समस्या का हल, एक लोटा जल'। यही बात लोगों के मन में बैठ गई। इसके बाद लोगों ने पंडित प्रदीप मिश्रा को सुनना शुरू कर दिया। पंडित प्रदीप मिश्रा को 'सीहोर वाले महाराज' के नाम से भी जाना जाता हैं। वे शिवपुराण की कथा करते हैं और भक्तों को उपाय भी बताते हैं जिसके चलते वे प्रसिद्ध हुए। पंडित प्रदीप मिश्रा के यूट्यूब और फेसबुक पर लाखों फॉलोअर हैं।
तरुण सागर महाराज
जैन मुनि तरुण सागर का वास्तविक नाम पवन कुमार जैन था। मध्य प्रदेश के दमोह जिले में रहने वाले प्रताप चंद्र जैन और शांति बाई जैन के घर 26 जून 1967 को पवन कुमार का जन्म हुआ था। बचपन से ही वे दूसरे बच्चों से अलग थे। उनके जैन मुनि बनने की कहानी भी रोचक है। मुनि तरुण सागर को जलेबी खाना बहुत पसंद था। एक दिन बाजार से गुजरते हुए उन्हें एक आवाज सुनाई दी, जो कह रही थी 'तुम भी भगवान बन सकते हो।' ये आवाज आचार्य पुष्पदंत सागर की थी। इन शब्दों का बालक पवन कुमार पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने मात्र 13 साल की उम्र में क्षुल्लक को अपना लिया। क्षुल्लक शब्द जैन धर्म में 2 वस्त्र धारण करने वाले व्रतियों के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके बाद उनका नाम तरुण सागर हुआ। इस मार्ग पर चलते हुए साल 1988 में 20 जुलाई को वे दिगंबर मुनि बने। जहां क्षुल्लक 2 वस्त्रों को पहनते हैं, वहीं दिगंबर साधु कोई वस्त्र धारण नहीं करते और कठोर तप करते हुए जीवन व्यतीत करते हैं। तरुण सागर को प्रगतिशील जैन मुनि माना जाता था। वे हिंसा, भ्रष्टाचार और रूढ़िवाद की अपने प्रवचनों के माध्यम से कड़ी आलोचना करते थे। इस वजह से उनके प्रवचनों को 'कटु प्रवचन' या 'कड़वे वचन' कहा जाता था। साल 2007 में यात्रा के दौरान उनकी तबीयत काफी खराब हो गई, लेकिन उन्होंने तप का मार्ग नहीं छोड़ा। हालांकि, इसके बाद से अपने स्वास्थ्य के कारण उन्हें पैदल चलने में दिक्कत होने लगी, जिस कारण उन्हें डोली में यात्रा करनी पड़ती थी। जैन मुनि अक्सर राजनेताओं से मिलने से बचते हैं, लेकिन मुनि तरुण सागर अक्सर अतिथि के रूप में राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों से मुलाकात करते और उन्हें समाज हित की प्रेरणा देते थे। उन्हें हरियाणा विधानसभा और मध्यप्रदेश विधानसभा में उपदेश देने के लिए निमंत्रण भेजा गया था। 1 सितंबर 2018 को मुनि तरुण सागर महाराज का निधन हो गया।
पंडोखर सरकार
पंडोखर सरकार का जन्म 1983 में लहार के बरहा गांव में हुआ था। वे मूल रूप से भिंड के रहने वाले हैं। 1999 से वे स्वतंत्र रूप से दिव्य दरबार लगाते हैं। हालांकि वे पंडोखर धाम से बचपन में ही जुड़ गए थे। इनका धाम दतिया जिले के भांडेर तहसील के पंडोखर गांव में है। इसकी दूरी दतिया जिला मुख्यालय से 51 किलोमीटर है। धाम में हनुमानजी का मंदिर है। पंडोखर सरकार कहते हैं कि हमारे ऊपर इन्हीं की कृपा है। पंडोखर धाम महाराज सब पंडोखर सरकार के नाम से ही जानते हैं। उनका असली नाम गुरुशरण शर्मा है। उन्होंने कहा है कि मैं 1992 से पंडोखर धाम की गद्दी पर बैठ रहा हूं। मेरे पिताजी यहां बचपन में ही आ गए थे। इसके बाद से मैं यहां हूं। पंडोखर सरकार ने कहा कि मैं कोई चमत्कार नहीं करता हूं। हनुमान जी की कृपा से मैं लोगों की मन की बात पढ़ लेता हूं। साथ ही उपाय बता देता हूं, ये लोगों के लिए फलीभूत होता है। चमत्कार की बात तो तब कहेंगे न, जब किसी ने आकर मुझसे कहा कि मुझे बच्चा नहीं है। आप बच्चा दे दें। ऐसा तो मैं करता नहीं हूं। पंडोखर सरकार अपने दरबार में लोगों की समस्या पर्ची लिखकर बताते हैं। पर्ची कटवाने के लिए लोगों को कुछ शुल्क अदा करना पड़ता है। वहीं, हर प्रकार के लोगों के लिए अलग-अलग शुल्क होते हैं। पंडोखर धाम में इसके लिए कई काउंटर बनाए गए हैं। इनके दरबार में बड़े-बड़े लोग पहुंचते हैं। इनके भक्तों में एमपी सरकार के कई मंत्री भी हैं। इसके साथ ही पुलिस भी कई उलझे केस में पंडोखर सरकार से मदद मांगने पहुंचती है।