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BHOPAL. आज यानी 19 फरवरी को शिवाजी जयंती है। कई विद्वान 1627 तो कई इतिहास 1630 में उनका जन्म मानते हैं। शिवाजी के पिता का नाम शाहजी और मां जीजाबाई थीं। उनका जन्म स्थान पुणे के पास शिवनेरी में हुआ था। शिवाजी का बचपन कष्टों में बीता। उनकी सेना कम थी तो उन्होंने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली यानी छिपकर वार करना विकसित किया। शासन चलाने के लिए अष्टप्रधान (8 मंत्रियों की परिषद) बनाई। अष्टप्रधान का पहला पद पेशवा का था। शिवाजी के बाद (1680 के बाद) पेशवा ही मराठा साम्राज्य के प्रमुख माने जाने लगे। एक बार औरंगजेब ने उन्हें दरबार में बुलाया और कैद कर लिया था। शिवाजी चकमा देकर बड़े से टोकरे में छिपकर बाहर निकल गए थे। शिवाजी ने हैंदव धर्मोद्धारक की उपाधि धारण की थी। आज हम आपको शिवाजी के बारे में बता रहे हैं...
बचपन में संस्कार मिले
शिवाजी का बचपन उनकी मां जीजाबाई के मार्गदर्शन में बीता। जीजाबाई धार्मिक स्वभाव वाली होते हुए भी वीरांगना नारी थीं। इसी कारण उन्होंने बालक शिवा का लालन-पालन रामायण, महाभारत की उज्ज्वल कहानियां सुना और शिक्षा देकर किया था। दादाजी कोंडदेव के संरक्षण में उन्हें सभी तरह की सामयिक युद्ध आदि विधाओं में भी निपुण बनाया था। धर्म, संस्कृति और राजनीति की भी उचित शिक्षा दिलवाई थी। उस युग में परम संत रामदेव के संपर्क में आने से शिवाजी पूर्णतया राष्ट्रप्रेमी, कर्त्तव्यपरायण और कर्मठ योद्धा बन गए।
मुस्लिम विरोधी नहीं थे
शिवाजी पर मुस्लिम विरोधी होने का दोषारोपण किया जाता रहा है, पर यह सच नहीं है। उनकी सेना में तो कई मुस्लिम नायक और सेनानी थे ही, अनेक मुस्लिम सरदार और सूबेदारों जैसे लोग भी थे। वास्तव में शिवाजी का सारा संघर्ष उस कट्टरता और उद्दंडता के विरुद्ध था, जिसे औरंगजेब जैसे शासकों और उसकी छत्रछाया में पलने वाले लोगों ने अपना रखा था।
बचपन में खेल-खेल में सीखा किला जीतना
बचपन में शिवाजी अपनी उम्र के बच्चों इकट्ठे कर उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे। युवावस्था में आते ही उनका खेल वास्तविक कर्म शत्रु बनकर शत्रुओं पर आक्रमण कर उनके किले आदि भी जीतने लगे। जैसे ही शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर अपना अधिकार जमाया, वैसे ही उनके नाम और कर्म की सारे दक्षिण में धूम मच गई, ये खबर आग की तरह आगरा और दिल्ली तक जा पहुंची।
विवाह और राज्याभिषेक
छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह 14 मई 1640 में सइबाई निम्बालकर के साथ लाल महल, पूना में हुआ था। उनके बेटे का नाम संभाजी था। संभाजी (14 मई 1657–11 मार्च 1689) शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र और उत्तराधिकारी थे, जिसने 1680 से 1689 ई. तक राज्य किया। संभाजी में अपने पिता की कर्मठता और दृढ़ संकल्प का अभाव था। संभाजी की पत्नी का नाम येसुबाई था। संभाजी के उत्तराधिकारी राजाराम थे। शिवाजी का राज्याभिषेक 1674 में हुआ। महाराष्ट्र के पंडितों ने उनका राज्याभिषेक करने से मना कर दिया था, इसलिए बनारस से गंगा भट्ट को बुलवाया गया।
बीजापुर के सेनापति को बघनखे से मारा
शिवाजी के बढ़ते शौर्य से आतंकित बीजापुर का शासक आदिलशाह जब शिवाजी को बंदी ना बना सका तो उन्होंने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया। पता चलने पर शिवाजी आगबबूला हो गए। उन्होंने नीति और साहस का सहारा लेकर छापामारी कर जल्द ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया। तब बीजापुर के शासक ने शिवाजी को जीवित अथवा मुर्दा पकड़ लाने का आदेश देकर अपने मक्कार सेनापति अफजल खां को भेजा। उसने भाईचारे और सुलह का झूठा नाटक रचकर शिवाजी को गले लगाकर और फिर कसकर मारना चाहा, पर शिवाजी के छिपाकर रखे बघनखे से अफजल खां को मार दिया।
मुगलों से टक्कर
शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति से चिंतित हो कर मुगल बादशाह औरंगजेब ने दक्षिण में नियुक्त अपने सूबेदार को उन पर चढ़ाई करने का आदेश दिया। लेकिन सूबेदार को मुंह की खानी पड़ी। शिवाजी से लड़ाई के दौरान उसने अपना बेटा खो दिया। उसे मैदान छोड़कर भागना पड़ा। इस घटना के बाद औरंगजेब ने अपने सबसे प्रभावशाली सेनापति मिर्जा राजा जयसिंह के नेतृत्व में करीब 1 लाख सैनिकों की फौज भेजी।
शिवाजी ने महाराजा जयसिंह से संधि की पेशकश की
शिवाजी को कुचलने के लिए राजा जयसिंह ने बीजापुर के सुल्तान से संधि कर पुरन्दर के किले को अधिकार में करने की अपने योजना के प्रथम चरण में 24 अप्रैल 1665 में वज्रगढ़ के किले पर अधिकार कर लिया। पुरन्दर के किले की रक्षा करते हुए शिवाजी का वीर सेनानायक मुरार जी बाजी मारा गया। पुरन्दर के किले को बचा पाने में अपने को असमर्थ जानकर शिवाजी ने महाराजा जयसिंह से संधि की पेशकश की। दोनों नेता संधि की शर्तों पर सहमत हो गए और 22 जून 1665 ई. को पुरन्दर की सन्धि हुई।
शिवाजी के राज्य की सीमा
शिवाजी की पूर्वी सीमा उत्तर में बागलना को छूती थी और फिर दक्षिण की ओर नासिक एवं पूना जिलों के बीच से होती हुई एक अनिश्चित सीमा रेखा के साथ समस्त सतारा और कोल्हापुर के जिले के अधिकांश भाग को अपने में समेट लेती थी। पश्चिमी कर्नाटक के क्षेत्र बाद में सम्मिलित हुए। स्वराज का ये क्षेत्र 3 मुख्य भागों में विभाजित था।
- पूना से लेकर सल्हर तक का क्षेत्र कोंकण का क्षेत्र, जिसमें उत्तरी कोंकण भी सम्मिलित था, पेशवा मोरोपंत पिंगले के नियंत्रण में था।
शिवाजी की सेना
शिवाजी ने अपनी एक स्थायी सेना बनाई थी। शिवाजी की मृत्यु के समय उनकी सेना में 30-40 हजार नियमित और स्थायी रूप से नियुक्त घुड़सवार, एक लाख पैदल और 1260 हाथी थे। उनके तोपखानों के संबंध में ठीक-ठीक जानकारी उपलब्ध नहीं है। बारगीर और घुड़सवार सैनिक थे, जिन्हें राज्य की ओर से घोड़े और शस्त्र दिए जाते थे। सिल्हदार जिन्हें व्यवस्था आप करनी पड़ती थी। घुड़सवार सेना की सबसे छोटी इकाई में 25 जवान होते थे, जिनके ऊपर एक हवलदार होता था। 5 हवलदारों का एक जुमला होता था। जिसके ऊपर एक जुमलादार होता था। 10 जुमलादारों की 1 हजारी होती थी और 5 हजारियों के ऊपर एक पंचहजारी होता था। वो सरनोबत के अंतर्गत आता था। हर 25 टुकड़ियों के लिए राज्य की ओर से एक नाविक और भिश्ती दिया जाता था।
शिवाजी के किले
इतिहास के अनुसार, शिवाजी के पास 250 किले थे। इनकी मरम्मत पर वे बड़ी रकम खर्च करते थे। शिवाजी ने कई दुर्गों पर अधिकार किया, जिनमें से एक था सिंहगढ़ दुर्ग, जिसे जीतने के लिए उन्होंने तानाजी को भेजा था। इस दुर्ग को जीतने के दौरान तानाजी को वीरगति मिली थी। शिवाजी ने कहा था- गढ़ आला पण सिंह गेला (गढ़ तो हमने जीत लिया पर सिंह हमें छोड़कर चला गया)। बीजापुर के सुल्तान की राज्य सीमाओं के अंतर्गत रायगढ़ (1646) में चाकन, सिंहगढ़ और पुरन्दर सरीखे दुर्ग भी उनके अधिकारों में आ गए।
शिवाजी की आगरा यात्रा
अपनी सुरक्षा का पूर्ण आश्वासन प्राप्त कर छत्रपति शिवाजी आगरा के दरबार में औरंगजेब से मिलने के लिए तैयार हो गए। वह 9 मई 1666 ई को अपने पुत्र संभाजी और 4 हजार मराठा सैनिकों के साथ मुगल दरबार में उपस्थित हुए, लेकिन औरंगजेब द्वारा उचित सम्मान ना मिलने पर शिवाजी ने भरे हुए दरबार में औरंगजेब को 'विश्वासघाती' कहा। इसके परिणमस्वरूप औरंगजेब ने शिवाजी एवं उनके पुत्र को जयपुर भवन में कैद कर दिया। शिवाजी 13 अगस्त 1666 ई को फलों की टोकरी में छिपकर निकल गए और 22 सितम्बर 1666 को रायगढ़ पहुंचे।
शिवाजी का अंतिम समय
शिवाजी की कई पत्नियां और 2 बेटे थे। उनके जीवन के अंतिम वर्ष उनके बड़े बेटे की धर्मविमुखता के कारण परेशानियों में बीते। उनका ये बेटा एक बार मुगलों से भी जा मिला था और उसे बड़ी मुश्किल से वापस लाया गया था। घरेलू झगड़ों और अपने मंत्रियों के आपसी वैमनस्य के बीच साम्राज्य की शत्रुओं से रक्षा की चिंता ने शीघ्र ही शिवाजी को मृत्यु के कगार पर पहुंचा दिया। शिवाजी की 1680 में कुछ समय बीमार रहने के बाद अपनी राजधानी पहाड़ी दुर्ग राजगढ़ में 3 अप्रैल को मृत्यु हो गई।