NEW DELHI. केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान फिर से लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। NDA के सहयोगी चिराग पासवान ने एक बार फिर विपक्ष की मांगों का समर्थन किया है। चिराग पासवान कांग्रेस नेता राहुल और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की मांग के समर्थन में खड़े हो गए हैं। चिराग 84 दिन में चार बार NDA से अलग स्टैंड लेते दिखे हैं।
NDA से अलग स्टैंड लेते दिखे चिराग पासवान
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने एक फिर NDA की विचारधारा से अलग हटकर अपनी राय रखी हैं। उन्होंने विपक्ष की मांग जातिगत जनगणना का समर्थन किया है। चिराग ने रविवार को कहा कि हम चाहते हैं कि जाति जनगणना होना चाहिए। अब फिर ऐसा कहकर उन्होंने राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जातिगत जनगणना की मांग के समर्थन में खड़े हो गए हैं। बता दें कि चिराग पासवान इससे पहले भी जातिगत जनगणना के समर्थन में राय रख चुके हैं।
जातिगत जनगणना का फिर समर्थन
रांची में हुई लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने जातिगत जनगणना के मुद्दे पर अपनी राय स्पष्ट करते हुए कहा कि लोक जनशक्ति पार्टी ने हमेशा जाति जनगणना के समर्थन में अपनी स्थिति स्पष्ट रखी है। हम चाहते हैं कि जाति जनगणना हो। उन्होंने आगे कहा कि इसका कारण यह है कि कई बार राज्य सरकार और केंद्र सरकार जाति को ध्यान में रखकर कई योजना तैयार की जाती हैं। योजनाएं मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से बनाई जाती हैं। ऐसे में सरकार के पास जाति की जनसंख्या की जानकारी होनी चाहिए।
पहले भी दिखा चुके हैं NDA से अलग रुख
चिराग पासवान पहले भी जातिगत जनगणना को लेकर अपनी अलग राय रख चुके हैं। जातिगत जनगणना ही नहीं वे कई NDA की विचारधारा से हटकर अपने विचार रख चुके हैं। उन्होंने कई मुद्दों पर विरोध भी जताया है। कुछ दिनों पहले चिराग पासवान लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती को गलत बताते हुए इसका विरोध करते नजर आए थे। उन्होंने सरकारी नौकरियों में आरक्षण के प्रावधान का समर्थन किया था। लेटरल भर्ती को लेकर विपक्षी दल पहले से ही मोदी सरकार पर हमलावर थे। आखिरकार ने सरकार ने इस सीधी भर्ती को रद्द करने का फैसला लिया।
पहले भी कर चुके हैं जाति जनगणना का समर्थन
इससे पहले जुलाई में भी चिराग पासवान ने जातिगत जनगणना को अपना समर्थन दिया था। जाति के आधार पर जनगणना के समर्थन में अपनी पार्टी का पक्ष स्पष्ट करते हुए पासवान ने कहा था कि जाति जनगणना अगली जनगणना में हिस्सा होनी चाहिए, क्योंकि विकास योजनाओं के लिए समुदाय-आधारित सही आंकड़े जरूरी होते हैं। साथ ही उन्होंने डेटा को सार्वजनिक करने का विरोध भी किया था।
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