जोशीमठ में सड़कें फट रहीं और दीवारों पर दरारें, लोग शहर छोड़कर जाने को मजबूर, जानें क्या है वजह

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Atul Tiwari
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जोशीमठ में सड़कें फट रहीं और दीवारों पर दरारें, लोग शहर छोड़कर जाने को मजबूर, जानें क्या है वजह

DEHRADUN. उत्तराखंड का जोशीमठ शहर गंभीर समस्या से जूझ रहा है। जोशीमठ के घरों पर चौड़ी दरारें उभर आई हैं। सड़कें फट रही हैं। कई परिवार शहर छोड़कर जा चुके हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी समस्या सुलझाने के लिए बैठकें कर रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या ये शहर धरती में समाने वाला है? जोशीमठ, बद्रीनाथ से 50 किलोमीटर दूर है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, बिना सोचे समझे निर्माण और कुदरत से खिलवाड़ का खामियाजा शहर भुगत रहा है।





स्थानीय लोगों में राज्य सरकार के प्रति गुस्सा इतना ज्यादा है कि 5 जनवरी की सुबह आम लोगों ने बद्रीनाथ हाईवे जाम कर दिया और शाम को जलती मशालों के साथ जुलूस निकालते दिखे। लेकिन सवाल ये उठता है कि जोशीमठ में अचानक क्या हुआ है, जिसके चलते प्रशासन को लोगों को उनके घरों से कहीं और शिफ्ट करना पड़ रहा है। राज्य सरकार ने आपदा प्रबंधन बलों से किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहने को कहा है।





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38 परिवारों की रिहैब सेंटर में शिफ्टिंग





जोशीमठ के अतिरिक्त ज़िलाधिकारी अभिषेक त्रिपाठी ने अंग्रेजी अखबरा द हिंदू को बताया कि 5 जनवरी को 4 परिवारों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया। इसके साथ ही सभी तरह की कंस्ट्रक्शन गतिविधियों को भी बंद कर दिया गया है। अब तक प्रशासन ने 38 परिवारों को उनके क्षतिग्रस्त घरों से निकालकर रिहैब सेंटर शिफ्ट किया है। जिला प्रशासन ने एनटीपीसी और हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी से कहा है कि वह दो हजार प्री-फैब्रिकेटेड बिल्डिंग्स बनाए, जहां जोशीमठ के परिवारों को रखा जा सके।











जोशीमठ में गंभीर स्थिति





जोशीमठ नगरपालिका ने दिसंबर 2022 में के सर्वे में पाया कि इस तरह की आपदा से 2882 लोग प्रभावित हो सकते हैं। नगर पालिका अध्यक्ष शैलेंद्र पंवार के मुताबिक, अब तक 550 मकान असुरक्षित पाए गए हैं, जिनमें से 150 मकान ऐसे हैं, जो कभी भी गिर सकते हैं। 7 फरवरी 2021 को चमोली में आई आपदा के बाद से पूरी नीति वैली में जमीन दरकने की खबरें आ रही हैं। इससे पहले 1970 में भी जोशीमठ में जमीन धंसने की घटनाएं सामने आई थीं। 





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इस प्राकृतिक आपदा के कारणों की जांच के लिए गढ़वाल कमिश्रर महेश मिश्रा की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी। समिति ने 1978 में आई अपनी रिपोर्ट में बताया था कि जोशीमठ, नीति और माना घाटी में बड़ी निर्माण परियोजनाओं को नहीं चलाना चाहिए, क्योंकि ये क्षेत्र मोरेंस पर टिके हैं। मोरेंस ऐसे क्षेत्र होते हैं, जो ग्लेशियर पिघल जाने के बाद पीछे छूट जाते हैं।





जोशीमठ की प्राकृतिक संरचना और सरकार के दावे





भले ही लोगों की सरकार के प्रति नाराजगी देखी जा रही है, लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का दावा है कि वे हालात पर लगातार नजर बनाए हुए हैं। संकट का पता लगाने के लिए एक्सपर्ट का दल भी जोशीमठ पहुंच चुका है। भूगर्भीय रूप से ये शहर काफी संवेदनशील है और सीस्मिक जोन 5 के अंदर आता है। जोशीमठ शहर पूर्व-पश्चिम में चलने वाली रिज पर मौजूद है। शहर के ठीक नीचे विष्णुप्रयाग के दक्षिण-पश्चिम में, धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों का संगम है। ऐसे में नदी से होने वाला कटाव भी इस भू-धंसाव के लिए जिम्मेदार है। उसके बाद सरकार ने योजना बनाई है कि जोशीमठ में हो रहे धंसाव को रोकने के लिए अस्थाई सुरक्षा कार्य किए जाएंगे। 





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