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MUMBAI. 16 फरवरी 1944 को हिंदी सिनेमा के पितामह दादा साहब फाल्के का निधन हुआ था। दादा साहब फाल्के 3 मई 1913 में 'राजा हरिश्चंद्र' नाम की पहली भारतीय फीचर फिल्म लेके आए थे। दादा साहेब फाल्के का पूरा नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था। उनकी मौत के बाद दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड की शुरुआत हुई। इस अवॉर्ड को फिल्म इंडस्ट्री का सबसे बड़ा अवार्ड माना जाता है। उनके सम्मान में भारत सरकार ने 1969 में 'दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड' देना शुरू किया। सबसे पहले यह पुरस्कार पाने वाली देविका रानी चौधरी थीं।
पत्नी और बेटे की मदद से बनाई थी पहली फिल्म
दादा साहब ने अपनी पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ बनाई थी। यह एक ब्लैक एंड वाइट और साइलेंट फिल्म थी। इस फिल्म को बनाने में उनकी पत्नी और बेटे ने मदद की। उस समय इस फिल्म को बनाने में उन्हें 15,000 रूपए लगे। दादा साहब ने खुद राजा हरिश्चंद्र का अभिनय किया था। उनकी पत्नी कॉस्ट्यूम का काम संभालती थीं। जबकि बेटा, हरिश्चंद्र के बेटे का रोल प्ले कर रहा था। कहा जाता है कि कोई भी महिला इस फिल्म में काम करने के लिए तैयार नहीं थी, इसलिए दादा साहब की फिल्म में एक पुरुष ने एक महिला का रोल प्ले किया था।
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दादा साहब ने क्यों किया फिल्म बनाने का फैसला
दरअसल दादासाहेब फालके ने अपनी प्रिंटिंग प्रेस शुरू की थी। इसमें वह राजा रवि वर्मा के साथ काम कर रहे थे। उनके साथ वह पहली बार भारत से बाहर गए। दादा साहब और रवि जर्मनी गए। यहां पर उन्होंने पहली बार फिल्म देखी। इन्होंने जो पहली फिल्म देखी उसका नाम था ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’। इस फिल्म को देखने के बाद दादा साहेब ने फैसला किया कि वह भी भारत में जाकर फिल्म बनाएंगे। भारत आकर उन्होंने फिल्म बनाना शुरु की। इस फिल्म को पूरा करने के लिए उन्हें लगभग 6 महीने लग गए।
भारत की पहली फीचर फिल्म
दादा साहेब ने शुरू की वह फिल्म जिसे आज हम भारत की पहली फीचर फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' के नाम से जानते हैं। दादा साहेब अपनी इस फिल्म के सबकुछ थे। उन्होंने इसका निर्माण किया, निर्देशक थे, कॉस्ट्यूम डिजाइन, लाइटमैन और कैमरा डिपार्टमेंट सब कुछ उन्हीं ने देखा। 3 मई 1913 को फिल्म को कोरोनेशन सिनेमा बॉम्बे में रिलीज किया गया। यह भारत की पहली फिल्म थी। राजा हरिश्चंद्र से शुरू हुआ उनका करियर 19 सालों तक चला। राजा हरिश्चंद्र की सफलता के बाद अपने फिल्मी करियर में उन्होंने 95 फिल्म और 26 शॉर्ट फिल्में बनाईं। उनकी सुपरहिट फिल्मों में मोहिनी भस्मासुर (1913), सत्यवान सावित्री (1914), लंका दहन (1917), श्री कृष्ण जन्म (1918) और कालिया मर्दन (1919) शामिल हैं।